लगभग 50 लाख रुपये सालाना की कमाई करने वाले कई डबल-इनकम-नो-किड्स (DINK) जोड़े अब खुद को मुश्किल में पा रहे हैं। उनके पास बेहतर नौकरी, अच्छी सैलरी है और कोई आश्रित भी नहीं है। फिर भी उनके लिए घर खरीदना उनकी पहुंच से बाहर होते जा रहे हैं।
कड़ी बचत और सोच-समझकर खर्च करने के बावजूद, पिछले कुछ सालों में आमदनी बढ़ने और घरों की कीमतों के बीच का फर्क बहुत बढ़ गया है। अब शहरों में काम करने वाले कई लोग घर खरीदने की जल्दी में नहीं हैं।
वे अब अपने पैसे को जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल करने की आजादी, लचीलापन और समझदारी से निवेश करना ज्यादा बेहतर मानते हैं। धीरे-धीरे लोगों की ये सोच बदल रही है कि “सेटल” होने का मतलब सिर्फ घर खरीदना ही नहीं है।
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हाइ इनकम वालों के लिए घर खरीदना क्यों पहुंच से बाहर होता जा रहा है?
50 लाख रुपये से ज्यादा की वार्षिक आय वाले कई जोड़ों के लिए घर खरीदना लगातार मुश्किल होता जा रहा है। चुनौती सिर्फ पैसों की नहीं है। यह इनकम ग्रोथ और बढ़ती संपत्ति की कीमतों के बीच बढ़ते अंतर, साथ ही बदलती लाइफ स्टाइल और प्रतिस्पर्धी वित्तीय लक्ष्यों की भी है। इस संघर्ष के असली कारण क्या हैं, आइए एक नजर डालते हैं…
प्रॉपटी की बढ़ती कीमतें, सैलरी ग्रोथ से ज्यादा हो गई है
पिछले एक दशक में शहरों में प्रॉपटी प्राइस सैलरी की तुलना में तेजी से बढ़ी हैं। दस साल पहले एक 2BHK अपार्टमेंट की कीमत जो ₹60-70 लाख थी, अब उसके लिए ₹1.5-2 करोड़ देना पड़ रहा है। वहीं, अच्छी सैलरी पाने वाले पेशेवरों के सैलरी में भी ग्रोथ काफी कम है।
अगर किसी प्रॉपर्टी की कीमत 1.5 करोड़ रुपये है, तो 20% डाउन पेमेंट के रुपये में करीब ₹30 लाख देने पड़ेंगे। बाकी ₹1.2 करोड़ के लिए अगर होम लोन लिया जाए, तो मौजूदा ब्याज दर पर इसकी महीने की EMI करीब ₹1.1 से ₹1.3 लाख पड़ेगी (20 साल के लिए)। इतनी बड़ी EMI से महीने की आधी सैलरी चली जाती है, जिससे घर का खर्च और बचत के लिए बहुत कम पैसे बचते है।
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डाउन पेमेंट की दुविधा
घर का मालिक बनना केवल ईएमआई चुकाने तक सीमित नहीं है। 20% डाउन पेमेंट के अलावा, खरीदार को स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन शुल्क, ब्रोकरेज शुल्क और रख-रखाव जमा के लिए भी बजट बनाना पड़ता है। ये सभी शुल्क ₹10-12 लाख (उसी 2BHK उदाहरण के मामले में) और जोड़ सकते हैं, जिससे कुल आवश्यकता लगभग ₹40-45 लाख हो जाती है। युवा पेशेवर के लिए, इमरजेंसी फंड या इंवेस्टमेंट प्लान से समझौता किए बिना इतनी बड़ी राशि अलग रखना बेहद मुश्किल है।
शहरी जीवन की महंगी लागत
भले ही किसी के कोई आश्रित न हों, शहरी लाइफ स्टाइल के अपने खर्चे होते हैं और ये काफी होते हैं। किराए की लागत ₹50,000-₹60,000 (2BHK के लिए), किराने का सामान और खाने-पीने की लागत ₹30,000-₹35,000 तक हो सकती है। ट्रेवल, बिजली, टेलीफोन और गैस बिल और सब्सक्रिप्शन व इंश्योरेंस जैसे अन्य अनुबंधित खर्च, कुल मिलाकर ₹60,000-₹70,000 तक हो सकते हैं। इसमें आपको मनोरंजन और यात्रा के लिए ₹20,000 प्रति माह जोड़ने होंगे।
इस प्रकार ये कुल मिलाकर ₹1.5 लाख प्रति माह से अधिक हो सकते हैं, जो प्राप्त वेतन का आधा हिस्सा ले लेते हैं। यदि टैक्स, कभी-कभार आने वाले पारिवारिक दायित्वों और जीवनयापन की बढ़ती लागत को भी इसमें जोड़ दिया जाए, तो डाउन पेमेंट या EMI के लिए उपलब्ध इनकम की राशि बहुत कम हो जाती है, जिससे घर खरीदना उस पहुंच से बाहर हो जाता है जो स्पष्ट रूप से मौजूद है।
लाइफ स्टाइल में महंगाई का बोछ
शहरी पेशेवरों को अक्सर एक निश्चित जीवन स्तर बनाए रखने के लिए लगातार दबाव का सामना करना पड़ता है। बार-बार बाहर खाना, वीकली हॉलिडे, लेटेस्ट गैजेट और लग्जरी और आवश्यकता के बीच की रेखा को धुंधला कर दिया है।
हाई इनकम वाले जोड़ों को घर खरीदने के बारे में रणनीतिक रूप से कैसे सोचना चाहिए?
हाई इनकम होने पर भी, घर खरीदने के लिए सोच-समझकर योजना बनाने और वित्तीय अनुशासन की आवश्यकता होती है। पहला कदम स्पष्ट वित्तीय मानक निर्धारित करना और एक बजट बनाना है जहां ईएमआई कर-पश्चात आय (PAT) के 30-35% से अधिक न हो।
एक व्यावहारिक तरीका यह हो सकता है कि आंशिक स्वामित्व पर विचार किया जाए, या उभरते हुए सूक्ष्म बाजारों का पता लगाया जाए जहां संपत्ति की कीमतें ज्यादा किफायती हों और साथ ही मजबूत मूल्यवृद्धि की संभावना भी हो। वित्तीय बोझ कम करने के लिए पहली बार घर खरीदने वालों के लिए उपलब्ध सरकारी योजनाओं और टैक्स प्रोत्साहनों का लाभ उठाना भी फायदेमंद हो सकता है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किराए पर रहने को नाकामयाबी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। करियर की स्थिरता, बचत और लाइफ स्टाइल की प्राथमिकताओं के मेल खाने तक खुद के घर खरीदने की योजना को टालना एक समझदारी भरा वित्तीय विकल्प हो सकता है। आखिरी में वित्तीय स्वतंत्रता और अनुशासित निवेश को प्राथमिकता देने से घर का स्वामित्व एक समय पर लिया गया, स्थायी निर्णय बन सकता है।