महेंद्र सिंह धोनी ने भारतीय टीम की कप्तानी छोड़ दी। अब वे केवल खिलाड़ी के तौर पर टीम इंडिया का हिस्सा बन सकेंगे। धोनी की 9 साल की कप्तानी में भारतीय क्रिकेट ने सारे खुशनुम़ा दौर देखे। टी20 वर्ल्ड कप, वनडे वर्ल्ड कप, ऑस्ट्रेलिया में CB सीरीज जीत, आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी जीत, टेस्ट में पहली बार नंबर एक टीम बनना आदि। धोनी को ऐसे कप्तान के तौर पर याद किया जाता है जो जीत मिलने पर सबसे पीछे और हार मिलने पर सबसे आगे खड़े रहते थे। टीम जब जीत का जश्न मनाती थी तो धोनी तस्वीरों में हमेशा आखिरी में खड़े मिले वहीं, हार के बाद आलोचना होने पर एक साहसी कप्तान की तरह सबसे आगे आकर अपने साथी खिलाड़ियों का बचाव करते थे। झारखंड से आये इस खिलाडी ने एक साधु की तरह का निर्मोहिपन क्रिकेट को दिया। क्रिकेट की बारी आई तो जान लगा दी। यहां से छुट्टी मिली तो दुनियादारी से दूर रहे। 2015 में वर्ल्ड कप के दौरान पिता बने लेकिन बेटी से मिलने की जल्दबाजी नहीं दिखाई। कहा, ‘ नेशनल ड्यूटी पर हूँ। ‘ धोनी अब जब कप्तान नहीं हैं तो कई ऐसी बातें हैं जिन्हें मिस किया जाएगा।
पहली बात, धोनी की कप्तानी की सबसे कमाल बात ये थी कि उसमें कमिटमेंट सबसे ऊपर होता था। नतीजा दूसरे पायदान पर। यही वजह थी कि जोगिन्दर शर्मा, इशांत शर्मा, श्रीसंथ, प्रवीण कुमार जैसे प्रतिभावान लेकिन अनिरंतर खिलाड़ी टीम इंडिया की महान जीतों के नायक बने। ये धोनी के रहते ही संभव हो पाया कि अनुभवहीन खिलाडियों के साथ मिलकर उन्होंने भारत को टी20 क्रिकेट का पहला बादशाह बना दिया। महेंद्र सिंह धोनी ने 2007 में टी20 विश्व कप जीतकर दुनिया को बता दिया की जीत के लिए नायक नहीं मेहनतकश खिलाड़ी चाहिए होते हैं। पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल में जोगिन्दर शर्मा को आखिरी ओवर देने का निर्णय एक साहसी कप्तान ही कर सकता है। महेंद्र सिंह धोनी की अनोखी और साहसपूर्ण कप्तानी की झलक तो इस टूर्नामेंट के लीग चरण में ही देखने को मिल गयी थी। जब पाकिस्तान से मैच टाई होने पर उन्होंने रॉबिन उथप्पा, वीरेंदर सहवाग और हरभजन सिंह से बॉल आउट कराया था।
दूसरी बात, धोनी के लिए टीम इंडिया के पूर्व कोच गैरी कर्स्टन ने कहा था, ‘अगर मुझे जंग में जाना पड़ा तो मैं अपने साथ धोनी को लेकर जाऊंगा।’ किसी खिलाडी के लिए ऐसी बात कहा जाना उसके स्वाभाव की झलक दिखा देता है। धोनी मैदान पर बर्फ की मानिंद नजर आते हैं। चाहे पूरी दुनिया की सांसें थमीं पड़ी हों लेकिन धोनी इससे इतर चुपचाप रहते हैं, जैसे कुछ भी घटित नहीं हो रहा। फिर वो अचानक कोई ऐसा निर्णय कर देते हैं जो किसी ने सोचा भी न हो। धोनी का क्रिकेट के मैदान में जाना और वहाँ पे खेलना किसी सन्यासी को तपस्या करते देखना जैसा है।
तीसरी बात, धोनी और हैरानी का चोली दामन का साथ रहा है। साल 2004 में डेब्यू किया और अपने पहले ही मैच में 0 पर आउट हो गए। उन्हें जानने वाले हैरान थे। कुछ मैच बाद ही पाकिस्तान के खिलाफ सैंकड़ा ठोक दिया। दर्शक हैरान रह गए। 2007 में टी20 और वनडे के कप्तान बन गए। क्रिकेट के जानकार हैरान। 2014 में ऑस्ट्रेलिया में बीच सीरीज में कप्तानी छोड़ दी। टीम और बीसीसीआई भी हैरान। अब अचानक से छोटे फॉर्मेट की कप्तानी को भी त्याग दिया।
चौथी बात, कप्तान और लीडर बनना दो अलग बातें हैं। धोनी को बनाया तो कप्तान गया था लेकिन वे बन गए लीडर। लीडर भी ऐसा जिससे दुनिया सीखती है। विपक्षी भी प्रेरणा पाते हैं। 2015 वर्ल्ड कप के सेमिफाइनल में जब भारत मेजबान ऑस्ट्रेलिया से हारकर बाहर हो गया था तब प्रेस कॉन्फ्रेंस का एक किस्सा इसका अच्छा उदहारण है। माइकल क्लार्क प्रेस से बातकर जा ही रहे थे की धोनी कमरे के गेट से आते दिखे। क्लार्क बोले, ‘दोस्त ये मत कहना की तुम खेल छोड़ रहे हो। तुम 2019 तक खेल सकते हो और अपनी टीम का नेतृत्व कर सकते हो।’
पांचवीं बात, भारत में पंरपरा ऐसी है कि जो नायक होता है वो हमेशा आगे रहता है। हमारी आदत ही ऐसी है कि हम अपना क्रेडिट छुपा नहीं सकते। रत्तीभर के काम को भी बढ़ा चढ़ाकर दिखाना हमारी फितरत है। नायकत्व यहां की कमजोरी है। धोनी ने ये तिलिस्म भी तोड़ दिया। जीत की तस्वीरों में वो हमेशा किनारे पर रहे। टी20 वर्ल्ड कप में ट्रॉफी उनके हाथ में बस चंद लम्हों के लिए रही। वनडे वर्ल्ड कप में ट्रॉफी ली और सचिन को सौंप दी। वो सपोर्ट स्टाफ के बीच खड़े थे। जब टेस्ट से सन्यास लिया था तब ऑस्ट्रेलिया के प्राइम मिनिस्टर ने पार्टी दी। दोनों टीमों भारत और ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों की ग्रुप फोटो भी हुई। धोनी उसमें नही आये। बोले कि मैं अब टेस्ट नहीं खेलता तो इसमें नहीं आ सकता। वे दूर खड़े रहे।
धोनी अब जब तुमने कप्तानी छोड़ दी है तो एक बात है, दुनिया किसी के लिए रूकती नहीं है। जो नया आएगा वो जिम्मेदारी ले लेगा। लेकिन तुम्हारी जगह कोई नहीं ले पाएगा। क्योंकि कप्तान बदले जा सकते हैं लीडर ( धोनी) नहीं।