अमिताभ बच्‍चन दूसरी बॉलीवुड हस्तियों की तरह नहीं है। वह अपने आप में एक संस्‍था हैं। गोधरा कांड के बावजूद अमिताभ का मोदी के गुजरात का ब्रांड अम्‍बेसडर बनना समझ में आता है, क्‍योंकि भारत या किसी राज्‍य का ब्रांड अम्‍बेसडर बनना पक्षपात रहित है। ब्रांड अम्‍बेसडर देश या राज्‍य की बेहतर इमेज बनाने के लिए होता है। लेकिन जब अमिताभ एनडीए के मेगा शो को होस्‍ट करने के लिए हामी भरते हैं, वह पक्षपाती हो जाते हैं। वह हर उस कार्य में भागीदार बन जाते हैं जो लिए मोदी/एनडीए ने अब तक किए हैं या नहीं किए हैं।

कांग्रेस इस मामले में नरम रुख अपनाए हुए है क्‍योंकि पनामा पेपर्स में अमिताभ का नाम आने पर शोर मचाने से वह उस सिद्धांत को चुनौती देगी जो कहता है कि हर गुनाहगार जुर्म साबित होने तक बेगुनाह रहता है। शायद कांग्रस हाल के चुनावों में बुरी तरह हार के बाद बंगाल के चुने हुए विधायकों से निष्‍ठा की शपथ लिखवाने में व्‍यस्‍त है या फिर भारत के कानूनी तंत्र और परंपराओं के मूल पाठ याद कर रही है। वंशवादी गुलामी कांग्रेस के डीएनए में इतनी मजबूती से मिल गई है कि इनके प्रवक्‍ता किसी भी बहस में सबसे महत्‍वपूर्ण मुद्दों को नजरअंदाज कर जाते हैं।

अगर मोदी सरकार या बीजेपी की तरफ से अमिताभ को बच्चियों को बचाने पर बोलने के लिए बुलाया जाता, जिसकी पैरवी उनके बेटे अभिषेक ने भी की है, तो वह जाते और बोलकर चले आते। किसी को कोई आपत्ति नहीं होती। अगर वह मोदी सरकार के दो साल पूरा होने पर होने वाले जश्‍न को होस्‍ट करते हैं तो यह मानना ही पड़ेगा कि वह निसंदेह उसके हिंदुत्‍व एजेंडे का समर्थन करते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं जब मोदी सरकार ने भारत को आरएसएस के हिसाब से चलाने की कोशिश की। जिस तरह अल्‍पसंख्‍यकों के खिलाफ हिंसा, यूनिवर्सिटीज और भारत में हुईं बहसें और तर्कवादी लेखकों की हत्‍या को संभालने की कोशिश की, उसमें आरएसएस की छाप साफ देखी जा सकती है। सबसे घातक तो 2014 के चुनावी घोषणा पत्र में अयोध्‍या में राम मंदिर बनाने की बात लिखना था, क्‍योंकि एक ही लाइन से बीजेपी ने धर्म और राज्‍य के बीच का फर्क साफ कर दिया। अमिताभ सेक्‍युलर इंसान माने जाते हैं। उन्‍होंने जाति को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में अपनी जाति भारतीय बताई थी। यह बात उनके बहुत सारे प्रशंसकों केा अच्‍छी लगी थी, मुझे भी।

फिर वही सेक्‍युलर इंसान कैसे एनडीए/बीजेपी सरकार के दो साल पूरा होने और चुनावों में जीत के जश्‍न को होस्‍ट कर सकता है, वही बीजेपी जो एक मंदिर बनाने का वादा करती है, एक धार्मिक मंदिर? एक सेक्‍युलर संविधान के होते हुए कैसे कोई भारतीय राजनैतिक पार्टी भारत में कहीं भी, खासतौर से एक अति विवादित जगह पर मंदिर बनाने की बात कर सकती हैं? चर्च और राज्‍य के अलगाव के सिद्धांत का क्‍या जिसे आधुनिक भारत के संस्‍थापकों ने इतना पोषित किया है? अल्‍पसंख्‍यकों से भरे हुए भारत जैसे देश में एक सच्‍चा लोकतंत्र, राजनीति और धर्म के घातक मिश्रण से ज्‍यादा दिन जीवित नहीं रह पाएगा, फिर चाहे वह अल्‍पसंख्‍यक धर्म हो या बहुसंख्‍यक।

ऊपर से ऐसा भी नहीं कि अमिताभ स्‍वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस के मौके पर मेजबानी करने जा रहे हैं। ऐसा होता तो वह पूरी तरह से जायज होता क्‍योंकि ये दिन सभी भारतीयों के लिए हैं और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सत्‍ताधारी पार्टी किस विचारधारा की है। अमिताभ एक महान भारतीय कलाकार हैं। वह कांग्रेस सांसद बनकर पहले भी राजनीति से तौबा कर चुके हैं। सालों तक अमिताभ राजनीति में आने को अपनी बड़ी गलती बताते रहे हैं। उनके जैसे कद के कलाकार का बीजेपी/एनडीए का जश्‍न होस्‍ट करने की एक गलती कई बड़ी गलतियों के बराबर होगी।

(दोसांज ब्रिटिश कोलंबिया के पूर्व प्रधानमंत्री और कनाडा के पूर्व स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री हैं।)