दिल्ली देश की राजधानी है। यहां पूरा अमला बसता है। मसलन, केन्द्र और राज्य सरकार के मंत्री, सांसद, विधायक, सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और जिला अदालतों के जज, बड़े आईएएस, आईपीएस और अन्य अधिकारी, तमाम मीडिया संगठनों और घरानों के पत्रकार, समाज के अन्य बुद्धिजीवी, व्यवसायी-कारोबारी लोग। शायद इन्हीं वजहों से दिल्ली को देश का दिल कहा जाता रहा है लेकिन दिल्ली का एक श्याम पक्ष भी है जो उसके अंदर समाए अंधेरेपन या यों कहें कि अंधेपन को उजागर करता है। और शायद यही वजह है कि दिल्ली के धौलाकुआं-नारायणा फ्लाई ओवर पर बीते मंगलवार को जब एक भारी वाहन ने एक बाइक सवार युवक को टक्कर मारी और उसे थोड़ी दूर तक घसीटा तो उसे बचाने न तो कोई वाहन सवार आगे आया और न ही किसी ने ऐसा करने की सोची। हद तो तब हो गई, जब वहां से गुजरती करीब हर चमचमाती और बेशकीमती कारवालों ने उस युवक की लाश को बार-बार रौंदा। एक के बाद एक ताबड़तोड़ करीब दर्जनभर गाड़ियों ने ऐसा ही किया।
दिल्ली जैसे महानगरों में इसे मानवीय संवेदनाओं का सूखापन कह सकते हैं। यहां हर शख्स आपा-धापी में रहता है, जल्दी में रहता है लेकिन उनकी व्यस्तताओं को इस निमित्त कदापि न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता। इस पढ़े-लिखे शहर के तथाकथित भले मानुषों में इस बात को लेकर भी अक्सर डर और भ्रम की स्थिति रहती है कि अगर उसने सड़क दुर्घटनाओं में किसी घायल को अस्पताल पहुंचाने की जहमत उठाई तो उसे थाने के चक्कर लगाने पड़ेंगे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट इस बारे में स्पष्ट दिशा-निर्देश दे चुका है कि घायलों को न तो प्राथमिक उपचार देने में कोई अस्पताल आनाकानी करेगा और न ही पुलिस मदद करने वाले या सूचना देने वाले को परेशान करेगी। बावजूद इसके अभी भी लोग ऐसे मामलों में अपने को दूर रखने में ही अपनी भलाई समझते हैं।
आंकड़ों पर गौर करें तो दिल्ली में ही सड़क दुर्घटनाओं में प्रतिदिन पांच लोगों की मौत हो रही है। दिल्ली पुलिस के मुताबिक पिछले साल यानी साल 2016 में कुल 1591 लोगों की मौत सड़क दुर्घटना में हुई है। हालांकि, यह आंकड़ा पिछले वर्षों की तुलना में कम हुआ है। साल 2010 में दिल्ली में सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या 2153 थी जो घटकर साल 2011 में 2110, साल 2012 में 1886, साल 2013 में 1671, साल 2014 में 1622 और साल 2015 में 1591 रह गई है।
पुलिस के अधिकारी इन आंकड़ों पर थोड़ा संतोष जता रहे हैं और कहते हैं कि दुर्घटनाओं के कारण, समय और दुघर्टनाओं में शामिल परिवहनों की सख्ती से जांच किए जाने के चलते ऐसा संभव हो पाया है। इसके अलावा यातायात पुलिस ने दिल्ली में 176 ऐसे स्थानों की पहचान की है जो हादसों के संभावित क्षेत्र हैं। बीते मंगलवार को जहां युवक की लाश बार-बार रौंदी गई, वह इलाका भी दुर्घटना संभावित क्षेत्र है।
दुनिया जब हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, परंपरागत और प्राचीन ज्ञान-विज्ञान के बौद्धिक स्तर, आधुनिक विज्ञान और तकनीकि के क्षेत्र में प्रगति पथ पर लगातार बढ़ते हमारे कदम की कायल हो रही है, तब देश की राजधानी में इस तरह की घटना हमारे समाज, हमारी सोच, हमारी प्रगति, हमारे नैतिक कर्तव्यों और मानवीय मूल्यों पर एक जोरदार तमाचा है। ‘वसुधैव कुटुंबकम’ और ‘सर्वे सन्तु निरामया’ की बात करने वाले इस देश में लोग कैसे अमानवीय होते जा रहे हैं। कैसे वो लाशों को रौंदने लगे हैं। मानवीय मूल्यों को धत्ता बता बताने लगे हैं। यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि मानवीय मूल्य ही वह तत्व है जो हमें अच्छे-बुरे में फर्क करना सिखाता है। वह इंसानियत और भाई-चारे का संदेश देता है। समाज में छोटे-बड़े के बीच का अंतर समझाता है। पारिवारिक और सामाजिक मूल्य सिखाता है। अगर समय रहते इन मानवीय मूल्यों के संरक्षण की दिशा में कारगर कदम नहीं उठाए गए तो आनेवाली पीढ़ियां न तो नैतिकता का तकाजा समझेंगी और न ही मानवीय मूल्य। तब हमारे पास हाथ मलने के सिवा कोई चारा नहीं बचा होगा।