बीजेपी के लिए इससे ज्यादा शर्मिंदगी भरा कोई दिन नहीं हो सकता। बुधवार को ही पार्टी अध्यक्ष अमित शाह गुवाहाटी में नॉर्थईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (NEDA) लॉन्च करने वाले थे। यहां वे ‘कांग्रेस मुक्त नॉर्थईस्ट’ के नारे के साथ ‘गुवाहाटी डिक्लेरेशन’ को जनता के सामने रखने वाले थे। इसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस की पुरानी सरकार दोबारा से बहाल की जाए। बीजेपी के जख्मों पर नमक रगड़ते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की सरकार को बर्खास्त करने और राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को ‘असंवैधानिक और गैरकानूनी’ करार दिया।
गुवाहाटी में होने वाली इस बैठक में कलिखो पुल भी होंगे। पुल लंबे राजनीतिक ड्रामे के बाद फरवरी में अरुणाचल प्रदेश के सीएम बने थे। तीन अन्य सीएम-असम के सर्वानंद सोनोवाल, नगालैंड के टीआर जेलियांग और सिक्किम के पवन चामलिंग के अलावा नॉर्थ ईस्ट राज्यों के आठ बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष इस कार्यक्रम में मौजूद होंगे। बीजेपी यहां इन राज्यों में विकास कार्य न होने के लिए कांग्रेस पर हमला बोलेगी। बीजेपी ने असम में मिली जीत को गर्व के साथ सबके सामने पेश किया गया है। वो इसे नॉर्थ ईस्ट में अपने प्रवेश के प्रतीक के तौर पर हाईलाईट कर रही है। असम जो लंबे वक्त तक कांग्रेस का गढ़ था।
नबाम तुकी सरकार उस वक्त बर्खास्त कर दी गई थी, जब 47 में से 21 विधायकों ने सीएम के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। गवर्नर जेपी राजखोवा ने राज्य विधानसभा का सत्र बुलाया, जिसमें विपक्षी विधायकों ने तुकी और स्पीकर नबाम रेबिया को ‘हटा दिया।’ विधानसभा की कार्यवाही एक कम्युनिटी सेंटर में पूरी की गई। स्पीकर किसी को चुना गया ताकि गवर्नर के आदेशों के मुताबिक किसी किस्म के ‘पक्षपात’ से बचा जा सके। 19 फरवरी को असंतुष्ट धड़े के नेता कलिखो पुल ने सीएम पद की शपथ ली। उनके पास 20 विद्रोही कांग्रेसी विधायकों और 11 बीजेपी एमएलए का समर्थन था। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार के अपने फैसले में माना कि यह पूरी प्रक्रिया असंवैधानिक थी।
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सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने बीजेपी को बड़ा झटका दिया है, लेकिन इस बात की उम्मीद बेहद कम है कि वे सीमावर्ती राज्यों में सत्ता हासिल करने की कोशिशें छोड़ देंगे। बीजेपी को लगता है कि ऐसा करना रणनीतिक तौर पर और केंद्र स्थित बीजेपी की सरकार के लिए सही है।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से यह सत्ताधारी पार्टी को दिया गया दूसरा सबसे बड़ा झटका है। उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार को अस्थिर करने के लिए बीजेपी का विद्रोही कांग्रेसी विधायकों से हाथ मिलाने का दांव बेकार गया। बीजेपी के इस कदम को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। 12 मई को कोर्ट ने रावत की अगुआई वाली बीजेपी सरकार को दोबारा से उत्तराखंड की कमान सौंप दी। फ्लोर टेस्ट में रावत को मिली जीत के बाद केंद्र सरकार को राष्ट्रपति शासन हटाना पड़ा। सरकार को अस्थिर करने की कोशिशों के लिए बीजेपी को खासी आलोचना झेलनी पड़ी।
असम में मिली शानदार जीत ने बीजेपी को वो आत्मविश्वास दिया है, जिसके सहारे वो नॉर्थ ईस्ट में अपने कांग्रेस मुक्त अभियान को आगे बढ़ा सकती है। इन राज्यों में कांग्रेस विरोधी घटकों के साथ काम करने के लिए पार्टी ने कई ग्रुप बनाए हैं। वर्तमान में कांग्रेस मणिपुर, मेघालय, मिजोरम में सत्ता में है। वहीं, बीजेपी के सहयोगी नगालैंड और सिक्किम में शासन कर रहे हैं। त्रिपुरा में लेफ्ट की सरकार है।
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बीजेपी महासचिव राम माधव असम में पार्टी की रणनीतिक और चुनावी गतिविधियों में अहम भूमिका निभा चुके हैं। वे राज्य में हेमंत बिस्वा शर्मा के साथ मिलकर कथित तौर पर उन कांग्रेसी विधायकों के संपर्क में हैं, जो कांग्रेस आलाकमान से असंतुष्ट या नाराज चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अलग थलग पड़ी बीजेपी फिलहाल बैकफुट पर है। हालांकि, कोई भी पार्टी नेतृत्व की आलोचना नहीं करना चाहता लेकिन एक नेता ने कहा कि अगर पार्टी चीफ अमित शाह बीजेपी की उपलब्धियों का श्रेय लेते हैं तो उन्हें सारे दोष भी लेने चाहिए। कुछ अन्य बीजेपी नेताओं का कहना है कि उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश के राजनीतिक घटनाक्रम ने बीजेपी की ‘खराब छवि’ पेश की है और राज्य चुनावों में मिली जीत की चमक को धूमिल किया है। पार्टी के एक नेता का कहना है कि 11 करोड़ वोटर्स, जिनमें नॉर्थ ईस्ट में मिली बढ़त भी शामिल है ,के सहारे पार्टी इन राज्यों को लोकतांत्रिक तरीके से भी जीत सकती है। पार्टी के नेता के मुताबिक, इस तरह के कदम से लोगों को यह संदेश जाएगा कि कांग्रेस और बीजेपी में कोई फर्क नहीं है।