बिहार विधान सभा चुनाव समाप्त हो चुके हैं। व‍िपक्ष द्वारा भारी बेरोजगारी, नौकरियों की तलाश में बिहारियों के अन्य राज्यों में पलायन जैसे मुद्दों को उठाने के बावजूद NDA ने स्पष्ट बहुमत हासिल क‍िया। इससे यह स्पष्ट होता है कि अधिकांश राज्यों के साथ-साथ ब‍िहार में भी मतदाता इस बात से चिंतित नहीं हैं क‍ि उनके राज्य में गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण, स्वास्थ्य सेवा, बढ़ती कीमतों, भ्रष्टाचार आदि समस्‍याएं हैं और मतदान के वक्‍त इन मुद्ददों को ध्‍यान में रखा जाए।

मतदान के वक्‍त जाति और धर्म ही सबसे अध‍िक महत्व रखता है । NDA को बिहार में उच्च जाति के हिंदुओं (लगभग 16%) और यहां तक कि गैर यादव OBC वर्ग का बड़ा समर्थन था । बिहार में कुल OBC की आबादी लगभग 52% है, लेकिन RJD का समर्थन करने वाले यादव केवल 12% हैं। गैर यादव OBC की एक शिकायत जो हमेशा रही है वह है कि- एक यादव मुख्यमंत्री के तहत कलेक्टर, पुलिस स्टेशन अधिकारी (दरोगा) आदि अधिकारियों की मनचाही पोस्टिंग आमतौर पर यादवों के लिए ही होती हैं।

जबकि गैर यादव OBC वर्ग को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। इसके अलावा, ओवैसी की AIMIM (जिसने 5 सीटें जीतीं, और दूसरों में सेंध लगाई) ने मुस्लिम वोटों को विभाजित किया, जो कि सभी RJD में चले जाते , जो परिणामस्वरूप NDA के लिए फायदेमंद साबित हुआ।मेरी भविष्यवाणी है कि आगामी पश्चिम बंगाल चुनाव (अप्रैल-मई 2021 में होने की संभावना है) मे भी भाजपा बहुमत हासिल करेगी। पश्चिम बंगाल में जाति का अधिक महत्व नहीं है, लेकिन हाल के वर्षों में धर्म महत्वपूर्ण हो गया है।

राज्य पहले धर्मनिरपेक्षता का गढ़ था। हाल के वर्षों में राज्य धार्मिक तर्ज पर बड़े पैमाने पर ध्रुवीकृत हो गया है। इसका दोष मुख्य रूप से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को जाना चाहिए। चूंकि राज्य की 27% से अधिक आबादी मुस्लिम है, ममता ने सोचा कि उसे इस वोट बैंक को सुरक्षित करना चाहिए, और इस उद्देश्य के लिए पश्चिम बंगाल में उन्होंने कुछ कदम उठाये जिसके कारण वहां की 70.5% हिंदू आबादी को बहुत ठेस पहुंची।

उदाहरण के लिए –
(1 ) अप्रैल 2012 में उनहोंने मस्जिदों में प्रत्येक इमाम को 2500 रु per month और प्रत्येक मुअज़्ज़िन (और पश्चिम बंगाल में उनकी हजारों में संख्या है ) को 1500 रु per month देने की घोषणा की। इस आदेश को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने भेदभावपूर्ण बताया।

(2 ) अक्टूबर 2016 में उन्होंने 12 अक्टूबर को शाम 4 बजे के बाद दुर्गा पूजा मूर्ति विसर्जन पर रोक लगाने का आदेश पारित किया क्यूँ की अगले दिन, 13 अक्टूबर को मोहर्रम था। यह भी राज्य सरकार के खिलाफ सख्ती के साथ उच्च न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया गया था।

(3) उन्होंने कोलकाता में NRC और CAA के खिलाफ रैलियां निकालीं, जिससे हिंदू नाराज़ हो गए, जिन्होंने सोचा कि ये कानून पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी मुसलमानों की आमद को रोकने के लिए आवश्यक हैं।

इन सभी कदमों ने बंगाली हिंदुओं के बीच एक धारणा बनाई कि ममता केवल मुसलमानों की परवाह करती हैं, और हिंदुओं की उपेक्षा करती हैं, जबकि हिन्दू राज्य की आबादी का 70% से अधिक हैं।

इसका परिणाम यह हुआ है कि बंगाली हिंदू, जो पहले धर्मनिरपेक्ष थे, आज बड़े पैमाने पर ध्रुवीकृत हैं, और वे अब भाजपा के पक्ष में मतदान करेंगे। यह इस तथ्य से स्पष्ट हो जाता है कि जबकि 2016 के पश्चिम बंगाल राज्य के चुनाव में भाजपा ने 294 सीटों में से केवल 3 सीटें जीती थीं, 2019 के लोकसभा चुनावों में उसे पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 18 सीटें लीं । यह इस तथ्य के साथ युग्मित है कि ओवैसी फिर से मुस्लिम वोटों को विभाजित करेंगे (जैसा कि वह बिहार में करने में सफल रहे) और यह इंगित करता है कि भाजपा पश्चिम बंगाल में आगामी राज्य चुनाव जीतेगी।

(लेखक सुप्रीम कोर्ट के र‍िटायर्ड जज हैं और लेख में व्‍यक्‍त व‍िचार उनके न‍िजी हैं।)