किसानों को बजट से बड़ी उम्मीद थी पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण ने उन्हें निराश ही किया। सैद्धांतिक बातों के अलावा उनके भाषण में कृषि के विकास और किसानों की बेहतरी का कोई साफ ब्लू प्रिंट नजर नहीं आया। आंकड़े के नाम पर बस यही दिखा कि सरकार नए वित्तीय वर्ष में किसानों को उनकी फसलों के समर्थन मूल्य के रूप में 2.37 लाख करोड़ रुपए का भुगतान करेगी। जबकि पिछले वर्ष में ही न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में उसने किसानों को 2.42 लाख करोड़ रुपए का भुगतान किया था।

कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा का कहना है कि बजट में जितनी राशि का प्रावधान किया गया है, वह तो पिछले साल के मुकाबले भी कम है। जबकि इसमें बढ़ोतरी होनी चाहिए थी। शर्मा के मुताबिक भाजपा ने 2014 में वादा किया था कि 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी कर दी जाएगी। आजादी के अमृत महोत्सव के वर्ष में आए बजट में सरकार ने यह वादा पूरा नहीं किया। समर्थन मूल्य पर सरकार आमतौर पर गेहूं और धान की ही खरीद करती है। यह सही है कि सात साल में सरकार ने फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ाया तो जरूर पर दो गुना नहीं किया।

ऊपर से खेती की लागत जरूर इस अवधि में समर्थन मूल्य में हुई बढ़ोतरी की तुलना में कहीं ज्यादा बढ़ गई। कुल मिला कर किसान के घर में खुशहाली नहीं आई।बजट में सरकार ने रसायन मुक्त प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की बात कही है। पर इसके लिए क्या उपाय किए जाएंगे और कितना पैसा खर्च होगा, इस पर बजट मौन है। तिलहन के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के लिए व्यापक योजना चलाने का भी दावा बजट में है। पर योजना पर होने वाले खर्च का कोई जिक्र नहीं। तिलहन की पैदावार बढ़ेगी तो सरकार उसकी खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कैसे कर पाएगी जब इस मद में पिछले साल से भी कम धन राशि का प्रावधान किया गया है।

खेती में आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल और पैदावार बढ़ाने जैसी बातें सुनने में तो जरूर अच्छी लगती हैं पर खेती की लगातार बढ़ रही लागत से किसान को राहत देने वाला कोई कदम बजट में नजर नहीं आता। बिजली, बीज, डीजल, रासायनिक खाद और कीटनाशक लगातार महंगे हो रहे हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सभी फसलों की खरीद की कोई व्यवस्था नहीं है। ऊपर से किसानों को प्राकृतिक आपदा का सामना करना पड़ता है। फसल बीमा योजना का महंगा प्रीमियम चुकाने की अधिकांश किसानों की आर्थिक हैसियत नहीं। अभी तो किसान बुनियादी सुविधाओं और ढांचे के लिए ही मशक्कत कर रहा है। पर बजट में सरकार ने उसे किसान ड्रोन जैसे सपने दिखा दिए।

बजट में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में बढ़ोतरी की भी सीमांत और छोटे किसानों को आस थी। अभी उन्हें पांच सौ रुपए माहवार नकद सहायता मिल रही है। बकौल देवेंद्र शर्मा खेती में अनुसंधान और नई तकनीक को बढ़ावा सरकार कैसे देगी। अभी तक यह जिम्मा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से जुड़ी संस्थाओं पर है। लेकिन परिषद के आठ हजार करोड़ रुपए सालाना के बजट में भी कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। रही कृषि विश्वविद्यालयों से यह भूमिका लेने की बात तो ज्यादातर कृषि विश्वविद्यालय पहले ही वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं। कई विश्वविद्यालयों को तो अपने खर्च के लिए अपनी जमीन तक बेचनी पड़ी है।