BANK FRAUD: बैंक फ्रॉड के मामलों में बीते कुछ समय में जबरदस्त बढ़ोतरी देखने को मिली है। ऐसे में ऑनलाइन ट्रांजेक्शन करते वक्त सभी को सावधानी बरतने की जरूरत होती है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने अपनी सालाना वार्षिक रिपोर्ट में जानकारी दी है कि 2018-19 में बैंक फ्रॉड के मामलों में 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है। 2017-18 में जहां 41,167 करोड़ रुपए का फ्रॉड दर्ज किया गया था तो वहीं 2018-19 में कुल 71,543 करोड़ रुपए का फ्रॉड दर्ज किया गया है।

देखा गया है कि ज्यादातर मामलों में शरारती तत्व ग्राहकों की छोटी-छोटी जानकारियां हासिल कर फ्रॉड को अंजाम देते हैं। ग्राहकों का मोबाइल नंबर, बैंक में दर्ज नाम और पता आदि का पता लगा लिया जाता है। इसके बाद फोन कॉल के जरिए ऑनलाइलन ट्रांजेक्शन के लिए जरूरी अन्य सूचनाएं एकत्रित की जाती हैं। मालवेयर और सॉफ्टेवयर का इस्तेमाल कर बड़ी चतुराई से ग्राहकों के अकाउंट से पैसे निकाल लिए जाते हैं।

बहरहाल अगर सावाधानियां बरतरने के बावजूद कभी आपको ऐसी मुसीबत का सामना करना पड़े तो घबराने की जरूरत नहीं, आपका पैसा बच सकता है। इसके लिए कुछ शर्ते और मानक पहले से तय किए गए हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) नियमों के मुताबिक किसी ग्राहक के खाते में जमा पैसे को सुरक्षित रखने की जितना जिम्मेदारी खाताधारक की होती है उतनी ही बैंक की भी होती है। लेकिन बैंक की गलती की वजह से फ्रॉड होता है तो आरबीआई ने इसके लिए दो मापदंड तय किए हैं।

पहला,अगर बैंक की तरफ से किसी तरह की तकनीकी दिकक्त, बैंक की तरफ से लापरवाही या फिर ग्राहक की निजी जानकारियां लीक होती हैं तो ग्राहक अनऑथराइज्ड ट्रांजेक्शन के लिए जिम्मेदार नहीं होंगे। दूसरा, अगर थर्ड पार्टी के तहत खाताधारक के साथ फ्रॉड होता है तो ऐसे में न तो खाताधारक और न ही बैंक इसके लिए जिम्मेदार होंगे। उदाहरण के तौर पर अगर आपनी किसी थर्ड पार्टी जैसे की कोई वॉलेट और वेबसाइट के जरिए पेमेंट किया लेकिन भुगतान दो बार होता है तो तीन दिन के भीतर ग्राहक को संबंधित बैंक से मामले की शिकायत करनी होगी। इसके बाद दूसरे भुगतान को अनऑथराइज्ड ट्रांजेक्शन माना जाएगा।

ग्राहक को जिम्मेदार ठहराए जाने पर: जब ग्राहक की अपनी गलती की वजह से उसके साथ फ्रॉड होता है तो बैंक इसे अनऑथराइज्ड ट्रांजेक्शन नहीं मानता। बैंक इस स्थिति में जितनी भी हानि हुई उसके लिए ग्राहक को जिम्मेदार ठहराता है। वहीं अगर ग्राहक अनऑथराइज्ड इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजेक्शन का सामना करता है तो ऐसे में आरबीआई गाइडलाइन
के मुताबिक 7 दिन के भीतर ग्राहक को बैंक को सूचित करना होता है। यदि ग्राहक सात वर्किंग डेज के बाद रिपोर्ट करने या रिपोर्ट करने में विफल रहता है, तो ग्राहक की लायबिलिटी बैंक बोर्ड द्वारा तय नीति के अनुसार निर्धारित की जाएगी।

अक्सर ऐसा होता है कि बैंक को सूचित करने के बाद भी हमारी शिकायत पर कार्रवाई नहीं होती। ऐसी स्थिति में ग्राहको को बैंक के आंतरिक लोकपाल को सूचित कर सकते हैं। आरबीआई ने डिजिटल लेन-देन के लिए आतंरिक लोकपाल योजना को शुरू किया है। इसके तहत ग्राहकों की शिकायतों का ऑनलाइन समाधान किया जाता है।