गुरुवार (27 जुलाई) को सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने मधुर भंडारकर की फिल्म “इंदु सरकार” के रिलीज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। फिल्म शुक्रवार (28 जुलाई) को देश के विभिन्न सिनेमाघरों में रिलीज होगी। न्यायाधीश दीपक मिश्रा के अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि फिल्म कानूनी सीमाओं में रहकर की गई “कलात्मक अभिव्यक्ति” है और इस पर रोक लगाने की कोई वाजिब वजह नहीं है। फिल्म पर रोक लगाने की मांग करने वाले याचिकाकर्ता का कहना था कि “फिल्म मनगढ़ंत तथ्यों से भरी हुई है और ये एक प्रोपगैंडा फिल्म है।” अदालत ने ये आरोप खारिज कर दिए। संजय निरुपम और जगदीश टाइटलर जैसे कांग्रेसी नेताओं ने फिल्म पर आपत्ति जताई थी। कांग्रेसी नेता चाहते थे कि रिलीज से पहले फिल्म उन्हें दिखाई जाए लेकिन मधुर भंडारकर ने इससे इनकार कर दिया। मधुर भंडारकर के वकील ने सर्वोच्च अदालत से कहा कि उन्होंने सीबीएफसी द्वारा बताए गए 14 हिस्सों को फिल्म से हटा दिया और उसके बाद उसे सेंसर सर्टिफिकेट मिल चुका है। आखिर कुछ कांग्रेसी नेता “इंदु सरकार” से क्यों डर रहे हैं?

फिल्म इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल पर आधारित है। “इंदु सरकार” के ट्रेलर को देखकर साफ जाहिर है कि फिल्म के दो मुख्य किरदार प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी से प्रेरित हैं। आपको बता दें कि “इंदु” इंदिरा गांधी का घरेलू नाम था। कांग्रेसी नेता जगदीश टाइटलर का दावा है कि फिल्म में एक किरदार उन पर आधारित है। फिल्म को लेकर कांग्रेसियों के डर को समझने से पहले इसके ट्रेलर के कुछ संवाद देखें- “अब इस देश में गांधी का मायने बदल चुका है…”, “इमरजेंसी में इमोशन नहीं मेरे ऑर्डर चलते हैं…”, “आज से आपका टारगेट 350 से नहीं, 700 नसबंदियां है…”, “भारत की एक बेटी ने देश को बंदी बनाया हुआ है, तुम वो बेटी बनो जो देश को मुक्ति का मार्ग दिखा सके…”, “सरकारें चैलेंजेज से नहीं चाबुक से चलती हैं…” , “तुम लो जिंदगी भर माँ-बेटे की गुलामी करते रहोगे…”

जाहिर है फिल्म में कांग्रेस की सबसे दुखती रग “आपातकाल”को छुआ गया है। फिल्म में संजय गांधी के तानाशाही रवैये, इंदिरा गांधी सरकार द्वारा विपक्ष के दमन, प्रेस की स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों के हनन के अलावा सिख दंगों को भी दिखाए जाने के अनुमान लगाया जा रहा है। ये सारे मुद्दे कांग्रेस के लिए पिछले तीन दशकों से सिरदर्द का सबब रहे हैं। आपको याद होगा कि इंदिरा गांधी सरकार के कामकाज के तरीके पर बनी श्रीकांत नाहटा की फिल्म “किस्सा कुर्सी का” के रील को जलवाने का आरोप कांग्रेसी नेताओं पर लगा था। केंद्र मे में  इस समय बीजेपी की सरकार है। मधुर भंडारकर कई मौकों पर पीएम नरेंद्र मोदी की तारीफ कर चुके हैं। आपातकाल में बीजेपी नेता आपातकाल की ज्यादतियों के शिकार हुए थे। ऐसे में बीजेपी राज में मोदी समर्थक निर्देशक के लोकतंत्र के “काले अध्याय” को सबसे लोकप्रिय माध्यम सिनेमा के द्वारा सामने लाने से कांग्रेस का परेशान होना स्वाभाविक है।

वीडियो- इंदु सरकार का ट्रेलर-

वीडियो- देखें दोबारा बनाई गई “किस्सा कुर्सी का”-