‘सदविद्या प्रतिष्ठानम’ का 57वां स्थापना दिवस विजयादशमी के अवसर पर नोएडा में मनाया गया। यह संस्थान सनातन विद्या के प्रचार प्रसार करने की कोशिश में 57 साल से जुटा हुआ है। ‘सदविद्या प्रतिष्ठानम’ के फाउंडर संस्कृत और वेदों के विद्वान प्रोफेसर श्री पद्मनाभ शर्मा (दिवंगत) थे। उन्होंने इसकी स्थापना 1967 में की थी। यह सांस्था वेदों, उपनिषदों, भगवद-गीता और पुराणों का अध्यापन 57 सालों से कराती आ रही है। 2 हजार से ज़्यादा छात्र और साधक इसके लाभार्थी हैं। स्थापना समारोह नोएडा में आयोजित किया गया और इसे यूट्यूब, जूम और फेसबुक पर भी प्रसारित किया गया था।
युवाओं को प्रेरणा देना है लक्ष्य
नोएडा में हुए स्थापना दिवस समारोह में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के कुलपति श्रीनिवास वरखेड़ी का भाषण रहा। उनके भाषण ने युवाओं को प्रेरणा दी। उन्होंने अपने भाषण में कई उपाख्यानों और शास्रों का उदाहरण देते हुए सांस्कृत को पवित्र गंगा नदी और सनातन धर्म को उसके तट के समान बताया और सांस्कृत के महत्व को भी समझाया। ‘
सदविद्या प्रतिष्ठानम’ की वरिष्ठ सलाहकार डॉ शशि तिवारी ने अपने भाषण में अपने भाषण में तमिल,मलयालम,कन्नड़, भाषा और ग्रंथ लिपि के जुड़ाव और समानता के बारे में जानकारी दी। ‘सदविद्या प्रतिष्ठानम’ के अध्यक्ष शेखर वर्मा ने संस्थान के बारे में बताया और कहा कि इसने सनातन विद्या के प्रसार के लिए काफी काम किया है।
‘प्रोजेक्ट हयग्रीव’ की शुरुआत
इस अवसर पर ‘प्रोजेक्ट हयग्रीव’ नाम के एक शोध, एजुकेशनल और ट्रेनिंग कार्यक्रम की भी शुरुआत हुई। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य ग्रंथ लिपि का प्रचार प्रसार करना है, जो संस्कृत की पहली लिखित लिपि से जाना जाता है। । इस प्रोजेक्ट का उदघाट्न आधिकारिक वेबसाइट Learngrantham.com के माध्यम से किया गया।
सदविद्या प्रतिष्ठानम (SVP) का अहम लक्ष्य लोगों का संस्कृत भाषा से जुड़ाव पैदा करना है। SVP ने अपने परिचय में लिखा है कि वेदों, उपनिषदों, भगवद-गीता और पुराणों के शोधन को दिव्य भाषा “संस्कृत” के ज्ञान से अच्छी तरह से समझा जाता है। संस्कृत का ज्ञान हमारी संस्कृति के संरक्षण के लिए काफी उपयोगी है। इसीलिए वेद-शास्त्र पाठशाला’ की स्थापना वर्ष 1967 में आचार्य पद्मनाभ शर्मा (गुरुजी) द्वारा की गई थी, जिसे बाद में संस्कृत भाषा, वेदों, उपनिषदों और भगवद-गीता के प्रचार के लिए सदविद्या प्रतिष्ठानाम नाम दिया गया था। प्रतिष्ठानम की प्रबंधन समिति और विशेषज्ञों के समूह में विद्वान, वरिष्ठ नौकरशाह, कामकाजी पेशेवर और पूर्व छात्र शामिल हैं।