अकबर के बाद अब सम्राट अशोक संघ परिवार के निशाने पर हैं। भारतीयता का प्रतीक अशोक चक्र और अशोक स्तंभ देने वाला राजा अपनी मौत के हजारों साल बाद देश का दुर्भाग्य बताया गया है। संघ के आदिवासी प्रकोष्ठ का हिस्सा राजस्थान वनवासी कल्याण परिषद् के मुखपत्र में अशोक को देश का दुर्भाग्य बताया गया है। कहा गया है कि उनके बौद्ध धर्म स्वीकार करने और अहिंसा के प्रचार की वजह से भारत की सीमाएं विदेशी हमलावरों के लिए खुल गईं। इसमें लिखा है, ‘यह भारत का दुर्भाग्य है कि सम्राट अशोक जो भारत के पतन की वजह बने, हम उन्हें महान की तरह पूजते हैं।’ भारत: कल, आज और कल शीर्षक से लिखे इस आर्टिकल में कहा गया है कि अशोक ने बौद्ध धर्म को बढ़ावा दिया। इसकी वजह से बौद्ध साधुओं ने अपने शिष्यों के बीच उन देश विरोधी विचारों को बढ़ावा दिया कि बौद्ध धर्म जाति या देश की सीमाओं में भरोसा नहीं करता। यह भी लिखा गया है कि जब भी बौद्ध धर्म से हमदर्दी रखने वाले विदेशी घुसपैठियों ने भारत पर हमला किया, बौद्ध अनुयायियों ने उनसे लड़ने के बजाए साठगांठ कर ली। (पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें)
अब साल भर पहले का बिहार चुनाव याद कीजिए। बीजेपी अपनी सहयोगी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के साथ सम्राट अशोक की 2320 वीं जयंती मना रही थी। दोनों ने एलान कर दिया कि सम्राट अशोक और चंद्रगुप्त मौर्य कुशवाहा जाति के थे। शहरों में पोस्टर लगे, जिनमें सम्राट अशोक मूंछों के साथ नजर आए। उन्हें ‘प्रियदर्शी’ सम्राट बताया गया। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने तो सत्ता में आने पर अशोक के नाम पर खूबसूरत डाक टिकट जारी करने और मूर्ति लगाने का भी एलान किया। बीजेपी ने वादा किया कि मौर्य साम्राज्य के दौरान कायम कुशवाहा जाति के लोगों के सम्मान को दोबारा से दिलाया जाएगा। जाहिर सी बात है, प्रदेश के 9 फीसदी कुशवाहा वोटर्स को लुभाने के लिए यह सारी कवायद थी।
इतिहासकारों ने खासा शोर मचाया। दलीलें दीं कि अशोक के जन्म या मृत्यु की सही तारीख कहीं नहीं दर्ज है। उनकी जाति के बारे में भी कुछ नहीं पता। बीजेपी सम्राट अशोक की मूंछों वाली रौबीली फोटो कहां से लाई, यह भी इतिहासकार नहीं समझ पाए। इतिहासकार रोमिला थापर को कहना पड़ा कि शायद बीजेपी नेताओं ने अपनी कल्पना के अशोक को जीवित कर दिया जैसा कि वे टीवी सीरियल्स में नजर आते हैं। चुनाव के नतीजे आए। बीजेपी को इस पूरी कवायद का कोई फायदा नहीं मिला। ऐसे में अब लगता है कि सम्राट अशोक बीजेपी और संघ परिवार के लिए यूजलेस हो चले हैं।
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अब सम्राट अशोक पर बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने के दावे की बात करें। सवाल उठना लाजिमी है क्या वे अन्य धर्मों के प्रति उदार नहीं थे? इस बारे में दिल्ली यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ हिस्ट्री की प्रोफेसर और अशोका इन एनिसिएंट इंडिया की लेखक नयनजोत लाहिड़ी ने विस्तार से बताया है। 10 नवंबर 2015 को द हिंदू के लिए लिखे लेख Giving the emperor new clothes में नयनजोत ने लिखा है कि सातवें शिलालेख के मुताबिक सम्राट की इच्छा थी कि उनके साम्राज्य में सभी संप्रदायों को जगह मिले। 12वें शिलालेख में भी इस बात का विस्तार से जिक्र है। सम्राट का विश्वास था कि एक ऐसी सामाजिक संस्कृति होनी चाहिए, जहां हर संप्रदाय एक दूसरे का सम्मान करें।
अब यूपी में चुनाव होने वाले हैं। बीजेपी ‘सम्राट अशोक के वशंजों’ यानी मौर्य जाति के लोगों को साधने के लिए उनको ‘पुराना गौरव’ लौटाने में जुट गई है। केशव प्रसाद मौर्य बीजेपी के अध्यक्ष बनाए जा चुके हैं। ‘दौलत की बेटी’ मायावती को जड़ से उखाड़ने का संकल्प लेकर कभी उनके सहयोगी रहे स्वामी प्रसाद मौर्य बीजेपी में जाने की तैयारी में जुटे हुए हैं। इस बीच, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जल्द ही बीजेपी या संघ का कोई नेता यह मांग न कर दे कि पार्टी मुख्यालय को ’11 अशोका रोड’ से शिफ्ट कर दिया जाए। हालांकि, यूपी चुनाव तक ऐसा होने की संभावना बेहद कम नजर आती है।