दो दिन गाय के, बाकी गोरक्षकों के पीएम गोरक्षकों से नाराज दिखे। लगातार दो दिन उन्होंने गोरक्षकों को फटकारा कि अस्सी फीसद रात को आपराधिक काम करते हैं और दिन में गोरक्षक बन जाते हैं, ऐसे गोरक्षकों पर सरकारें डोजियर तैयार करें, कानूनी कार्रवाई करें!
लगा कि पीएम की फटकार का गोरक्षकों पर कुछ असर होगा, लेकिन वे तो ऐसे हेकड़ निकले कि पीएम को ही आंखें दिखाने लगे। उच्चपदासीन एक गोरक्षक ने चैलेंज दिया कि हजारों गोरक्षक पीएम के बयान पर अपना सख्त एतराज दर्ज करने वाले हैं। पीएम की फटकार गोरक्षकों का अपमान है। यह अपमान बर्दाश्त नहीं किया जा सकता!
बड़ा अनर्थ होता दिख रहा है मालिक! जिनकी फटकार से सब डरते हों, उन्हीं को आंखें दिखाना! लगता है, गोरक्षकों और सरकार में ठन के रहेगी। आगे क्या होगा? यह या तो पीएम जानें या गोरक्षक जानें! हमें तो अब ‘गउ माता’ के नाम से भी डर लगता है जी!
तबेले में ‘गोदान’
इंडिया टुडे चैनल ने ही सबसे पहले खोज-रपट दिखाई कि राजस्थान के सरकारी तबेले में रक्षित सैकड़ों गाएं अचानक मरी पाई गर्इं। सरकार चेती। अब जांच कर रही है कि कैसे मरीं!
लेकिन खबर का ऐसा अद्भुत मैनेजमेंट कि दूसरे किसी चैनल ने इस ‘गोदान’ पर बहुत हो-हल्ला न किया। पीएम की फटकार के बाद गोरक्षक ब्रिगेडों पर चीखने वाले एंकरों तक ने ध्यान नहीं दिया। सिर्फ करन थापर द्वारा आयोजित एक चर्चा में तबेले के इस निष्ठुर ‘गोदान’ पर उंगली रखी गई। समाजशास्त्री शिव विश्वनाथन ने कहा कि आज गाय न केवल हिंसा का प्रतीक, बल्कि हिंसा का कारण भी बन गई है!
अगर ऐसा किसी गैर-भाजपा राज्य में हो गया होता तो कथित गोरक्षकवर्ग ने उस सरकार को हिला दिया होता!
पत्थर, मरहम और बेरहम
एमपी में पीएम ने कश्मीर को लेकर कुछ इस तरह कहा: जिनके हाथ में लैपटाप होना था, किताब होनी थी, वॉलीबाल होनी थी उनके हाथ में पत्थर कौन दे गया? अटलजी का मंत्र याद आया: ‘इंसानियत, कश्मीरियत, जम्हूरियत’! तीन शब्दों का मरहम बनाएंगे। लगाएंगे।
लेकिन एक परम राष्ट्रवादी एंकर के लिए चैनल मरहम का जिक्र करना तक कुफ्र दिखा! चर्चा में एक नाराज कश्मीरी पंडित ने क्षुब्ध होकर कहा: छह सौ पचास पत्थर फेंकने वालों को छोड़ा किसने? वहां की सरकार ने! अब पूछते हैं कि पत्थर क्यों फेंके जा रहे हैं?
इस तरह संसद में कश्मीर था। कश्मीर बहस में था। सांसद थे। भावुक भाषण थे। देशभक्ति थी। संविधान था। घाटी का असंतोष था। बुरहान वानी था। आतंकवाद था। पीएम अटलजी के कथित तीन शब्द थे: इंसानियत, जम्हूरियत, कश्मीरियत! और तीन शब्दों के मरहम को सब ढूंढ़ रहे थे, लेकिन मरहम का टोटा था! पहले बने तो, फिर लगाएं। मगर इसमें भी मुश्किल: जनता को ज्यादा लगाया तो सुरक्षा बलों का मनोबल गिरा और मनोबल बढ़ाया, तो पत्थर पड़े! अंत में, शांति और एकजुटता के लिए गृहमंत्रीजी ने सदन का आभार व्यक्त कर प्रस्ताव किया कि कश्मीर की समस्या संविधान के भीतर हल की जाएगी। संवाद होगा। कश्मीर को भारत से कोई छीन नहीं सकता और अब पाक कब्जे वाले कश्मीर की बात भी की जाएगी! लेकिन सांसदों का उलाहना जमा रहा: ‘बहुत बहुत कम और वह भी बहुत देर से!’
शाम हुई तो बाकी चैनलों में तो सदन की लाइन चली, लेकिन टाइम्स नाउ का राष्ट्रवादी एंकर पूरे एक घंटे संसद की चर्चा पर बौखलाया पूछता-पुछवाता रहा कि वहां किससे बात करें? सत्तर राइफलें छीनी गर्इं, तेईस सौ नौ नागरिक घायल हैं और चार हजार सुरक्षाकर्मी घायल हैं, यह भूल गए? पाकिस्तान का रोल भूल गए? विदेशी फंडिंग और अलगाववादियों को पाक का समर्थन रोके बिना क्या बातचीत हो सकती है? एक रक्षा विशेषज्ञ संवाद के इच्छुकों को सीधे लताड़ते हुए बोला: क्या बात करोगे? किससे करोगे? अलगाववादियों से करोगे तो हाफिज सईद से भी कर लो और अबूबकर बगदादी से भी कर लो! इस तरह, संसद की दुर्लभ सर्वानुमति को भी एक चैनल से एक घंटे मार खानी पड़ी!
जब तक कुछ एंकरों का स्टूडियोज से चीखता ‘पॉप राष्ट्रवाद’ है तब तक लग लिया मरहम! ऐसे-ऐसे बेरहम हैं कि मरहम के आइडिया तक के दुश्मन हैं!
सोलह साला ‘अनशन’ का कॉमिक अंत
चैनलों ने लाइनें लगार्इं: ‘लौह महिला’, ‘आयरन लेडी’! आज अनशन तोड़ेंगी! सबसे लंबा, सोलह साल लंबा अनशन! नाक की नली उनको जिंदा रखने के लिए लगाई गई थी, वह आज हटेगी। वाह वाह!
चैनलों के रिपोर्टरों को रोमांच। धन्य कि वे आज ऐसी ‘लौह महिला’ को कवर कर रहे हैं। पूरे दिन उनकी हीरोइक्स का गायन-वादन चलता रहा। नली हटी। शहद चखा। अनशन तोड़ा। अनशन तोड़ने के बाद क्या करेंगी? रिपोर्टरों ने पूछा तो एक अटका-सा अंगरेजी वाक्य सुनाई पड़ा कि वे मणिपुर की सीएम बनना चाहती हैं। सीएम बन के ‘अफस्पा’ हटवाएंगी! महानता के वृत्तांतों के इतने कॉमिक क्यों होते हैं सरजी?
पत्थर के दिलवाली दिल्ली
दिन में ई-रिक्शा चलाने और रात में सिक्यूरिटी गार्ड का काम करने वाला मतीबुल पैदल जाता था। पीछे से विक्रम टेंपो स्पीड से आता था। विक्रम ने मारी टक्कर। विक्रम वाला उतरा और ‘डेंट’ तो नहीं लगा, देखा फिर विक्रम दौड़ा कर ले गया। घायल पड़े मतीबुल के मोबाइल को एक रिक्शेवाले ने चुपके से उठाया और चल दिया! मतीबुल एक घंटे तक जस का तस पड़ा रहा। सैकड़ों कारें, बाइकें और पैदल गुजरे। एक पुलिस जिप्सी गुजरी। सबने अनदेखा किया। सारा सीन सीसीटीवी ने कैद किया। चैनलों ने उठाया। पूरे दिन सब चिल्लाए: बेरहम जनता, बेरहम दिल्ली! पत्थर के दिलवाली दिल्ली!