बाढ़ में कुत्ता, बिल्ली, सांप, नेवला, शेर सब एक साथ छत पर चढ़ जाते हैं। बाढ़ आ रही है।…
हाय हाय कुत्ता कह दिया, सांप कह दिया! हर चैनल बम बम। मजा आ गया। पूछो कि कौन कुत्ता है? कौन सांप है?
अपने ‘एनीमल फार्म’ में बड़ी हलचल है!
टाइम्स नाउ शीर्षक लगाता है : कौन है जो गाली नहीं दे रहा है?
गाली पर ताली है, ताली पर गाली है।
जीत पर जीत, जीत पर जीत, जीत पर जीत। उधर झूठ पर झूठ, झूठ पर झूठ, झूठ पर झूठ।…
सभी चैनलों पर एक वीडियो बार-बार बजता है। देवता हर्षित दिखते हैं, दानव लज्जित दिखते हैं।
दो हजार उन्नीस अभी से गरमाया जा रहा है।
बीच में एक भ्रष्टाचार का आरोप ब्रेकिंग न्यूज देता है : चंदा कोचर ऐंड परिवार।… कल तक की ताकतवर महिला और ऐसा दुर्विपाक।…
लेकिन अपने ‘न्यायप्रिय’ एंकर भी एक नरम सवाल तक नहीं करते।
क्यों करें? अपने पेट पर लात क्यों मारें?
एक दिन पहले ही एक वीरगाथाकालीन आदेश पिटाई खाकर वापस हुआ था कि दूसरा हाजिर हुआ।
देश बचाना है तो आॅन लाइन बदतमीजी को काबू में करना ही होगा।… अब आप तय कर लें कि कैसे काबू होंगे? अपने आप होंगे कि कोई और करेगा? निधि राजदान परेशान हाकर लेफ्ट-राइट-सेंटर करती हैं। लेकिन यह क्या? कुछ देर भड़ास निकालने के बाद सबकी मुंडी हिलने लगती है कि सरकारी लगाम की जगह अपनी लगाम अपने आप लगाना कहीं बेहतर विकल्प है।
एनडीटीवी को इतने से तोष कहां? बिग फाइट में फिर आॅन लाइन मीडिया को कंट्रोल करने की कोशिश पर बहसा-बहसी जमी। चालीस मिनट की बहसा-बहसी के बाद फिर वही ढाक के तीन पात यानी अपने आप लगाम लगाएं, यही ठीक है। लेकिन इतने से क्या? ‘फेक न्यूज’ को लेकर ‘वी द पीपल’ में ‘पीपल’ तले कई पंच बैठे। इतने विद्वज्जन और ऐसी बुलास कि एक साथ दो-तीन बोलने लगते। एंकर पर तरस न खाते। चालीस मिनट के शिष्ट-विचार के बाद यह सवाल अटका रहा कि ‘फेक’ को तय कौन करेगा?
यह काम तो अपने ट्रंप जी का है। वही तय करेंगे न! आप करते रहिए एक आजाद किस्म की कांय कांय!
दो दिन की जेल के बाद भी सलमान भाई के डौले-शौले कम न हुए। जमानत के बाद एक वाक्य मीडिया से कहे बिना वे सीधे मुंबई पहुंचे और प्रशंसकों को घर जाकर सोने को कहा। चैनल उनकी चिरौरी-मिन्नत करके चुप हुए और लीजिए अगली फिल्म की मार्केटिंग हो गई!
इस बीच तमिलनाडु से रजनी, कमल हासन की जोड़ी ने कावेरी बोर्ड बनाने के लिए दबाव डालने वाली खबर बनाई और नतीजतन आईपीएल का मैच चेन्नई से विदा हो गया!
हर दिन न्याय की मांग करने वाले चैनल कितने दयनीय हो चले हैं, इसकी खबर कठुआ गैंग रेप के कवरेज ने तो दी ही थी, उन्नाव के गैंग रेप की खबर भी देने लगी।
कहां हैं निर्भया और पॉक्सो कानून? एफआईआर है और आरोपी अब तक आजाद हैं। ऐसे में, सबसे कठोर सवाल करने वाले, सबको कठघरे में खड़ा करने वाले एंकर बेहद कमजोर नजर आते हैं।
समरथ को नहिं दोष गुसार्इं!
कठुआ गैंग रेप के आरोपियों कोे बचाने के लिए एक हिंदुत्ववादी संगठन और वकीलों का एक समूह प्रदर्शन करने लगता है। हाथ मेंं तिरंगे हैं और जुबान पर जय श्रीराम और भारत माता की जय के नारे हैं।… हिंदुओं को टारगेट किया जा रहा है। केस सीबीआई को दिया जाय!
रेप भी अब सांप्रदायिक है!
यही परिणति उन्नाव गैंगरेप की है। तीन दिन तक चैनल-दर-चैनल पीड़िता को रोते हुए, उसके मारे गए पिता को, उसके चाचा को हम आरोप लगाते देखते हैं। पिता इतना पीटा जाता है कि मर जाता है। मरणासन्न या मरे हुए पिता के हाथ को पकड़ कर कुछ लोग उसके अंगूठे के निशान कागजों पर लगाते नजर आते हैं। चैनलों पर आकर हेकड़ ‘आरोपी’ आरोपों को बेबुनियाद बताता है और दो दो भाजपा एमएलए भी आरोपी को निर्दोष बताते हैं। एक तो यह तक पूछता है कि क्या तीन बच्चों की मां से भी कोई रेप करता है?
हर चैनल पर ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का नारा रक्षात्मक दिखा!
पुलिस रेप पीड़िता को गांव के घर ले जाती है। रिपब्लिक की रिपोर्टर गांव से लाइव करती हुई आश्चर्य करती है कि गांव में दो सौ एसयूवी’ज और दो-ढाई सौ की डरावनी भीड़ को पुलिस ने क्यों इकट्ठा होने दिया? क्या पीड़िता को डराने के लिए ऐसा हो रहा है? यह एक साहसी कवरेज था। फर्स्ट वर्ल्ड की फर्रांटेदार अंग्रेजी के सामने थर्ड वर्ल्ड का नया खबर मैनेजमेंट खड़ा था। घूंघट में एक औरत कड़ाकेदार हिंदी में बोलती रही : भैया निर्दाेष है। भैया को कुछ हो गया तो हमारी इज्जत कौन बचाएगा?
चौथे दिन भी एंकरों के लिए ‘आरोपी’ पुलिस के लिए ‘माननीय विधयक जी’ ही रहे!