केंद्र और राज्यों के बीच तालमेल के अभाव का खमियाजा देशभर के रसोई गैस उपभोक्ता भुगत रहे हैं। रसोई गैस सिलेंडर पर मिल रही सबसिडी को उपभोक्ता के बैंक खाते में सीधे भेजने की केंद्र की योजना ‘पहल’ उपभोक्ताओं की जेब काट रही है। तीन राज्यों को छोड़ बाकी राज्य गैस रिफिल पर वैट की वसूली बाजार भाव के हिसाब से कर रहे हैं जबकि सरकार खाते में सबसिडी की जो राशि भेज रही है वह तय है। इस तरह वैट तो वसूला जा रहा है बाजार भाव पर लेकिन सबसिडी आ रही है सस्ती दर के हिसाब से।

एक सिलेंडर पर ही यह चपत दो रुपए से पच्चीस रुपए तक लग रही है। नीमच के आरटीआइ कार्यकर्ता चंद्र शेखर गौड़ ने पेट्रोलियम मंत्रालय का ध्यान इस गोरखधंधे की तरफ दिलाया तो खुद केंद्रीय पेट्रोलियम सचिव सौरभ चंद्र ने माना कि उपभोक्ताओं को तय दाम से ज्यादा चुकाना पड़ रहा है।

इसकी वजह उन्होंने हर राज्य में गैस सिलेंडर पर वैट की अलग-अलग दर होना बताई है। जबकि कायदे से यह दर तय होनी चाहिए और सिलेंडर की बाजारू कीमत के बजाए प्रति किलो गैस के हिसाब से वसूली जानी चाहिए। इससे उपभोक्ता को ज्यादा दाम देना पड़ रहा है पर उसके खाते में कम रकम ही आ रही है।

अभी एक उपभोक्ता को साल भर में सबसिडी वाले बारह सिलेंडर देने की व्यवस्था है। इससे ज्यादा सिलेंडर लेने पर बाजार भाव के हिसाब से दाम देना पड़ता है। हालांकि सिलेंडर की घर पर डिलीवरी के वक्त तो उपभोक्ता से बाजार की दर से दाम वसूला जाता है पर सबसिडी की रकम बाद में उपभोक्ता के खाते में खुद आ जाती है। इस योजना को केंद्र सरकार ने पिछले साल 15 नवंबर को देश के 54 जिलों में परीक्षण के तौर पर लागू किया था। परीक्षण सफल रहा तो इस साल एक जनवरी से इसे सारे देश में लागू कर दिया।

उपभोक्ताओं के साथ हो रही ठगी सामने आई तो पेट्रोलियम सचिव सौरभ चंद्र ने राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखा। पिछले साल 24 नवंबर को मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव को भेजे अपने पत्र में उन्होंने उपभोक्ताओं के असंतोष की बात साफ तौर पर मानी। साथ ही सलाह दी कि वैट की वसूली गैस पर प्रति किलो के हिसाब से की जाए, गैस की बाजार दर के हिसाब से नहीं। इस मामले में उपभोक्ताओं को चपत लगाने वाले राज्यों में हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, झारखंड, मणिपुर, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, केरल और तेलंगाना मुख्य रूप से शामिल हैं। लेकिन इस विसंगति को केंद्र सरकार के निर्देश के बाद भी दुरुस्त नहीं किया गया है।

उधर, चंद्र शेखर गौड़ का सवाल यह है कि जब घपले की बात 54 जिलों में योजना लागू करने के बाद ही सामने आ गई थी तो सारे देश में पहल को लागू करते समय उसे दुरूस्त क्यों नहीं कराया गया। सरकार का दावा है कि योजना से अब तक देश के करीब दस करोड़ रसोई गैस उपभोक्ता जुड़ चुके हैं। इस नाते उपभोक्ताओं को वैट के गुलगपाड़े से अब तक कई अरब रुपए की चपत लग चुकी है।

एक तरफ राष्ट्रीय स्तर पर चल रही इस धांधली से उपभोक्ताओं को चपत लग रही है तो दूसरी तरफ कई गैस उपभोक्ताओं को गैस कंपनियों के डीलर जानबूझ कर परेशान कर रहे हैं। जरूरी दस्तावेज जमा कर देने के बाद भी उनके कनेक्शन को उनके बैंक खाते से नहीं जोड़ा जा रहा है। इससे उन्हें गैस महंगे दाम पर मिल रही है जबकि सरकार दावा सबसिडी वाली गैस मुहैया कराने का कर रही है। देश की राजधानी तक में गैस वितरक उपभोक्ताओं को खुलेआम परेशान कर रहे हैं।

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के प्रकाश विहार में रहने वाले इंडेन गैस उपभोक्ता हरि कृष्ण यादव अपने डीलर भगीरथी गैस सर्विस से बुरी तरह त्रस्त हैं। वे अपने बैंक खाते के दस्तावेज इस डीलर के पास जरूरी फार्म भर कर कई बार जमा कर चुके हैं। लेकिन उनके कनेक्शन संख्या 5334-ए को उनके बैंक खाते से जोड़ा ही नहीं गया। इससे एक तो उन्हें समय पर गैस नहीं मिल रही और मिल भी रही है तो उस पर सबसिडी का फायदा नहीं मिल रहा। उनके पास अपने दावे को प्रमाणित करने वाले सबूत भी हैं। लेकिन उपभोक्ता की शिकायत पर कंपनी के अफसरों ने भी कार्रवाई करना जरूरी नहीं समझा।

 

अनिल बंसल