Great India Rule In The World: प्राचीन काल (Ancient Times) में जब सभी देशों के निवासी जंगली जीवन (Wild Life) जी रहे थे उस समय यहां स्वाहा और स्वधा के मंत्रों की रचना हुई। वेद (Vedas), विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता का भी विकास भारत में ही हुआ। इस आधार पर भारत को विश्व गुरु (World Guru) माना जाता था। प्राचीन काल में ज्ञान विज्ञान का जनक (Father Of Knowledge Science) भारत ही था और यहीं से समस्त भूमंडल (Over The Globe) में ज्ञान (Knowledge) फैला। इस ज्ञान के क्षेत्र को हम एशिया से लेकर यूरोप (Asia To Europe) तक बता सकते हैं और इसमें उत्तरी अफ्रीका (North Africa) के भाग भी शामिल थे।
आधुनिक काल में यूरोप ही विश्व गुरु है
अभी बहुत से लोग और विशेषरूप से सत्तारूढ़ केंद्रीय नेतृत्व यह कहते हैं कि भारत को विश्व गुरु बनना चाहिए और भारत में विश्व गुरु बनने की शक्ति है। वास्तव में हर एक कार्य का एक निश्चित समय होता है प्राचीन काल में भारत विश्व गुरु था, लेकिन आधुनिक काल में यूरोप ही विश्व गुरु है। यूरोप में न केवल हमारे भौतिक जीवन को प्रभावित किया है बल्कि हमारे राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक जीवन को भी प्रभावित किया है। यहीं दर्शन, विज्ञान और साहित्य की रचना हुई।
विवेकानंद के उद्बोधन को संसार ने स्वीकारा
विश्वगुरु के प्रतीक 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सभा में स्वामी विवेकानंद के प्रथम पंक्ति के उद्बोधन “अमेरिकावासी बहनों और भाइयों” कहकर सभा को संबोधित किया तो दो मिनट तक ऐसे तालियां बजीं कि कान बहरे हो गए। बेहद दकियानूस लोगों को भी यह स्वीकार करना पड़ा कि इस ‘सुदर्शन, तेजवान, अदभुत वक्ता ने ही महासभा में श्रेष्ठ आसन अधिकार किया है।’ स्वामी ने कहा कि पृथ्वी पर सबसे प्राचीनतम समाज की तरफ से मैं सर्वधर्म के उद्भव स्वरूप जो सनातन हिंदू धर्म है, उसका प्रतिनिधि होकर आज मैं आप लोगों को धन्यवाद देता हूं और पृथ्वी की विभिन्न हिंदू जाति और विभिन्न हिंदू संप्रदाय के कोटि कोटि हिंदू नर नारियों की तरफ से आज मै आपलोगों को हृदय से धन्यवाद देता हूं।

उन्होंने कहा था कि मैं उसी धर्म में शामिल अपने को गौरवान्वित महसूस करता हूं। हमलोग केवल दूसरे धर्मावलंबियों के प्रति सहिष्णु हैं , ऐसा नहीं है, हम यह भी विश्वास करते हैं कि सभी धर्म सत्य है। विवेकानन्द पुरोहितवाद, धार्मिक आडम्बरों, कठमुल्लापन और रूढ़ियों के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने धर्म को मनुष्य की सेवा के केन्द्र में रखकर ही आध्यात्मिक चिंतन किया था। स्वामी विवेकानंद भारत देश के उन चंद व्यक्तित्वों में से एक हैं जिन्हें देश के नाम से और देश को उनके नाम से अलग नहीं किया जा सकता। दोनो साथ में एक दूसरे को अलंकृत करते हैं। स्वामी विवेकानंद वह नाम है जिसे शिकागो की भूमि आज भी दोहराती है।
स्वामी विवेकानंद के भाषण के बाद शिकागो के सर्वश्रेष्ठ अखबार “हेराल्ड” लिखता है कि “धर्म सभा में विवेकानंद ही निर्विरोध रूप से सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति है।” अब आज प्रश्न यह उठता है कि क्या आज हम जिस बात का दिवास्वप्न दुनियां को दिखाने का प्रयास कर रहे हैं , क्या हम उस योग्य बन गए हैं ? अथवा उस गति से अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की और बढ़ रहे हैं, जहां पहुंचकर हम यह कह सकते हैं कि हम विश्व गुरु बनने के योग्य हैं । हां, वह समय था जब हमें विश्व ने आध्यात्मिक रूप से स्वीकार किया कि भारत विश्व गुरु का गौरव हासिल कर लिया है, लेकिन आज?

यह तो आध्यात्मिक संपन्नता की बात हुई। अब आर्थिक समानता की बात करे जो हमें विश्व में स्थापित कर सकता है । यदि प्रति व्यक्ति आय की बात करें तो विश्व के कई ऐसे देश हैं जहां हम ठहर ही नहीं पाते हैं। प्रति व्यक्ति आय किसी देश, राज्य, नगर, या अन्य क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों की औसत आय होती है। इसका अनुमान उस क्षेत्र में रहने वाले सभी लोगों की आय के जोड़ को क्षेत्र की कुल जनसंख्या से विभाजित कर के लगाया जाता है। प्रति व्यक्ति आय विभिन्न देशों के अलग-अलग जीवन स्तर का एक महत्वपूर्ण सूचकांक होती है। यह मानव विकास सूचकांक में सम्मिलित तीन संख्याओं में से एक है।
अनौपचारिक बोलचाल में प्रति व्यक्ति आय को औसत आय भी कहा जाता है और आमतौर पर अगर एक राष्ट्र की औसत आय किसी दूसरे राष्ट्र से अधिक हो, तो पहला राष्ट्र दूसरे से अधिक समृद्ध और सम्पन्न माना जाता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़ों के मुताबिक 2013 में भारत में प्रति व्यक्ति आय 1485 डॉलर (1.13 लाख रुपए) थी। 2019 में यह बढ़कर 2171 डॉलर (1.65 लाख डॉलर) हो गई। हालांकि, इसके बावजूद भारत इस मामले में दुनिया में 139वें स्थान पर है।
प्राचीन काल में मन्दिर, आश्रमों और गुरुकुल ही उच्च शिक्षा के केन्द्र थे
भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति में हमें अनौपचारिक तथा औपचारिक दोनों प्रकार के शैक्षणिक केन्द्रों का उल्लेख प्राप्त होता है। औपचारिक शिक्षा मन्दिर, आश्रमों और गुरुकुलों के माध्यम से दी जाती थी। ये ही उच्च शिक्षा के केन्द्र भी थे। जबकि परिवार, पुरोहित, पण्डित, सन्यासी और त्यौहार प्रसंग आदि के माध्यम से अनौपचारिक शिक्षा प्राप्त होती थी। विभिन्न धर्मसूत्रों में इस बात का उल्लेख है कि माता ही बच्चे की श्रेष्ठ गुरु है। कुछ विद्वानों ने पिता को बच्चे के शिक्षक के रुप में स्वीकार किया है। जैसे-जैसे सामाजिक विकास हुआ वैसे-वैसे शैक्षणिक संस्थाएँ स्थापित होने लगी। वैदिक काल में परिषद, शाखा और चरण जैसे संघों का स्थापना हो गया था, लेकिन व्यवस्थित शिक्षण संस्थाएं सार्वजनिक स्तर पर बौद्धों द्वारा प्रारम्भ की गई थी।
आज यदि भारतीय शिक्षा पद्धति की बात की जाए तो उसका स्तर विश्व में ग्यारहवें स्थान पर आता है। जबकि फिनलैंड, सिंगापुर,स्विट्जरलैंड, दक्षिण कोरिया, हांगकांग, इसराइल, बेल्जियम, ताइवान, नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया के बाद भारत का नंबर आता है । लेकिन हां, हमारी स्थिति सामरिक समृद्धि के मामले में सुधरी जरूर है । फिर भी हम उस तरह से मजबूत नहीं हो सके हैं जैसा अन्य देशों ने अपने को शक्तिशाली बनाया है । भारत आज भी सामरिक दृष्टि से विश्व में 25 वें स्थान पर हैं जबकि उसका निकटतम प्रतिद्वंदी चीन विश्व में अमेरिका, रूस के बाद तीसरे नंबर पर आता है।
यह ठीक है कि भारत ने मारक विमानों तथा मिसाइलों में इजाफा करके अपने को मजबूत करने का प्रयास किया है जिससे वह आड़े समय में चीन को अपनी ताकत दिखा सके। पिछले दिनों लोकसभा में रक्षा मंत्रालय की ओर से एक लिखित उत्तर में बताया गया कि पिछले तीन वर्षों में भारत द्वारा निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में हल्के टारपीडो, डोनियर विमान, हथियार का पता लगाने वाले रडार के साथ साथ सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण की पहल के तहत प्रमुख हथियार प्रणाली का भी आयात किया गया है।

अब जब ऐसी स्थिति हो, तो फिर विश्व गुरु बनने का जो मानक होता है उस पर हम खरे उतर पाएंगे ? न तो हमारे किसी संत ने या स्वामी ने आध्यात्मिक रूप से स्वामी विवेकानंद के आस पास अपने को लाने का प्रयास किया है न ही आज कोई उनके जैसा दिखता है, जो जाकर विश्व पटल पर अध्यात्मिक ज्ञान का सिक्का जमा सके, न ही हम आर्थिक रूप से उतने संपन्न हो सके हैं कि विश्व को चुनौती दे सके, न शैक्षिक रूप से उतने संपन्न हुए हैं और न ही सामरिक रूप से – फिर किस आधार पर हम यह कह सकते है कि हम विश्व गुरु बनाने जा रहे हैं । यह शुद्ध एक राजनीतिक झूठ है जिसे बोलकर जनता को गुमराह किया जाता है।
हां, हमारे राष्ट्र निर्माता इस झूठ से बचते हुए यह कहें कि यदि जनता सामूहिक प्रयास करे तो भारत फिर से विश्व गुरु के रूप में अपने को स्थापित कर सकता है । इसके लिए निरंतर प्रयास करना और समाज को प्रेरित करते रहना इन राष्ट्र पुरुषों का काम होना चाहिए न कि झूठे दिवास्वप्न दिखाकर फिर उसे जुमला करार देना उचित है। आदिकाल में हम विश्व गुरु थे, लेकिन जो स्थिति आज देश में बन गई है वह संकेत नकारात्मक है, इसके लिए हमें सकारात्मक होना ही पड़ेगा। समाज में मार-काट, सामाजिक वैवनस्यता को उठाकर दूर फेकना होगा — तभी हमारा दिवास्वप्न विश्व गुरु बनने का साकार रूप ले सकेगा। फिलहाल अभी हमें एक क्षीण-सी आशा की किरण भी दिखाई नहीं दे रही है । इसके लिए हमारे राजपुरूषों को निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है जिससे समाज का हर वर्ग एकता के सूत्र में बंध सके और जो हमारे विश्वगुरु बनने के सपनों को साकार कर सकें।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)
