भारत सरकार द्वारा गणतंत्र दिवस पर दिए गए नागरिक पुरस्कारों की सूची देखने से ज़हन में पहला सवाल यही उभरा कि क्या “राजनीति करना” ही देश की सबसे बड़ी सेवा है? क्यों आम लोगों के स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं प्रकृति इत्यादि के लिए दशकों तक काम करने का बाद भी कुछ लोगों की उपलब्धि नेताओं से कम पड़ जाती है? भारत का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान “भारत रत्न” इस साल किसी को नहीं दिया गया। देश का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार “पद्म विभूषण” इस साल सात लोगों (केजे येसुदास, सद्गुरु जग्गी वासुदेव, शरद पवार, मुरली मनोहर जोशी, यूआर राव, स्वर्गीय सुंदर लाल पटवा, स्वर्गीय पीए संगमा) को देने की घोषणा की गयी है। वहीं सात लोगों को पद्म भूषण और 75 लोगों को पद्म श्री देने की घोषणा की गयी।
भारत सरकार की पद्म पुरस्कारों की आधिकारिक वेबसाइट पर बताया गया है कि ये पुरस्कार तीन श्रेणियों में दिए जाते हैं और इन्हें पाने की योग्यता क्या है। इसके अनुसार कला संगीत, विज्ञान, समाज सेवा, खेल, कारोबार, संगीत इत्यादि क्षेत्रों में “असाधारण और विशिष्ट” सेवा करने वालों को पद्म विभूषण, “ऊंचे दर्जे की विशिष्ट” सेवा करने वालों को पद्म भूषण और “विशिष्ट” सेवा करने वालों को पद्म श्री दिया जाता है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार ने इस साल अघोषित तौर पर “अल्पज्ञात और प्रशंसा से वंचित हीरो” को प्राथमिकता दी है। लेकिन क्या सचमुच?
जिस राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी) को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी “भ्रष्टचारवादी पार्टी” और “नेचुरली करप्ट पार्टी” बता चुके हैं उसके सर्वेसर्वा शरद पवार को मोदी सरकार ने देश की “असाधारण और विशिष्ट सेवा” करने वाला पाया। इस साल जिन सात लोगों को देश की “असाधारण और विशिष्ट सेवा” करने वाला पाया गया है उनमें चार (पवार, संगमा, जोशी और पटवा) राजनीति से जुड़े हैं। रिपोर्ट के अनुसार मोदी सरकार इन नेताओं के साथ जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय मुफ्ती मोहम्मद सईद को भी पुरस्कार देना चाहती थी लेकिन उनके परिजनों की प्रतिकूल राय के चलते फैसले से पीछे हट गयी। राजनेताओं के अलावा भी सरकार ने जिन लोगों को पद्म विभूषण के लिए चुना है वो किसी ने किसी क्षेत्र में “प्रसिद्ध” या “हाई प्रोफाइल” नाम हैं।
पुरस्कारों की लिस्ट पर एक नजर डालें तो लगता है कि “अल्पज्ञात या प्रशंसा से दूर” रहने वालों की सेवा को सरकार “असाधारण और विशिष्ट” नहीं मानती। कुल मिलाकर यही माहौल है कि “सरकार ने इन लोगों की सुध तो ली।” इसमें अधिकार से ज्यादा “दया याचना” का भाव है। जो दिवंगत हो चुके हैं इनकी बात छोड़ देते हैं लेकिन सरकार आखिरकार किस तरह तय करती है कि 76 वर्षीय शरद पवार ने देश की “असाधारण और विशिष्ट सेवा” की है और 68 सालों से महिलाओं का मुफ्त इलाज कर रही 91 वर्षीय डॉक्टर भक्ति यादव ने बस “विशिष्ट” सेवा की है। भारत में चिकित्सा क्षेत्र और महिला चिकित्सा की स्थित जगजाहिर है ऐसे में छह दशकों तक लगातार निस्वार्थ भाव से आम महिलाओं का इलाज करने और हजारों बच्चों का प्रसव कराने के बाद भी देश ने उनकी सेवा को पवार की सेवा से दो दर्जा कम पाया?
आखिर भारत सरकार किस तरह तय करती है कि 83 वर्षीय मुरली मनोहर जोशी देश ने “असाधारण और विशिष्ट” सेवा की है और “द ट्री मैन” 68 वर्षीय डी रमैया जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी एक करोड़ से अधिक पेड़ लगाने में बितायी है, ने केवल “विशिष्ट” सेवा की है। हमेशा अपने जेब में बीज और बिरवा लेकर चलने वाले रमैया जहां कहीं भी बंजर जमीन देखते हैं वहां पेड़ लगा देते हैं लेकिन सरकार ने उनकी सेवा को भी दो दर्जा कम पाया।
इतना ही नहीं अगर पद्म श्री पुरस्कार पाने वालों की सूची देखी जाए तो ऐसा लगता है कि आम लोगों की जमीनी सेवा करने वालों की हस्ती सरकार की नजर में राजनीति करने वालों या “प्रसिद्ध” लोगों से कमतर है। पद्म श्री पाने में 76 वर्षीय मीनाक्षी अम्मा देश की सबसे बुजुर्ग महिला कलारीपायट्टू गुरु हैं। वो करीब सात दशकों से केरल की इस परंरपागत युद्ध कला का अभ्यास कर रही हैं और दूसरों को सिखा रही हैं। पश्चिम बंगाल के 59 वर्षीय बिपिन गनत्र पिछले 40 सालों से लोगों के घरों में लगी आग बुझाने का काम कर रहे हैं। 66 वर्षीय गिरीश भारद्वाज भारत के सुदूरवर्ती गांवों में 100 से ज्यादा किफायती और पर्यावरण के अनुकूल पुल बना चुके हैं। चार दशकों से दूरियां पाटने का काम करते रहने के कारण कर्नाटक में उन्हें “सेतु बंधू” के नाम से जाना जाता है।
आम लोगों की जिंदगी में बुनियादी परिवर्तन लाने वालों कई अल्पज्ञात लोगों की सरकार ने सुध तो ली है लेकिन “पद्म श्री” की सूची में। तो क्या ये मान लिया जाए कि राजनीति करना महिलाओं के इलाज, पेड़ लगाने, कला को जीवित रखने, सफाई करने या लोगों के घरों में आग बुझाने से “ऊंचे दर्जे की सेवा” है? ऐसे में बस यही कहने को जी करता है कि नेता शरद पवार को पद्म विभूषण, 68 साल से मुफ्त इलाज कर रहीं भक्ति यादव को पद्म श्री, बहुत नाइंसाफी है नरेंद्र मोदीजी!
वीडियोः पद्म श्री मिलने के बाद अपने परिवार के साथ डॉक्टर भक्ति यादव