देश की राजधानी दिल्ली के बाहरी इलाके गाजियाबाद के इंडस्ट्रियल बेल्ट में करोड़ों की मशीन धूल खा रही है। इसे कंपनी ने भविष्य का सहारा माना था। एक आधुनिक मशीन जो बड़ी मात्रा में और सटीकता के साथ धातु को आकार दे सकती थी लेकिन मशीन बंद है और उसी के बगल में मजदूर पुराने छोटे प्रेस से काम चला रहे हैं।
पिघली धातु पर हथौड़े की आवाज गूंज रही है। यह नजारा मेरिका में तेल और गैस की खोज करने वाले रिग्स के लिए धातु फ्लैंज बनाने वाली सीडी इंडस्ट्रीज का है। कंपनी ने सोचा था कि नई मशीन से अमेरिकी ग्राहकों की मांग पूरी होगी, लेकिन अब हालात बदल गए हैं।
सीडी इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर पंकज अग्रवाल ने बुलंदशहर रोड पर गाजियाबाद के सबसे बड़े इंडस्ट्रियल क्षेत्रों में से एक में स्थित अपने मैन्युफैक्चरिंग प्लांट में द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “बाल मुंडवाते ही ओले पड़ने लगे।”
नए ऑर्डर हुए कम
उन्होंने यह इलेक्ट्रिक मेटल फोर्ज को खास तौर रक अमेरिकी ग्राहकों के रिक्वेस्ट को पूरा करने के लिए खरीदा था, जिन्होंने उनसे 16 इंच तक के फ्लैंज बनाने को कहा था, जबकि उनकी मौजूदा क्षमता 8 इंच के फ्लैंज की है।
लेकिन, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कई भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाकर 25% करने के फैसले के साथ, जिसमें 27 अगस्त तक 25% की और वृद्धि की धमकी दी गई है, अग्रवाल और उनके जैसे कई इंजीनियरिंग सामान निर्यातकों के लिए नए ऑर्डर कम हो गए हैं। कई अमेरिकी विक्रेता पहले के ऑर्डर भी रद्द कर रहे हैं, जिससे कई भारतीय मध्यम और लघु उद्यमों को भारी वित्तीय नुकसान हो रहा है।
देश का सबसे बड़ा इंडस्ट्रियल सेक्टर
इंजीनियरिंग देश का सबसे बड़ा इंडस्ट्रियल सेक्टर है। इसका देश के GDP में 3.53% हिस्सा है। FY24 के दौरान भारत के इंजीनियरिंग सामान निर्यात की कुल निर्यात में 25.22% हिस्सेदारी थी, जो FY23 के 106.93 अरब डॉलर की तुलना में बढ़कर 109.22 अरब डॉलर हो गई।
वित्त वर्ष 2025 अप्रैल से दिसंबर में, इस क्षेत्र में देश के टॉप 5 निर्यात डेस्टिनेशन अमेरिका (15.82%), UAE (7.36%), सऊदी अरब (5.24%), सिंगापुर (4.46%) और जर्मनी (3.52%) थे। ऑटो कंपोनेंट और धातुकर्म जैसे उद्योग विशेष रूप से नुकसान में हैं।
सीडी इंडस्ट्रीज के लिए अमेरिका इसका खास एक्सपोर्ट मार्केट है, जो कंपनी के कुल कारोबार का 50% है। अग्रवाल ने कहा, “हालांकि हम पहले दिए गए ऑर्डर पूरे कर रहे हैं, लेकिन नई पूछताछ आनी बंद हो गई है। कुछ कंपनियों के पिछले ऑर्डर रद्द कर दिए गए हैं, क्योंकि आयातक छूट की मांग कर रहे हैं, जिसे कई निर्माता स्वीकार करने की स्थिति में नहीं हैं।”
उन्होंने कहा, “टैरिफ की स्थिति हमें परेशान कर रही है, हमें परेशान कर रही है, और हम वाकई बहुत चिंतित हैं।”
फिलहाल पुराने आर्डर नहीं हो रहे कैंसिल
उनके गाजियाबाद वाले प्लांट में 225 लोग काम करते हैं। उनका कहना है कि पुराने आर्डर फिलहाल कैंसिल नहीं हो रहे हैं। जिसकी वजह विक्रेताओं के साथ उनके पुराने संबंध है। जिस कारण उन्हें अपने कर्मचारियों की संख्या कम नहीं करनी पड़ रही है। उन्होंने कहा कि अगर फ्यूचर में लंबे वक्त तक ऐसी ही स्थिति बनी रहती है तो उन्हें कुछ कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ सकती है।
हजारों नौकरियां जाने का डर
हमारी सहयोगी द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, इंडस्ट्रियल एरिया मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (IAMA) के महासचिव (General Secretary) संजीव सचदेव ने कहा कि इस क्षेत्र में 400 से ज्यादा मैन्युफैक्चरिंग प्लांट हैं, जिनमें 75,000 से ज्यादा लोग काम करते हैं।
सचदेव ने कहा, “अगर टैरिफ की समस्या का समाधान नहीं हुआ और सरकार इस बीच उद्योग की आर्थिक मदद नहीं करती, तो आसानी से 5,000-7,000 लोगों की नौकरियाँ चली जाएंगी। कई कंपनियां, जिन्होंने कच्चा माल खरीदा है और तैयार माल बनाया है, आने वाली पीढ़ियों के कर्ज में डूबने का खतरा मंडरा रहा है।”
देश के इंजीनियरिंग निर्यात संवर्धन परिषद (EEPC) के चेयरमैन पंकज चड्ढा ने कहा कि अमेरिकी टैरिफ के कारण लगभग 5 अरब डॉलर मूल्य के इंजीनियरिंग सामान निर्यात जोखिम में हैं।
उन्होंने कहा, “अन्य क्षेत्रों के विपरीत, हमारे लिए यह समस्या तभी शुरू हो गई जब अमेरिका ने स्टील और एल्युमीनियम पर 50% टैरिफ की घोषणा की। इस टैरिफ दर पर, हम प्रतिस्पर्धी नहीं रह सकते और हम अमेरिका में अपनी बाजार हिस्सेदारी बनाए रखने की स्थिति में नहीं हैं।”
अग्रवाल, चड्ढा और सचदेव, सभी ने कहा कि संकटग्रस्त कंपनियों की मदद के लिए सरकार की मदद समय की माँग है।