27 जून 2016 को भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी ने ‘पहला ऐसा इंटरव्यू’ दिया, जो किसी पद पर रहते प्रधानमंत्री ने किसी प्राइवेट न्यूज चैनल को दिया था। 8 मई 2014 को बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने पीएम इन वेटिंग के तौर पर अपना पहला इंटरव्यू एक प्राइवेट इंग्लिश चैनल को दिया था। दोनों बार टाइम्स नाऊ को ही दिया। दो साल में क्या फर्क आया? उस वक्त मई के महीने में लोकसभा चुनाव के नतीजों के एलान से पहले मोदी तनाव में थे। इसके अलावा, वे बचाव की मुद्रा में नजर आए और कुछ सवालों पर परेशान होते भी दिखे। इंटरव्यू के एक चरण में गुस्से से भरे मोदी ने कहा था, ‘मैं हैरान हूं कि टाइम्स नाऊ इस एक परिवार (गांधी फैमिली) को बचाने के लिए इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा है?’
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इस साल जून में 80 मिनट से ज्यादा के सवाल-जवाब में पीएम मोदी ने लंबे और विस्तृत जवाब दिए। वह शांत थे। पूरी तरह आत्मविश्वास से लबरेज, चिंतनशील और इतने सुकून से भरे कि वे एक दो मौकों पर हंसे भी। दूसरे शब्दों में कहें तो वे प्रधानमंत्री की गरिमा से परिपूर्ण और सवालों को लेकर निश्चिन्त दिखे। इसकी दो वजह हो सकती है। उस वक्त वे केंद्रीय सत्ता और ‘इस काम में पूरी तरह से नए’ थे। अब वे अनुभवी, दुनिया घूम चुके शासन प्रमुख हैं, जिन्होंने कई राष्ट्रपतियों और प्रधामंत्रियों से लंबी बातचीत की है। यूएस कांग्रेस और विभिन्न संसदों को संबोधित किया है।
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दो साल पहले, अरनब गोस्वामी एक ऐसे जर्नलिस्ट थे जो एक ऐसे भावी पीएम का इंटरव्यू ले रहे थे, जिनके ऊपर 2002 के गुजरात दंगों का दाग था। अरनब ने गुजरात और सांप्रदायिक राजनीति को लेकर मोदी के कैंपेन के दौरान उनसे सवाल पूछे। अरनब ने मोदी से उनके गांधी परिवार के प्रति ‘निजी खुन्नस’, स्नूपगेट (जासूसी प्रकरण) पर भी सवाल पूछे। पाकिस्तान के संदर्भ में ‘बातचीत और आतंकवाद’ पर सीधे जवाब मांगे। उन्होंने मोदी के जवाबों पर प्रतिप्रश्न किए, बोलने के दौरान बीच में रोका भी। यह एक अच्छा इंटरव्यू था, जो पत्रकारिता की बेहतरीन परंपरा के अनुरूप था।
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सोमवार को, गोस्वामी पिघले हुए मक्खन सरीखे लगे। उन्होंने सीधे सपाट और आसान सवाल पूछे। पीएम की खुलकर तारीफ की। मसलन-“historic speech”, “fantastic”, “unique”, “very aggressive foreign policy”, “pro active approach”, “terrific pace of engagement with Pakistan”, “I think it was a wonderful moment when you were speaking (अमेरिकी कांग्रेस में संबोधन के संपर्क में)”, “the amount of personal interest you have shown in foreign policy, probably none of the previous prime ministers showed the same kind of interest” वगैरह वगैरह।
उनकी आवाज में सहानुभूति के भाव थे। एनएसजी के मुद्दे पर उन्होंने पूछा, ‘क्या आप निराश हैं कि हम कामयाब नहीं हुए?…आपके (मोदी) द्वारा निजी तौर पर उठाए गए कदमों के बावजूद चीन बार-बार अड़ंगा क्यों डाल रहा है?’ संसद पर अरनब ने पूछा, ‘लोगों की जेहन में यह सवाल आता है, (क्या) पीएम नरेंद्र मोदी संसद की कार्यवाही में लगातार आ रही बाधा की वजह से अपने लक्ष्यों को पाने में पिछड़ रहे हैं?’ जीएसटी पर पूछा, ‘आपने कोशिश की। आपने पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री आवास पर मिलने के लिए बुलाया।’ अगर गोस्वामी किसी चीज पर सख्त दिखे तो वो कांग्रेस थी। उन्होंने भ्रष्टाचार की बात की। साथ में अगस्ता वेस्टलैंड डील की भी।
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अरनब ने पीएम के जवाबों को विस्तार भी दिया। ब्लैकमनी पर कहा, ‘और आपने (पीएम ने) 17 फरवरी 2015 को इस मुद्दे पर कहा कि तत्कालीन वित्त मंत्री ने सिर्फ जुबानी जमा खर्च किया।’ इंटरव्यू में गोस्वामी ने तो एक बेहद नेक सलाह भी दे डाली, ‘आपको अपना सेंस ऑफ ह्यूमर नहीं खोना चाहिए श्रीमान प्रधानमंत्री जी।’ मोदी ने अपने विचारों को विस्तृत ढंग से पेश किया और गोस्वामी ने इस काम में उनकी पूरी मदद की। अच्छा भी है, क्योंकि गोस्वामी ने पीएम से खुद कहा था-हर कोई विभिन्न मुद्दों पर आपकी बात विस्तार से सुनना चाहता है।
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संसद, एनएसजी, जीएसटी, पाकिस्तान, चीन, अर्थव्यवस्था आदि मुद्दों पर सिर्फ पूरक सवाल ही पूछे जाने चाहिए थे, क्योंकि मोदी सरकार आखिरकार इन मामलों में ‘प्रोएक्टिव’ है। हालांकि, ऐसा हुआ नहीं और पीएम के किसी भी जवाब को काटा नहीं गया, सिवाए एक के। पीएम ने कहा कि उलजलूल बयान देने वालों को मीडिया हीरो बनाती है। गोस्वामी बस इतना विरोध कर पाए, ‘हम उन्हें हीरो नहीं बनाते, हम उन्हें विलेन बनाते हैं।’
बीते 48 घंटों में टाइम्स नाऊ ने पीएम के इंटरव्यू को लेकर अपनी उपलब्धि का खासा बखान किया है। मसलन-छह घंटों तक टॉप ट्रेंड में, टि्वटर पर एक बिलियन, 2016 का सबसे बड़ा इंटरव्यू। खुलकर कहूं तो यह ‘बेहद दिलचस्प’ इंटरव्यू था। इससे ज्यादा बेहतर स्तर की पत्रकारिता होती अगर 2014 वाले गोस्वामी का सामना 2016 के मोदी से होता। जैसा कि यह था या कहें जैसा कि यह नजर आया, सोमवार को दो इंटरव्यू हुए। एक मोदी के साथ और दूसरा गोस्वामी के साथ। गोस्वामी जो मोदी के प्रवक्ता के तौर पर दिखे।