खबर टूटी : लाल किला ठेके पर दिया। पच्चीस करोड़ में दिया। रखरखाव के लिए दिया।
क्या गलत किया?
क्या अब हर काम सरकार करे? झाडू पोंछा भी सरकार करे? सरकारी महकमा करे?
सेठ लोग किसलिए हैं? निजी कंपनियां किसलिए हैं? फिर इस पर बहस किस बात की?
एक चैनल ने बहस उठाई, लेकिन वह जल्द ही हिंदू-मुसलमान बन गई। अच्छा हुआ कि कुछ देर में खामोश हो गई।
इन दिनों हर बहस हिंदू-मुसलमान बन जाती है! किसी को फुरसत नहीं हुई कि पूछता कि भरत डालमिया को यह ठेका किस प्रकिया से दिया गया?
कौन पूछे? किसे मतलब?
बस हिंदू-मुसलमान होते रहना चाहिए!
कांग्रेस की आक्रोश रैली में राहुल को इतना आक्रोश हुआ कि शुरू में ही उनकी आवाज खाली हो गई।
आक्रोश में राहुल ने अल्टीमेटम दे डाला कि संसद में प्रधानमंत्री मुझे पंद्रह मिनट बोलने का मौका दें। वे मेरे सामने टिक नहीं पाएंगे। इस वीरता पर कुर्बान होकर कांग्रेसी ‘शेर के बच्चों’ ने ताली मारी।
शाम तक चैनल हिसाब लगा कर बताने लगे कि राहुल ने अड़तालीस मिनट बोला, जिसमें बावन बार प्रधानमंत्री का नाम लिया। क्या राहुल को प्रधानमंत्री फोबिया है?
जवाब में कर्नाटक से प्रधानमंत्री ने चुटकी ली कि राहुल बिना नोट्स के पंद्रह मिनट कर्नाटक के बारे में बोलें। वे चाहे अंग्रेजी में बोलें, चाहे हिंदी में बोलें या माता की भाषा में बोलें और इस पर जम के ताली ली!
इस बहसाबहसी के बीच दर्शकों का मनोरंजन अगर किसी ने किया तो त्रिपुरा के मुख्यमंत्री ने किया। एक से एक मौलिक स्थापनाओं के साथ वे चैनलों में कई दिन तक अवतरित होते रहे।
एक दिन बोले कि अपने यहां महाभारत काल में इंटरनेट था। अगर इंटरनेट न होता तो संजय घृतराष्ट्र को युद्ध का आखों देखा कैसे हाल सुना सकते थे? सत्य वचन महाराज!इतना और बताए होते कि तब ‘थ्री जी’ था कि ‘फोर जी’ था?
फिर एक रोज वे भारतीय सौंदर्यशास्त्र पर बोल दिए कि यह जो डायना हेडन है वह भारतीय सौंदर्य का मानक नहीं हो सकती। मिस वर्ल्ड किस्म की प्रतियोगिताएं सौंदर्य प्रसाधनों की मार्केंटिंग करती हैं। असली ब्यूटी तो ऐश्वर्य राय में है!
बस, वे इतना भूल गए कि ऐश्वर्य राय भी ऐसी ही प्रतियोगिता से बनी थीं!
एक दिन उनको बेरोजगार युवाओं की फिक्र हुई तो बोल दिए कि दस साल तक युवा सरकारी नौकरी के लिए नेताओं के पीछे दौड़ता है। अगर दस साल वह गाय पालता तो कमाने लगता। उन्होंने उनको पान बेचने का भी आइडिया दिया।
लेकिन इस बार ऐसी मौलिक स्थापना करने वालों में वे अकेले नहीं रहे। उनकी टक्कर में गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने भी एक निराला रहस्योद्घाटन किया कि नारद जी दुनिया के बारे में उसी तरह सब कुछ जानते थे, जिस तरह आज गूगल जानता है।
ऐसे आप्त वचनोें पर शंका कैसी?
एक दिन भाजपा के एक सांसद ने अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी के छात्र संघ के हॉल की दीवार पर टंगी जिन्ना की तस्वीर को हटाने की मांग कर डाली!
फिर क्या था? चैनल लग लिए और बताने लगे कि किस तरह जिन्ना ने देश का विभाजन कराया? किस तरह उनके हाथों पर दो लाख लोगों का खून है! ऐसे खलनायक की तस्वीर को तो तुरंत हटाया जाना चाहिए! सब इंतजार करने लगे कि अब हटी कि तब हटी। एक अंग्रेजी चैनल ने दो दिन तक हैशटैग किया : जिन्ना देश का दुश्मन। जिन्ना हट! जिन्ना हट! जिन्ना जा! जिन्ना जा! लगे हाथ सेक्युलर भी ठोक लिए गए! टाइम्स नाउ ने लाइन लगाई : देश का दुश्मन, उनका हीरो!
ऐसे दुश्मन को देख कर भी एक भाजपा के नेता का मन प्रो-जिन्ना हो गया और वह कह उठा कि तस्वीर नहीं हटाई जानी चाहिए। सपा के प्रवक्ता आए और बोल गए कि आजादी की लड़ाई में उनका भी योगदान रहा है…
दूसरे दिन अचानक एक चैनल ने खबर दी कि जिन्ना गायब हैं। उनकी तस्वीर गायब है, यानी वहां नहीं है जहां कल तक थी। क्या हुआ? कहां गई?
एक चैनल सुब्रहमण्यम स्वामी जी से पूछने लगा कि जिन्ना की तस्वीर गायब है? आप क्या कहते हैं? सदा की तरह हाजिरजवाब वे बोले : उसे हटे रहना चाहिए। उसे हमेशा के लिए हट जाना चाहिए। एएमयू के एक प्रवक्ता बोले कि सफाई के काम के कारण हटाई गई है। कहीं गायब नहीं हुई है। अगले रोज तस्वीर अपनी जगह थी और बहसें अपनी जगह!
शुक्रवार को एबीपी ने दिखाया : यूपी के मुख्यमंत्री कहते रहे कि एएमयू केंद्र का मसला है और शिक्षामंत्री जावडेकर जिन्ना के हटाने के सवाल से कन्नी काट कर निकल गए।
जिन्ना का जिन्न वहीं लटका रहा और चैनल हिंदू-मुसलमान करते रहे!
हर रोज विभक्त किए जाते जनतंत्र में तीसरी आवाजों की जरूरत किसे है?
बाखबरः जिन्ना का जिन्न
फिर क्या था? चैनल लग लिए और बताने लगे कि किस तरह जिन्ना ने देश का विभाजन कराया? किस तरह उनके हाथों पर दो लाख लोगों का खून है! ऐसे खलनायक की तस्वीर को तो तुरंत हटाया जाना चाहिए! सब इंतजार करने लगे कि अब हटी कि तब हटी।
Written by सुधीश पचौरी

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First published on: 06-05-2018 at 00:19 IST