सुप्रीम कोर्ट ने अनुराग ठाकुर को बीसीसीआई अध्यक्ष पद से हटा दिया है। उनके साथ ही अजय शिर्के की सचिव पद से छुट्टी कर दी गई। जस्टिस लोढ़ा कमिटी की सिफारिशों को ना मानने के चलते कोर्ट ने यह कदम उठाया है। हालांकि बीसीसीआई की ओर से कहा गया था कि उसने 80 प्रतिशत सिफारिशों को अपना लिया है। लेकिन तीन सिफारिशों को लेकर बीसीसीआर्इ झुकने को तैयार नहीं था। इनमें शामिल हैं, कूलिंग ऑफ पीरियड, एक राज्य एक वोट और अधिकारियों का कार्यकाल और उम्र सीमा।
लोढ़ा कमिटी का कहना था कि एक अधिकारी लगातार दो कार्यकाल नहीं कर सकता। उसे बीच में एक बार पद से हटना होगा। वहीं प्रत्येक राज्य का एक वोट गिना जाएगा। साथ ही एक व्यक्ति एक ही पद पर रह सकता है और 70 साल पार करने वाले अधिकारियों को पद छोड़ना होगा। गौरतलब है कि बीसीसीआई में सभी राज्यों का प्रतिनिधित्व नहीं है। इसमें महाराष्ट्र से तीन वोट हैं, मुंबई, महाराष्ट्र और विदर्भ का। इसी तरह से ज्यादातर क्रिकेट संघों पर नेताओं का भी कब्जा है।
अगर इन्हीं तीन आधारों पर अनुराग ठाकुर और अजय शिर्के को हटाया गया है तो इस फैसले को उन पर ज्यादती कहना अति नहीं होगा। इस तरह की तमाम बुराइयां देश के लगभग सभी खेल संघों में मौजूद हैं। बीसीसीआई इकलौता खेल संघ है जो सरकार से कोई आर्थिक मदद नहीं लेता बल्कि वह अन्य खेलों की मदद करता रहा है। क्रिकेट को अगर इस देश में धर्म माना जाता है तो इसका श्रेय बीसीसीआर्इ को भी जाना चाहिए। 1983 में जब टीम इंडिया ने पहली बार वर्ल्ड कप जीता था तब बोर्ड ने अपने दम पर पैसे जोड़े और खिलाडि़यों को दिए। इसके बाद से बोर्ड का कद लगातार बढ़ता गया।
आज बीसीसीआई दुनिया की सबसे ताकतवर क्रिकेट संस्था है तो इसकी वजह उसका संचालन ही है। इसमें जगमोहन डालमिया का सबसे ज्यादा योगदान है। भारतीय क्रिकेटर्स को सबसे ज्यादा पैसा मिलता है। पूर्व क्रिकेटर्स को भी पेंशन मिलती है। दुनिया के सबसे ज्यादा क्रिकेट स्टेडियम भारत में ही है। यह बीसीसीआई के कारण ही संभव है छोटे से गांव का क्रिकेटर भी वैश्विक प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधि बन सकता है।
बीसीसीआई पर आरोप है कि वह अपने फैसलों, जिनमें वित्तीय और सांगठनिक शामिल है, को लेकर पारदर्शी नहीं है। वह नहीं चाहता कि कोई उससे सवाल करे। उसका कामकाज कैसे होता है कि इसकी जानकारी किसी को नहीं दी जाती। सभी राजनीतिक पार्टियों के लोग बीसीसीआई के दफ्तर में मिले हुए हैं। लेकिन व्यापक स्तर पर देखिए तो देश की ऐसी कौनसी खेल संस्था है जो इन पैमानों पर खरी उतरती है। बीसीसीआई में अध्यक्ष और बाकी पदों के लिए बाकायदा चुनाव होते हैं हालांकि उसमें लोकतंत्र नाम का होता है। लेकिन बाकी खेल संस्थाओं में तो ऐसा भी नहीं होता। और किस खेल संस्था में राजनेता नहीं है?
एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल बरसों से फुटबॉल संघ के मुखिया हैं। भाजपा नेता विजय कुमार मल्होत्रा 44 साल से तीरंदाजी संघ की जिम्मेदारी संभाल रहे हें। इन दोनों में भारत की क्या स्थिति है, सबको पता है। बॉक्सिंग फेडरेशन की मान्यता कई बार वैश्विक संस्था से रद्द हो चुकी है। इसका खामियाजा कौन भुगत रहा है। अगर खिलाडि़यों को खेल संस्थाओं में आगे लाने का मुद्दा है तो एथलेटिक्स एसोसिएशन को छोड़कर और कहीं भी कोई खिलाड़ी किसी खेल संस्था का मुखिया नहीं है।
अनुराग ठाकुर खिलाड़ी रहे हैं लेकिन उनकी इस योग्यता पर सवालिया निशान है। लेकिन बीसीसीआर्इ ने सचिन तेंदुलकर, वीवीएस लक्ष्मण को खेल सुधार के लिए नियुक्त कर रखा। सौरव गांगुली बंगाल क्रिकेट के मुखिया हैं। टीम इंडिया का कोच बनने से पहले अनिल कुम्बले तकनीकी समिति में थे। राहुल द्रविड़ के जिम्मे युवा टीम की कमान है। हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन की कमान अरशद अयूब के पास हैं वे पूर्व क्रिकेटर हैं। कर्नाटक किक्रेट एसोसिएशन के अध्यक्ष पूर्व क्रिकेटर पीआर अशोकानंद हैं। इससे साफ होता है कि बीसीसीआई अगर पारदर्शी नहीं थी तो तानाशाह भी नहीं थी। लेकिन शायद अनुराग ठाकुर की गलती यह थी कि वह एक क्रिकेट संस्था के प्रमुख थे। पाकिस्तान से रिश्ते खराब होने पर भी इस देश में सबसे पहले क्रिकेट को बंद किए जाने की मांग होती है। इसलिए पारदर्शिता का तीर भी इसी पर छोड़ दिया गया।