एम वैंकैया नायडू (केंद्रीय मंत्री)
पांच और हजार के पुराने नोटों के विमुद्रीकरण के साहसिक, क्रांतिकारी और ऐतिहासिक फैसले से न सिर्फ भ्रष्टाचारियों और कालाधन जमा करने वालों के खात्मे का काम किया है बल्कि पाकिस्तान के आतंकवाद को फंडिंग करने और जाली नोटों के जरिए भारतीय अर्थव्यवस्था को नाकाम करने की घृणित नीति पर शक्तिशाली हथौड़ा मारा है। आम जनता के सामने तो प्रधानमंत्री ने फैसले का अचानक से एलान किया था लेकिन यह बहुत सोच-समझ कर, भले-बुरे सभी पक्षों पर मंथन करने के बाद उठाया गया कदम था। परिदृश्य बदल देने वाले इस कदम का मकसद सार्वजनिक जीवन का शुद्धीकरण करना है, खासकर राजनीतिक जीवन का। इस साहसिक कदम को सभी लोगों ने सलाम किया है। कुछ भ्रष्ट धनवानों को छोड़ दें तो खासकर मध्यमवर्ग और आम जनता ने इसका स्वागत किया है। पिछले दो से ढाई साल में राजग सरकार ने ऐसे बहुत से कदम उठाए हैं जिसके कारण 1.25 लाख करोड़ का कालाधन बेनकाब किया गया है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने देश को इस बात के लिए आगाह और तैयार किया है कि कालाधन जमा करने वालों के खिलाफ सरकार बेहद सख्त होने जा रही है।
जब भ्रष्टाचार और कालाधन भारतीय अर्थव्यवस्था के अहम अंगों को खोखला कर रहा था और यथार्थ में अपराधियों व घृणित व्यवसाय करने वालों के लिए समानांतर अर्थव्यवस्था तैयार कर रहा था तब प्रधानमंत्री ने 500 और 100 रुपए के नोटों के विमुद्रीकरण का ऐलान कर यह साबित कर दिया कि वे जो कहते हैं वह करते हैं। इसके विपरीत पूर्ववर्ती सरकार ने गरीबों की सिर्फ मौखिक सेवा की और धनवानों व लोभियों के हितों की रक्षा की। अब बिस्तर के नीचे रखा छुपाया पैसा कागज का टुकड़ा बन कर रह जाएगा। यह क्रांतिकारी कदम भ्रष्टाचार उन्मूलन के साथ महंगाई कम करने में भी मददगार होगा। रीयल स्टेट क्षेत्र में कुछ सुधार दिखेगा, जमीन की कीमतों में कमी आने की उम्मीद है साथ ही लोग अपनी क्षमता के अनुसार घर खरीदने में सक्षम हो सकेंगे। अंतत: आम आदमी को ही फायदा पहुंचेगा।
नि:संदेह यह उन हथियारों के सौदागरों और तस्करों के लिए बड़ा धक्का साबित होगा जो आतंकवादियों के हाथ मजबूत करने का काम करते हैं। अब पाकिस्तान को जाली नोट छापने वाले अपने सभी प्रिंटिंग प्रेस को रोकना पड़ेगा। मंगलवार रात प्रधानमंत्री के एलान के बाद देश की आबादी का बड़ा हिस्सा चैन की नींद सोया। सिर्फ कालेधन के जमाखोरों की नींद उड़ रही और आने वाले कुछ समय तक उनका रतजगा चलता रहेगा। वे खुलेआम न तो सो सकते हैं और न रो सकते हैं। ऐसे लोगों के लिए किसी तरह की सहानुभूति की जरूरत नहीं है।
500 और 1000 रुपए के नोटों को चलन से बाहर करने का फैसला उस सही वक्त लिया गया है जब भारत वैश्विक व्यापार का चमकता केंद्र है। और जहां तक आतंरिक बात है जनधन जैसी योजना इस बात का भरोसा देती है कि आर्थिक समावेशन के इस कदम के कारण किसी भी व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
अगर वित्तीय व्यवस्था ठीक होगी तो जाहिर तौर पर सरकार का राजस्व मजबूत होगा और देश के धन का इस्तेमाल गरीबी दूर करने में होगा। हो सकता है कि इससे कुछ दिनों तक लोगों को परेशानी हो लेकिन आगे चलकर यह भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करेगा। यह साहसिक कदम मध्यवर्ग और गरीबों के लिए नए मौके प्रदान करेगा। यह एक महायज्ञ है और आइए हम सब अखंडता और विश्वसनीयता के इस पर्व में शामिल हों।