उमा शंकर पांडेय
दुनिया में पानी को लेकर कई तरह के शोध और खोजें हो रही हैं, पानी को बचाना और उसको पीने योग्य बनाना आज के समय में एक बड़ी चुनौती साबित हो रही है। दुनिया के कई ऐसे देश हैं, जहां पीने योग्य पानी को पाने के लिए लोगों को काफी मेहनत करनी पड़ रही है। करीब-करीब दुनिया के सभी देशों में पेयजल की समस्या गहरा रही है। अन्य देशों की तुलना में भारत अपनी प्राकृतिक संपदा और नदी-घाटी सभ्यता की वजह से औरों से अच्छी स्थिति में है।
हमारी संस्कृति और सभ्यता में जल एक वस्तु भर नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन के निर्माण में लगे पांच-तत्वों में से एक है। कहा गया है कि “क्षिति जल पावक गगन समीरा, पंच तत्व मिलि बनय शरीरा।।” भारतीय दर्शन तथा योग में भी इसका उल्लेख किया गया है। कहने को तो पृथ्वी का लगभग 75 प्रतिशत भाग पानी से भरा है, लेकिन वह पानी पीने योग्य नहीं है। भारत में कई शहर नदियों के किनारे बसे हैं और कई शहर नदियों से काफी दूर हैं। कई शहर बहुत सूखाग्रस्त हैं तो कई बाढ़ग्रस्त रहते हैं।
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच बुंदेलखंड क्षेत्र का बड़ा हिस्सा पानी की कमी वाले भाग में पड़ता है। कुछ समय पहले तक जमीन के अंदर का जलस्तर काफी नीचे था। कुएं में 50 से लेकर 100 फीट नीचे जाने पर थोड़ा बहुत पानी मिल पाता था। वह भी अक्सर गर्मियों में सूख जाता था। भयंकर सूखे के कारण मनुष्यों के साथ-साथ पशुओं की भी हालत खराब थी। पशु-संपदा नष्ट हो रही थी। सरकारों को माल गाड़ियों में भरकर लोगों के लिए पीने योग्य पानी भेजना पड़ रहा था। तब स्थिति ऐसी थी कि यहां पानी की कमी और खेती नहीं हो पानी के कारण गरीबी, बेरोजगारी, अपराध, निर्जनता तेजी से फैल रही थी। किशोरावस्था से युवावस्था में पहुंचने से पहले ही लड़के विवश होकर जीविका के लिए या तो दूसरे शहरों की ओर पलायन करते थे या फिर अपराध की राह पकड़कर चोरी और लूटमार जैसे धंधों को अपना लेते थे।
इन सबको देखकर और सामाजिक सरोकार की भावना के कारण बुंदेलखंड के बांदा जनपद के जखनी गांव में हम लोगों ने एक नया प्रयोग शुरू किया। बारिश के पानी को बचाने के लिए पुरुखों की बताई विधि को अपनाने का उपक्रम शुरू किया। खेतों में मेड़बंदी करके उस पर पेड़ों को रोपे और “खेतों पर मेड़, मेड़ों पर पेड़” विधि से बारिश के पानी का संचय करना शुरू किया। पहले हमारे इस काम में कुछ लोग हमसे जुड़े, बाद में कुछ और लोगों ने हमारा साथ पकड़ा, बाद में पूरा गांव और दूसरे गांवों के लोगों ने भी इसको अपनाया। आज स्थिति यह है कि केंद्रीय भूजल बोर्ड के मुताबिक सूखाग्रस्त क्षेत्र बांदा के जलस्तर में एक मीटर 38 सेमी का इजाफा हुआ है। जिस जलस्तर को बढ़ाने के लिए सरकारें अरबों रुपए खर्च कर रही हैं, उसे हम सब ग्रामवासियों ने बिना किसी सरकारी अनुदान के स्वयं ही कर लिया।
हमारा मानना है कि पुरखों के समय से चली आ रही खेती और जल बचाने की विधि को अगर पूरे देश ने अपनाया होता तो भारत में जलसंकट जैसी स्थिति कभी नहीं आती। हमारे प्रयास की सूचना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुंची तो उन्होंने भी ग्राम प्रधानों को लिखे पत्र में इस मेड़बंदी विधि का खास तौर पर उल्लेख किया। हमारा गांव बांदा जनपद का जखनी रोल मॉडल बन गया। स्वयं केंद्रीय भूजल बोर्ड, नीति आयोग भारत सरकार और जलशक्ति मंत्रालय ने जखनी मॉडल को मान्यता दी।

जल संरक्षण के हमारे इस संकल्प की प्रेरणा हमें आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन के संघर्ष से मिली। बाद में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे कलाम के विचारों ने प्रभावित किया। हमारा गांव जखनी जल ग्राम घोषित हो चुका है। जखनी के किसानों-नौजवानों ने जन आंदोलन को जल आंदोलन में बदल दिया। वह भी समुदायिक आधार पर बिना किसी अनुदान के परंपरागत विधि से भूजल संरक्षण करके यह सफलता प्राप्त की। हमारा नारा ‘खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़’ पूरे बुंदेलखंड के लिए एक मिसाल बन गया है। नीति आयोग ने जलग्राम जखनी जैसे परंपरागत सामूहिक जल संरक्षण के प्रयास को पूरे देश में अपनाए जाने की जरूरत पर बल दिया है।
हम सब लोग सर्वोदय कार्यकर्ता रहे हैं। गांधीवादी मूल्यों और विचारों से प्रभावित रहे हैं। हमारी इस तपस्या और संकल्प का असर यह हुआ कि सूखे बुंदेलखंड में जखनी के किसान अपने संसाधन से खेतों में बड़ी संख्या में मेड़बंदी कर बासमती पैदा कर रहे हैं। केंद्रीय और राज्य सरकारों के कई मंत्री, सांसद, विधायक हमारे इस काम को स्वयं आकर देख चुके हैं। नीति आयोग भारत सरकार के जल सलाहकार अविनाश मिश्र ने हमारे इस प्रयास में काफी मार्गदर्शन किया। पिछले कई वर्षों से उन्होंने मेड़ के ऊपर कौन-कौन सी फसल लगाएं, कौन-कौन पेड़ लगाएं आदि की तकनीकी जानकारी दी। उनके मुताबिक “मेड़बंदी प्रयोग से बुंदेलखंड का भूजल स्तर ऊपर आया है, काफी सुधार हुआ है। मेड़बंदी वर्षा जल संरक्षण की बहुत पुरानी विधि है जो विलुप्त हो रही थी। इसको जखनी ग्रामवासियों ने जीवित कर मानव समाज के लिए एक नया रास्ता सुझाया है।”

(लेखक सर्वोदय कार्यकर्ता हैं और आदर्श जल ग्राम जखनी के अध्यक्ष हैं)