22 मार्च 2022 को, जब बिहार राज्य अपनी स्थापना की 110वीं जयंती को बड़े जोश और उत्साह के साथ मनाने जा रहा है, तब लगभग 12.88 करोड़ बिहारियों की आंखों के सामने कई अच्छी यादों का पिटारा, सफलता की गाथा और विकास की दुर्लभ यात्रा का इतिहास होगा, जिसके लिए वे जश्न मना सकते हैं, साझा कर सकते हैं, और गर्व महसूस कर सकते हैं। लेकिन, इन सबके बीच लगभग 12.88 करोड़ जीवंत बिहारियों और बिहार सरकार के सामने करोड़ों डॉलर का यह अहम सवाल होगा कि- ज्ञान की यह पवित्र भूमि कब अवसरों और समाधान की भूमि बनेगी ?
इतिहास के गलियारे के माध्यम से बिहार दिवस: संदर्भ और विस्तार
ये विदित है कि, बिहार दिवस हर साल 22 मार्च को ब्रिटिश शासन द्वारा राज्य को बंगाल प्रेसीडेंसी से अलग करने के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। 21 मार्च, 1912 को तत्कालीन बंगाल प्रेसीडेंसी गवर्नर थॉमस गिब्सन कारमाइकल द्वारा बंगाल को चार प्रांतों- बंगाल, उड़ीसा, बिहार और असम में विभाजित करने की घोषणा की गई थी। बाद में 1936 में, ओडिशा को बिहार से अलग कर दिया गया था, और पुनः वर्ष 2000 में झारखंड राज्य बनाया गया था। 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में सुशासन बाबू नीतीश कुमार के पदभार संभालने के बाद फिर से यह दिन बड़े पैमाने पर मनाया जाने लगा, और इसे सबसे पहले वर्ष 2010 में बड़े पैमाने पर मनाया गया था। बिहार दिवस का उत्सव, केवल बिहार राज्य और भारत में ही सीमित नहीं है, बल्कि ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूरोप, मॉरीशस, संयुक्त अरब अमीरात, संयुक्त राज्य अमरीका, और त्रिनिदाद जैसे अन्य देशों में रहने वाले बिहारी प्रवासी भी इस दिन को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं।
बिहार दिवस 2022 के संदर्भ में: प्रासंगिकता और संभावना
इस वर्ष बिहार दिवस का थीम (विषय) बिहार सरकार की महत्वाकांक्षी योजना, “जल जीवन हरियाली और नल-जल योजना” पर केंद्रित है। यह थीम बिहार सरकार द्वारा लोगों में वार्षिक वर्षा की घटती दर, कई जिलों में घटते जल स्तर, जल सुरक्षा के लिए खतरा और राज्य भर में हरियाली के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए रखा गया है।
सोशल मीडिया के युग में, जहां लगभग हर कोई हर विषय पर विशेषज्ञ बन गया है, और एक राष्ट्र के रूप में, हम आभासी जगद-गुरु के सुनहरे दौर से गुजर रहे हैं ।यह मुझे याद दिलाता है, हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंगकार हरिशंकर परसाई (1924-1995) जी के एक प्रचलित उद्धरण का, “हम मानसिक रूप से दोगले नहीं तिगले हैं। संस्कारों से सामन्तवादी हैं, जीवन मूल्य अर्द्ध-पूँजीवादी हैं और बातें समाजवाद की करते हैं।
“द बिहार फाइल्स”- वार्ता, बुद्धिजीवी और बड़ा पर्दा
बिहार को समझने के लिए, हमें ” द बिहार फाइल्स” को समझना होगा, जो विभिन्न आयामों के माध्यम से बिहार के आख्यानों के इर्द-गिर्द घूमती है। यह उसी तर्ज पर है, जैसे अभी पूरा भारत “द कश्मीर फाइल्स” की लहर से गुजर रहा है, और सबका अपना आख्यान और सत्य है, जो धारणा और प्रकाशिकी की राजनीति के बीच छिपा हुआ है।
कुछ बुद्धिजीवियों ने बिहार को ‘रुकतापुर’ की संज्ञा दे दी, यानि ऐसी जगह जहां विकास के पहिये जाम हो गए। हालाँकि, यह लगभग हर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विकास सूचकांकों में बिहार राज्य के साल दर साल खराब या सबसे खराब प्रदर्शन के अनुरूप भी है- फिर चाहे वह सतत विकास लक्ष्य सूचकांक हो, भोजन, कपड़े, आवास, स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधाएं से संबंधित सूचकांक हों , प्रशासन के सभी स्तरों में मौजूद बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, प्रशासन और शासन और सार्वजनिक सेवाओं के वितरण में जवाबदेही, नैतिकता, सत्यनिष्ठा और जवाबदेही का अभाव, व्यापार करने में आसानी में चुनौतियां, आम बिहारियों की सुरक्षा, और आबादी के हाशिए पर रहने वाले वर्ग- जैसे कि महिला, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, एलजीबीटी की भलाई। इन सभी ने अंततः राज्य को बीमारू श्रेणी या तथाकथित रुक्तापुर में में धकेल दिया।
बॉलीवुड के सिल्वर स्क्रीन, मीडिया और गैर-सूचित कथाओं ने भी पिछले कुछ वर्षों में बिहार के बारे में कई नकारात्मक धारणाएं पैदा की हैं। भगवान बुद्ध, भगवान महावीर और गणितज्ञ आर्यभट्ट की पवित्र और ज्ञानी भूमि के रूप में बिहार , भारतीय सभ्यता की पालना, माता सीता की जन्मभूमि, भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू की जन्मभूमि- ये सभी अच्छे और सकारात्मक पहलू छिपे हुए हैं। और इसकी जगह- भारत का सबसे पिछड़ा राज्य, बेरोजगार युवाओं की फौज वाला प्रांत, भूखे और कुपोषित बच्चों वाला राज्य जैसे आख्यानों ने ले लिया। अधिकांश भारतीयों की नज़र में आधुनिक बिहार का एकमात्र सकारात्मक पहलू यह है कि बिहार सबसे अधिक संख्या में सिविल सेवा अधिकारियों, वैज्ञानिकों और अभियंता का घर भी है।
अब आगे क्या और कैसे बने बिहार
अपने 110वें जन्मदिन के मौके पर, बिहार को कई सवालों के जवाब देने और शासन और प्रशासनिक घाटे और विकासात्मक असमानताओं से जुड़ी चुनौतियों को हल करने के लिए कई विकासात्मक आयामों में आगे बढ़ना है। फिर चाहे, वो “आर्थिक हल, युवाओं को बल या युवा शक्ति-बिहार की प्रगति”, नीति की आकांक्षा हो, जो सरकारी और निजी क्षेत्र की भागीदारी के मिश्रित दृष्टिकोण से ही संभव है।
इस दिशा में, बिहार उद्योग संघ के साथ उद्योग विभाग, बिहार सरकार द्वारा हाल ही में संपन्न बिहार स्टार्ट अप कॉन्क्लेव (12 मार्च 2022) का आयोजन एक स्वागत योग्य कदम है और इसमें “बिहार को स्टार्ट-अप कैपिटल” में बदलने की क्षमता है, यदि इस प्रक्रिया में शामिल प्रत्येक हितधारक अपनी क्षमताओं का सर्वोत्तम प्रयास करते हैं, और इसके बाद प्रत्येक स्तर पर लगातार और उचित अनुवर्ती कार्रवाई करते हैं। जब भारत ने 2016 में अपनी स्टार्ट-अप नीति लागू की, तो बिहार देश का पहला राज्य था, जिसने 10 लाख रुपये के सिड कोष (फंड) के साथ शुरुआत की।
इसके अलावा, एक विशेष आर्थिक क्षेत्र के निर्माण पर ध्यान देना, प्रवासी भारतीयों (बिहारी) को निवेश बोर्ड में रखते हुए, नौकरशाही लालफीताशाही को दरकिनार करने के लिए एक जवाबदेह और पारदर्शी फास्ट ट्रैक अनुमोदन तंत्र भी “ब्रेन-ड्रेन (प्रतिभा पलायन)” को रोकेगा और “रिवर्स ब्रेन-ड्रेन” की संस्कृति को चालू करेगा। ।
राज्य में अनछुए और कम ज्ञात पर्यटन स्थलों को ध्यान में रखते हुए पर्यटन क्षेत्र में निवेश पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कदम, वैश्विक महामारी कोविड -19 के पहली और दूसरी लहरों से सबक लेते हुए स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे (प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल) में निवेश, शिक्षा प्रणाली का एक पूर्ण ओवरहाल, प्रवास और प्रवासी श्रमिकों के लिए स्थायी एंटी-डॉट तैयार करना ताकी उन्हे देश के दूसरे राज्यों से बार बार धक्का और गाली खाकर घर आना न पडे़, अन्य सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए शराबबंदी जैसी मजबूत नीति, और महत्वाकांक्षी सात निश्चय योजनाओं (2.0) के वास्तविक कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना, आदि से हीं आत्मनिर्भर बिहार बनाया जा सकता है।
(यहां व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं।)