उपभोक्ताओं को जल्द ही अपनी बिजली आपूर्ति कंपनी चुनने का अधिकार मिल सकता है। सरकार बिजली अधिनियम में इस संबंध में जरूरी संशोधन कर रही है। इन संशोधनों का मकसद वितरण क्षेत्र में ज्यादा प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करना है। सरकार बिजली उत्पादन के बाद अब बिजली वितरण पर ध्यान केंद्रित करना चाहती है जिसे अक्सर बिजली क्षेत्र का सबसे कमजोर पक्ष करार दिया जाता है।
बिजली व कोयला मंत्री पीयूष गोयल ने शनिवार को कहा कि उक्त प्रावधान के तहत उपभोक्ता को अपनी वितरण कंपनी चुनने का अधिकार देने पर विचार हो रहा है। उन्होंने सीआइआइ के एक समारोह में कहा कि हम विद्युत आपूर्ति क्षेत्र में अंतिम बिंदु तक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने पर विचार कर रहे हैं ताकि उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति में विकल्प उपलब्ध हो। इससे राज्यों को भी जनता की बेहतर सेवा करने में मदद मिलेगी।
गोयल ने आश्वस्त किया कि जहां भी मौजूदा बिजली खरीद समझौते हैं संबद्ध पक्षों के हितों की रक्षा की जाएगी जो बिजली नियामक की सलाह पर किया जाएगा। अंतिम मुकाम तक आपूर्ति के संबंध में प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहन दिया जाएगा ताकि शुल्क में कमी हो सके, प्रतिस्पर्धात्मकता हो और उपभोक्ता सेवा बेहतर हो।
यह पूछने पर कि क्या उपभोक्ता अपनी बिजली वितरण कंपनी खुद चुन सकेंगे, गोयल ने कहा कि ऐसा धीरे-धीरे किया जाएगा। महाराष्ट्र में ऐसी कोशिश हुई तो लेकिन कुछ अदालती फैसलों के कारण ये आगे नहीं बढ़ सकीं। मंत्री से जब यह पूछा गया कि महाराष्ट्र में इसे अपनाया गया लेकिन यह वांछित परिणाम नहीं दे पाया? इस पर उन्होंने कहा कि बिजली अधिनियम 2003 में कुछ दिक्कतें हैं। हम बिजली अधिनियम में संशोधन के जरिए उन दिक्कतों को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं।
इस पहल का लक्ष्य है वितरण कंपनियों का नुकसान कम करना और सकल बिजली आपूर्ति में सुधार करना। प्रस्ताव के मुताबिक नए मॉडल पर विचार किया जा रहा है जिसमें बिजली आपूर्तिकर्ता बिजली वितरण नेटवर्क का प्रबंधन नहीं करेगा। यह ब्रिटेन की मौजूदा प्रणाली के अनुरूप है जहां आपूर्तिकर्ता और बिजली नेटवर्क प्रदाता अलग-अलग हैं।
फिलहाल बिजली वितरण कंपनियां आपूर्ति के साथ नेटवर्क का भी प्रबंधन करती हैं जो आवासीय और वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए बिजली की आपूर्ति करती है। एक अन्य मॉडल के तहत नेटवर्क एक कंपनी के पास रहेगा जबकि बिजली आपूर्तिकर्ताओं की संख्या एक से अधिक हो सकती है। इस क्षेत्र के विशेषज्ञों के मुताबिक, यह कोई आसान काम नहीं है। यह तभी संभव है जब हर कंपनी की हर इलाके में ट्रांसमिशन लाइनें हों तभा वे व्हीलिंग चार्ज लेकर दूसरी कंपनी के उपभोक्ता तक उसे पहुंचाने के लिए राजी हो सकते हैं।
इससे पहले भी इस तरह की कोशिश की गई थी। जब दिल्ली में शीला दीक्षित की कांग्रेस सरकार थी तब तत्कालीन ऊर्जा मंत्री डाक्टर वालिया ने कहा था कि वे दिल्ली के उपभोक्ताओं को अपने मनपसंद की बिजली कंपनी चुनने का विकल्प देंगे। इसके बाद उनका मंत्रालय ही बदल दिया गया। मालूम हो कि शीला सरकार ने ही तीन निजी कंपनियों बीएसईएस (यमुना), बीएसईएस (राजधानी) व एनडीपीएल को राजधानी में बिजली वितरण की जिम्मेदारी सौंपी थी। यह निजीकरण ही उनक ी सरकार जाने व आम आदमी पार्टी के सत्ता मेंआने की मूल वजह बनी।
बिजली के दाम बढ़ने से जनता काफी नाराज हो गई थी व केजरीवाल ने इसे बहुत बड़ी धांधली करार देते हुए सत्ता में आने पर इसकी जांच करवाने का वादा किया था। उन्होने बिजली के बिल आधे कर देने का भी वादा किया जो कि बड़ी संख्या में मतदाताओं के लुभाने में सफल रहा।
बिल में कमी, सेवा में बेहतरी का दावा
बिजली मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि हम विद्युत आपूर्ति क्षेत्र में अंतिम बिंदु तक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने पर विचार कर रहे हैं ताकि उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति में विकल्प उपलब्ध हो। इससे राज्यों को भी जनता की बेहतर सेवा करने में मदद मिलेगी। जहां भी मौजूदा बिजली खरीद समझौते हैं संबद्ध पक्षों के हितों की रक्षा की जाएगी जो बिजली नियामक की सलाह पर किया जाएगा। अंतिम मुकाम तक आपूर्ति के संबंध में प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहन दिया जाएगा ताकि शुल्क में कमी हो सके, प्रतिस्पर्धात्मकता हो और उपभोक्ता सेवा बेहतर हो।
प्रस्तावित मॉडल का खाका
प्रस्ताव के मुताबिक नए मॉडल पर विचार किया जा रहा है जिसमें बिजली आपूर्तिकर्ता बिजली वितरण नेटवर्क का प्रबंधन नहीं करेगा। यह ब्रिटेन की मौजूदा प्रणाली के अनुरूप है जहां आपूर्तिकर्ता और बिजली नेटवर्क प्रदाता अलग-अलग हैं। फिलहाल बिजली वितरण कंपनियां आपूर्ति के साथ नेटवर्क का भी प्रबंधन करती हैं जो आवासीय और वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए बिजली की आपूर्ति करती है। एक अन्य मॉडल के तहत नेटवर्क एक कंपनी के पास रहेगा जबकि बिजली आपूर्तिकर्ताओं की संख्या एक से अधिक हो सकती है।
इस राह पर लग चुके हैं झटके
इससे पहले भी इस तरह की कोशिश की गई थी। जब दिल्ली में शीला दीक्षित की सरकार थी तब तत्कालीन ऊर्जा मंत्री डाक्टर वालिया ने कहा था कि वे दिल्ली के उपभोक्ताओं को अपने पसंद की बिजली कंपनी चुनने का विकल्प देंगे। लेकिन उनका मंत्रालय ही बदल दिया गया। शीला सरकार ने ही तीन निजी कंपनियों बीएसईएस (यमुना), बीएसईएस (राजधानी) व एनडीपीएल को राजधानी में बिजली वितरण की जिम्मेदारी सौंपी थी। यह निजीकरण ही उनक ी सरकार जाने व आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने की मूल वजह बनी। महाराष्ट्र में ऐसी कोशिश हुई, लेकिन कुछ अदालती फैसलों के कारण आगे नहीं बढ़ सकी। आलोचकों का कहना है कि महाराष्ट्र में यह वांछित परिणाम नहीं दे पाया। जानकारों का कहना है कि सरकार जिस मॉडल पर आगे बढ़ने की बात कर रही है वह आसान काम नहीं है।