सत्येंद्र किशोर मिश्र
कौशल विकास, श्रम को प्रतिस्पर्धी और अधिक उत्पादक बनाकर संरचनात्मक बदलाव के जरिए सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान देता है। यह न केवल उत्पादकता में वृद्धि कर अधिक और बेहतर नौकरियां सृजित करता, बल्कि लोगों का जीवन स्तर भी सुधारता है। भारत की बहुसंख्य आबादी आज भी परंपरागत आजीविका गतिविधियों द्वारा गुजर-बसर कर रही है।
देश का आधा श्रमबल ग्रामीण रोजगार में और नब्बे फीसद से अधिक कामगार असंगठित क्षेत्र में हैं, जिनकी उत्पादकता कम है। ऐसे में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति और कौशल विकास को गरीबी तथा बेरोजगारी सहित देश की अनेक सामाजिक-आर्थिक समस्याओं के संदर्भ में समझने की जरूरत है।
भारत की करीब दो-तिहाई आबादी 15 से 59 वर्ष की कामकाजी उम्र में तथा 54 फीसद आबादी 25 वर्ष से कम की है। ‘स्किल इंडिया रिपोर्ट 2018’ के अनुसार भारत में जनांकिकी लाभांश का मुख्य कारण अगले छह वर्षों तक आबादी की औसत आयु 29 वर्ष से कम रहना है। वर्ष 2019 की यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक लगभग 47 फीसद भारतीय युवाओं के पास रोजगार के लिए जरूरी शिक्षा और कौशल की कमी होगी, जिससे रोजगार प्रभावित होगा।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि 2030 तक लगभग तीन करोड़ का कौशल अंतर होगा, जो भारत की राष्ट्रीय आय को प्रभावित करेगा। अगले कुछ वर्षों में श्रमबल में लगभग दो फीसद यानी सत्तर लाख की वृद्धि का अनुमान है। बड़ी आबादी को गरीबी और बेरोजगारी के दायरे से बाहर लाना है, तो उभरते रोजगार क्षेत्रों के तौर-तरीकों के अनुसार कौशल विकास करना होगा।
भारत में पहले की शिक्षा प्रणाली आजीविका की गारंटी नहीं देती थी। कौशल अंतराल सभी स्तरों पर मौजूद है। इसीलिए तीस फीसद से अधिक उच्च शिक्षित युवा बेरोजगार हैं। कुशल श्रम की कमी नियोक्ताओं के सामने अड़चन है, जिससे उनकी नवाचार क्षमता प्रभावित होती है। भारत को ऐसे कुशल मानव संसाधन की जरूरत है, जो नवाचार और विकास में प्रेरक बन सकें। देश में कौशल विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण तक सभी की पहुंच गंभीर चुनौती है।
अनेक छात्र औपचारिक शिक्षा से वंचित रह जाते हैं, जो जीवनपर्यंत उनकी आय क्षमता को प्रभावित करता है। परंपरागत भारतीय व्यवसायों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी कौशल हस्तांतरण के कारण उद्यमिता और आजीविका के पर्याप्त अवसर रहते थे। पर समय के साथ व्यवसायों तथा अवसरों की प्रकृति में बदलाव आया है।
आजाद भारत में गांधीवादी आर्थिक विकास माडल की जगह महालनोबिस माडल में उच्च व्यावसायिक संस्थानों पर जोर की वजह से स्कूली व्यावसायिक शिक्षा पीछे छूट गई। शिक्षा और कौशल विकास में अलगाव बढ़ा, व्यक्तिगत उन्नति उच्च शिक्षा से जुडी, न कि कौशल विकास से। परिणामस्वरूप आज, मात्र दो फीसद पेशेवर व्यावसायिक कामगार औपचारिक तौर पर कुशल हैं।
कौशल विकास के लिए राष्ट्रीय कौशल नीति 2009 के साथ-साथ राष्ट्रीय कौशल विकास निगम, राष्ट्रीय कौशल विकास एजेंसी, राष्ट्रीय कौशल योग्यता ढांचे का निर्माण तथा क्षेत्र कौशल परिषदों की स्थापना द्वारा शिक्षा और कौशल में समन्वय की कोशिशें जारी हैं। राष्ट्रीय कौशल योग्यता ढांचा, औपचारिक तथा व्यावसायिक शिक्षा में गतिशीलता प्रदान कर शिक्षा और कौशल विकास को एकीकृत करता है।
कौशल विकास तथा उद्यमिता मंत्रालय कौशल विकास कार्यक्रमों में समन्वय स्थापित करता है। मेक इन इंडिया तथा स्किल इंडिया कार्यक्रम शिक्षा तथा कौशल विकास के अंतर्संबंधों को मजबूत कर, औपचारिक कौशल के प्रति युवाओं की रुचि बढ़ाने तथा शैक्षिक योग्यता के साथ कौशल प्रमाणन को मान्यता देता है। लगभग बीस मंत्रालय तथा विभाग कौशल विकास कार्यक्रमों के जरिए देश में कुशल सक्षम कार्यबल तैयार हो रहे हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति व्यापक संज्ञानात्मक कौशल पर बल देती है, जिसमें अनुभव तथा तर्क से जटिल विचारों को सीखने, समझने तथा अपनाने की क्षमता शामिल है। तकनीकी कौशल में किसी विशिष्ट कार्य को करने हेतु आवश्यक ज्ञान और विशेषज्ञता होती है। डिजिटल कौशल अन्य सभी कौशलों तक पहुंच, प्रबंधन, संवाद, समझ, मूल्यांकन तथा अंगीकृत करने की क्षमता देता है।
एनईपी लीक से हटकर नई सोच तथा रटने की जगह रचनात्मक और आलोचनात्मक सोच के साथ निर्णय लेने पर केंद्रित होगी। इसमें बहुविषयक दृष्टिकोण के साथ-साथ, छात्र पाठ्यक्रमों को अपनी जरूरत के अनुसार चुन सकेगें। एनईपी उद्योगों की जरूरतों के अनुरूप शिक्षा में कौशल विकास पाठ्यक्रम, भारतीय युवाओं को कुशल और स्वावलंबी बनाने में महत्त्वपूर्ण साबित होगी।
एनईपी कौशल विकास और व्यावसायिक शिक्षा को शिक्षा प्रणाली में समाहित कर उद्योगों की जरूरत के मुताबिक न केवल कार्यबल तैयार करेगी, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता में भी वृद्धि करेगी। व्यावसायिक शिक्षा को स्कूली शिक्षा से समन्वित करने का मकसद शिक्षा को रोजगारपरक बनाते हुए कौशल विकास के जरिए युवाओं को स्वावलंबी बनाना है। इसमें पारंपरिक कौशल विकास के लिए बढ़ईगीरी, प्लंबिंग, इलेक्ट्रीशियन, बागवानी, कुंभारगीरी, कढ़ाई-बुनाई आदि में व्यावहारिक प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाएगी। वर्ष 2025 तक पचास फीसद छात्रों को व्यावसायिक कौशल प्रदान करने का लक्ष्य है।
राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (एनएसक्यूएफ) गुणवत्ता आश्वासन का राष्ट्रीय स्तर का एकीकृत शिक्षा और योग्यता आधारित कौशल ढांचा है, जो व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण, सामान्य शिक्षा और तकनीकी शिक्षा में क्षैतिज तथा उर्ध्व संयोजन यानी अनेक अवसर प्रदान करने तथा साथ ही एक को दूसरे कौशल विकास स्तर से जोड़ता है। इसमें कक्षा नौ-दस में व्यावसायिक माड्यूल अलग वैकल्पिक विषय तथा ग्यारहवीं-बारहवीं में व्यावसायिक पाठ्यक्रम अनिवार्य विषय के रूप में होगा।
राज्य सरकारों से अपेक्षा है कि व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को सामान्य पाठ्यक्रमों के बराबर मान्यता दें। स्कूली व्यावसायिक कौशल को छात्रों की जरूरत के मुताबिक उच्च शिक्षा तक बढ़ाया जा सकता है। कौशल विकास, तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा तथा प्रशिक्षण कार्यक्रम युवाओं, विशेषकर महिलाओं को, बेहतर नौकरियों के लिए प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम बनाएंगे। ऐसी कोशिशों में स्थानीय नियोक्ताओं को शामिल करना जरूरी है, ताकि पाठ्यक्रम श्रमबाजार की जरूरतों के हिसाब से हों।
राष्ट्रीय क्रेडिट फ्रेमवर्क (एनसीआरएफ) राष्ट्रीय स्तर पर क्रेडिट संचय और हस्तांतरण प्रणाली को औपचारिक बनाते हुए कौशल विकास को शिक्षा प्रणाली का अभिन्न हिस्सा बनाने का दस्तावेज है। यह सामान्य शिक्षा तथा व्यावसायिक शिक्षा को एकीकृत कर कौशल विकास के साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अवसर सुनिश्चित करेगा। एनसीआरएफ व्यापक, बहुविषयक, समग्र शिक्षा की रूपरेखा है, जो आवश्यकता आधारित पाठ्यचर्या के साथ विषयों तथा उनके रचनात्मक संयोजनों के विकल्प भी प्रस्तुत करेगा।
एनसीआरएफ, सीखने के विभिन्न क्षेत्रों को समान महत्त्व देकर कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करता है। उच्चशिक्षा में कौशल प्रशिक्षण हेतु क्रेडिट अर्जन का प्रावधान कार्यबल के कौशल स्तर को बढ़ाकर अप्रेंटिसशिप तथा रोजगार को बढ़ावा देगा, क्षेत्रीय विकास हेतु कुशल कार्यबल प्रदान करेगा। कौशल विकास कार्यक्रमों के सम्मुख वित्त और गुणवत्ता संबंधी दिक्कतें हैं, साथ ही ऊंची लागत, वंचित युवाओं की इन कार्यक्रमों तक सीमित पहुंच भी एक परेशानी है। अनुभव है कि उच्च कौशल विकास वाले देश, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय श्रमबाजार की चुनौतियों का सामना प्रभावी ढंग से करते हैं।
एनईपी 2020, शिक्षा और कौशल विकास में अलगाव समाप्त करेगी। वह दिन दूर नहीं, जब भारत का युवा, कौशल विकास और व्यावसायिक, रोजगारपरक शिक्षा के जरिए आजीविका खोजने वाला नहीं, बल्कि देने वाला बनेगा। भारत को कौशल विकास पर ही नहीं, कौशल आधारित रोजगार के अवसरों पर भी जोर देना होगा। उद्योगों की जरूरतों के मुताबिक कौशल विकास शिक्षित बेरोजगारी के संकट से छुटकारा दिला सकता है। सच्चाई है कि भारत में गरीबी सहित ग्रामीण बेरोजगारी और असंगठित क्षेत्र के कामगारों की दिक्कतों का निदान कौशल विकास से ही संभव है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को इस दिशा में व्यावहारिक धरातल पर ईमानदारी से कोशिशें करनी होंगी, यही इसके मूल्यांकन का आधार भी होगा।