मनोज दास

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एक अप्रैल को उत्कल दिवस मनाया जाता है। ‘उत्कल’ पूर्वी भारत के ओडिशा राज्य का का प्राचीन नाम है। यह क्षेत्रफल के हिसाब से देश का 8वां सबसे बड़ा और जनसंख्या के हिसाब से 11वां सबसे बड़ा राज्य है। ओडिशा अपने प्राचीन हेरिटेज साइट्स और मनोरम दृश्यों के लिए प्रसिद्ध है। समुद्र तटों से लेकर तीर्थ स्थलों तक, दुनियाभर के लाखों पर्यटक हर साल यहां आते हैं। पुरी बीच फेस्टिवल और जगन्नाथ रथ यात्रा तो दुनियाभर में चर्चित है। ओडिशा भारत का पहला राज्य है जिसने 1996 में अपने बिजली क्षेत्र में सुधार किया। यहां कोयला, चूना पत्थर, डोलोमाइट, टिन, वैनेडियम, लेड जैसे अन्य खनिजों के साथ उच्च श्रेणी के लौह अयस्क, बॉक्साइट, क्रोमाइट, मैंगनीज अयस्क के प्रचुर भंडार उपलब्ध हैं। साथ ही बहुमूल्य ग्रेफाइट, सोना, रत्न, हीरा और तमाम सजावटी पत्थर भी यहां मिलते हैं।

ओडिशा को एक अप्रैल 1936 को ब्रिटिश भारत में एक प्रांत के रूप में स्थापित किया गया था। तब इसमें मुख्य रूप से उड़िया भाषी क्षेत्र शामिल थे। ओडिशा के सांस्कृतिक आकर्षणों में पुरी का जगन्नाथ मंदिर, भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर और कोणार्क का सूर्य मंदिर प्रमुख है, जिसका स्थापत्य और वैभव अतुलनीय है। नीलगिरि (बालेश्वर) के प्रसिद्ध पत्थर के बर्तन देश-दुनिया में प्रसिद्ध हैं। जबकि संबलपुरी के वस्त्र कलात्मक भव्यता को नया आयाम देते हैं। ओडिशा का पुरी समुद्र तट तो अपनी रेत की मूर्तिकला के लिए दुनियाभर में चर्चित हैं। पुरी की रेत की मूर्तियां दुनियाभर को संदेश देती हैं।

ओडिशा में विशेष रूप से हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म की एक सतत परंपरा रही है। हिंदू धर्म में पुनरुद्धार का एक हिस्सा आदि शंकराचार्य के कारण था, जिन्होंने पुरी को हिंदू धर्म के चार सबसे पवित्र स्थानों या चार धामों में से एक घोषित किया था। इसलिए यहां तीन धर्मों का एक समन्वित मिश्रण है क्योंकि पुरी के जगन्नाथ मंदिर को हिंदुओं, बौद्धों और जैनियों द्वारा पवित्र माना जाता है।

वर्तमान में, इस राज्य की बहुसंख्यक आबादी हिंदू है। पिछली जनगणना के अनुसार, यह भारत में तीसरा सबसे बड़ा हिंदू आबादी वाला राज्य है और हिंदू धर्म की समृद्ध आस्था-सांस्कृतिक विरासत का केंद्र रहा है। उदाहरण के तौर पर ओडिशा में हिंदू धर्म के तमाम बहुचर्चित संत हुए। संत भीम भोई महिमा संप्रदाय आंदोलन के नेता थे। तो महान कवि सारला दाश भी यहीं के हैं, जिन्होंने उड़िया में महाभारत लिखी थी। उन्होंने न सिर्फ संस्कृत मूल का अनुवाद किया था बल्कि भावार्थ भी प्रकट किया। ‘सारला महाभारत’ में संस्कृत संस्करण की 100,000 छंद की तुलना में 152,000 छंद हैं।  दूसरी तरफ, चैतन्य दास, जो बौद्ध-वैष्णव थे और “निर्गुण महात्म्य” के लेखक हैं और जयदेव जो गीत गोविंद के लेखक थे, वे भी यहीं के पावन धरा के थे। इसी तरह स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती आदिवासी विरासत के एक आधुनिक हिंदू संत थे।

16वीं शताब्दी में और पांच कवियों का उदय हुआ- बलराम दास, जगन्नाथ दास, अच्युतानंद दास, अनंत दास और जशोबंत दास। हालांकि इनके बीच सैकड़ों वर्ष का अंतर था, लेकिन ये ‘पंचशखा’ के रूप में जाने जाते हैं। क्योंकि वे एक ही विचारधारा- ‘उत्कलीय वैष्णववाद’ में विश्वास करते थे। पत्र-पत्रिकाओं की बात करें तो पहली ओड़िया पत्रिका “बोध दयिनी” 1861 में बालेश्वर से प्रकाशित हुई थी। इस पत्रिका का मुख्य उद्देश्य ओड़िया साहित्य को बढ़ावा देना और सरकारी नीति की खामियों की ओर ध्यान आकर्षित दिलाना था। इसी तरह पहला ओड़िया पेपर, “द उत्कल दीपिका” साल 1866 में स्वर्गीय गौरी शंकर राय के संपादकीय में प्रकाशित हुआ।

साहित्य की बात करें तो फकीर मोहन सेनापति (1843-1918) को व्यास कवि या ओड़िया भाषा का संस्थापक कवि भी कहा जाता है। आधुनिक ओड़िया फिक्शन के तमाम कवि उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। फकीर मोहन सेनापति को उनके उपन्यास “छ माण आठ गुंठ” के लिए जाना जाता है। यह सामंतों द्वारा भूमिहीन किसानों के शोषण की तरफ ध्यान दिलाने वाला पहला भारतीय उपन्यास है। ये उपन्यास रूस की अक्टूबर क्रांति से बहुत पहले और भारत में मार्क्सवादी विचारों के उभरने से काफी पहले लिखा गया था। इसी तरह उत्कलमणि गोपबंधु दास (1877-1928) ने पुरी के पास साक्षीगोपाल में “सत्यबादी बनबिद्यालय” नामक एक स्कूल की स्थापना की थी और एक आदर्शवादी साहित्यिक आंदोलन ने इस युग के लेखकों को प्रभावित किया था। गोदावरीशा महापात्र, कुंतला-कुमारी साबत इस युग के अन्य प्रसिद्ध लोग थे ।

ओड़िया संगीत इस राज्य का पारंपरिक शास्त्रीय संगीत है जो पुरी के जगन्नाथ मंदिर में एक सेवा के रूप में पनपा। बाद में इसे जयदेव, उपेंद्र भंज, दिनकृष्ण दाश, बनमाली दाश कबिसूर्य बलदेबा रथ, गोपालकृष्ण पटनायक और अन्य जैसे महान संगीतकारों द्वारा विकसित किया गया था। ओडिसी संगीत का 2000 से अधिक वर्षों का इतिहास है। ओडिशा की समृद्ध संस्कृति के चलते यहां का संगीत भी उतना ही समृद्ध रहा है। इसमें कई श्रेणियां शामिल हैं। इनमें से पांच बहुचर्चित हैं। आदिवासी संगीत, लोक संगीत, हल्का संगीत, हल्का शास्त्रीय संगीत और शास्त्रीय संगीत।

इसी तरह ओडिशा के ओडिसी नृत्य की 2000 वर्षों से ज्यादा की समृद्ध-गौरवशाली परंपरा रही है। भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में भी इसका उल्लेख मिलता है। जो संभवतः लगभग 200 ईसा पूर्व लिखा गया था। हालांकि, ब्रिटिश काल के दौरान ये नृत्य कला लगभग विलुप्त हो गई थी, स्वतंत्रता के बाद इसे पुनर्जिवित किया गया। “महारी नृत्य” यहां के महत्वपूर्ण नृत्य रूपों में से एक है। यह नृत्य ओडिशा के मंदिरों में उत्पन्न हुआ। “गोटीपुआ नृत्य” ओडिशा में नृत्य का एक और रूप है। ओड़िया बोलचाल की भाषा में गोटीपुआ का अर्थ एकल लड़का है। एकल लड़के द्वारा किए गए नृत्य प्रदर्शन को ‘गोटीपुआ नृत्य’ के नाम से जाना जाता है।

खानपान की बात करें तो जगन्नाथ पुरी की प्रसिद्ध रसोई दुनिया की सबसे बड़ी रसोई मानी जाती है, जिसमें एक हजार रसोइये हैं। जो हर दिन 10,000 से अधिक लोगों को खिलाने के लिए 752 मिट्टी के चूल्हे पर लकड़ी जलाकर काम करते हैं। “छेना पोड़ा”  यहां की प्रसिद्ध मिठाई है, जिसकी उत्पत्ति नयागढ़ जिले से हुई है। चावल, पानी और दही से बना एक व्यंजन “पखाल”, गर्मियों में विशेष रूप से बहुत लोकप्रिय है। यहां के मूल निवासी मिठाइयों के बहुत शौकीन हैं और मिठाई के बिना कोई भी भोज पूरा नहीं माना जाता है।

यहां की हथकरघा साड़ियां दुनियाभर में चर्चित हैं। चार प्रमुख साड़ियां- संबलपुरी इकत, संबलपुरी बंध, संबलपुरी बोमकाई और संबलपुरी सप्तपर हैं। उड़िया साड़ी अन्य रंगों जैसे क्रीम, मैरून, ब्राउन और रस्ट में भी उपलब्ध हैं। इन साड़ियों पर आकृति बनाने के लिए राज्य के बुनकरों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली टाई-एंड-डाई तकनीक अद्वितीय है। यह तकनीक उड़िया साड़ियों को अपनी एक पहचान देती है। इसीलिये ओडिशा को उसकी संस्कृति, ऐतिहासिकता और विरासत के कारण भारत की आत्मा कहा जाता है।

(लेखक मनोज दास, आनंदम फाउंडेशन के महासचिव हैं।)