यह समय युद्ध का नहीं है। हाल के दिनों में विभिन्न वैश्विक मंचों पर भारत ने बुलंद आवाज के साथ यह बात कही है। भारत के पास महाभारत का संदेश है जो युद्ध के खिलाफ एक महाआख्यान रचता है। महाभारत का संदेश अठारह दिनों के बाद का है, जब दोनों पक्ष हारा हुआ महसूस करते हैं। महाभारत से लेकर आज तक हर युद्ध अधिकारों के अंधेपन के साथ शुरू होता है क्योंकि मर्यादा की नाजुक डोर को संभालने की शक्ति किसी के पास नहीं है। हमास के इजराइल पर हमले के बाद दुनिया जितने बुरे की आशंका कर रही थी उससे ज्यादा बुरा हुआ। आशंका और बुरे हालात की है। गाजा पट्टी के अस्पताल पर राकेट गिरने के साथ ही बीसवीं सदी के वे मूल्य भी मलबा बन गए जो उसने दो विश्वयुद्धों से हासिल किए थे। जब किसी खास क्षेत्र की पूरी अवाम को ही दुश्मन मान कर बच्चों, स्कूलों, अस्पतालों को भी नहीं बख्शा जाए, संयुक्त राष्ट्र की एजंसियां बेबस हो जाएं तो भारत जैसे देश की भूमिका और बड़ी हो जाती है। महाभारत और गांधी के संदेशों के साथ युद्ध के विरुद्ध खड़े भारत पर प्रस्तुत है बेबाक बोल।
यह अजब युद्ध है नहीं किसी की भी जय दोनों पक्षों को खोना ही खोना है अंधों से शोभित था युग का सिंहासन दोनों ही पक्षों में विवेक ही हारा दोनों ही पक्षों में जीता अंधापन भय का अंधापन, ममता का अंधापन अधिकारों का अंधापन जीत गया जो कुछ सुंदर था, शुभ था, कोमलतम था वह हार गया…द्वापर युग बीत गया।
महाभारत के बाद का यह दृश्य ‘अंधा युग’ में धर्मवीर भारती ने खींचा है। अठारहवें दिन की संध्या से लेकर प्रभास-तीर्थ में कृष्ण के मृत्यु के क्षण तक की बात हो रही है। मर्यादा की एक पतली सी डोर को बचाना था, इतने बड़े विध्वंस को बचाने के लिए। उस नाजुक डोर को बचाने का साहस महारथियों में भी नहीं था। एक से एक सिद्धियों वाले, शक्तिशाली अस्त्रों वालों ने उस नाजुक डोर से मुंह फेर लिया।
भारत की दावेदारी है कि यह युग उसका है। भारत ने अपने दर्शन के साथ महाभारत को समेट रखा है। यह युद्ध का समय नहीं है…। यही एक भाव है जिसने पिछले महीने भारत में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में वार्ता की दशा और दिशा बदल दी। रूस और चीन के प्रमुखों की गैरमौजूदगी में कयास लगाए जा रहे थे कि साझा घोषणापत्र की कोई सूरत बन ही नहीं सकती है।
रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक शक्तियों को दो खेमों में बांट रखा था तो किसी साझे सुर में बात होनी मुश्किल थी। भारत ने आगे की राह का खाका खींचते हुए राह बनाई और संदेश दिया कि यह युद्ध का समय नहीं है। युद्ध के विरुद्ध वाले इस भाव के खिलाफ न रूस जा सकता था और न यूक्रेन के समर्थक।
युद्ध एक ऐसी विध्वंसक स्थिति है जिसमें युद्धरत समुदाय भी युद्ध होते रहने की वकालत नहीं कर सकता है। जो जीत रहा होता है वह भी युद्ध में खड़े रहने को न्यायोचित ठहराने की कोशिश भर करता है। कोरोना के बाद जब दुनिया संभल रही थी तभी रूस और यूक्रेन युद्ध छिड़ गया। युद्ध-स्थल से आई तस्वीरों को देख दुनिया दहल रही थी। रोजगार और महंगाई को लेकर अपने-अपने गृह-देश में नाकाम सरकारें रूस-यूक्रेन युद्ध का हवाला दे रही थीं कि युद्ध के कारण तेल महंगा, अनाज महंगा, बाजार लुढ़के।
आधुनिक इतिहास में दर्ज प्रथम विश्वयुद्ध से लेकर आज तक किसी युद्ध की उपलब्धि यह नहीं है कि उससे खेत लहलहाए, दूध-घी की नदियां बहीं। बच्चों के लिए नए स्कूल बने, अस्पताल बने, संततियों की नस्लें बेहतर हुईं। इसके बाद भी युद्ध को लेकर आकर्षण। इसमें डटे रहने को लेकर आकर्षण। इसके लिए मरने-मारने को लेकर आकर्षण।
कुछ समय पहले कहा जा रहा था कि अब गोले-बारूदों वाले युद्ध का समय गया। मगर रूस-यूक्रेन युद्ध के समय ही दिख गया था कि मारने-मरने का आकर्षण खत्म नहीं हुआ है। बंदूक लेकर निकली महिलाएं और बच्चे। इनका महिमामंडन। कितने देर तक टिक पाएंगे ये युद्ध में? लेकिन हम युद्ध में डटे रहने वालों के गीत गाएंगे। दोनों पक्ष की जनता अपने-अपने आए हिस्से के युद्ध को लेकर गौरवान्वित होने को मजबूर होगी। बच्चों की नन्ही कब्र बताएगी कि देखो तुम्हारी लड़ाई में हमने कितनी कम जमीन ली।
एक बार फिर से ऊपर उद्धृत भारत और महाभारत पर बात। महाभारत से प्रेरणा लेने वाला देश भारत बार-बार कह चुका है कि वह किसी भी तरह के आतंकवाद और युद्ध के खिलाफ है। युद्ध के विरुद्ध, उसके इस स्पष्ट उच्चारण के कारण वैश्विक मंच पर उसका रुतबा मानवता के साथ चलने वाले देश का है।
आज जब भारत कहता है कि यह युद्ध का समय नहीं है तो यह कहने की प्रेरणा भी महाभारत से ही मिलती है। महाभारत का संदेश युद्ध के खिलाफ है। महाभारत का संदेश गाजा पट्टी की उस पूरी कौम के साथ है जिस पर एक युद्ध थोप दिया गया है। हर सभ्यता ने अपनी जननी जन्मभूमि को स्वर्गभूमि माना है। वहां के एक समूह के कृत्य की सजा एक पूरी सभ्यता को नहीं दी जा सकती है। भारत आज गाजा पट्टी में पूरी तरह से मानवता के पक्ष में है।
स्कूल और अस्पताल दो ऐसी जगहें हैं जिन्हें दुनिया भर में सबसे सुरक्षित माना जाता है। लेकिन गाजा पट्टी में जब पनाह लिए, इलाज करवा रहे फिलिस्तिनियों पर राकेट गिराए गए तो लगा कि बीसवीं सदी के अंतिम मूल्य की भी हत्या हो गई। बीसवीं सदी प्रथम और द्वितीय विश्व-युद्ध के सबक की सदी थी। हिरोशिमा-नागासाकी की भयावह तस्वीरों की सदी थी।
बीसवीं सदी गलतियों के पाठ्यक्रम वाले स्कूलों की सदी थी, मानवतावादी ज्ञान-विज्ञान की सदी थी। बच्चे स्कूलों में युद्ध के विरुद्ध गान गाते हैं, शांति-पाठ करते हैं। स्कूलों-महाविद्यालयों के परिसरों ने दुनिया बदल देने का सपना दिखाया था। लेकिन, यह दुनिया उलटी दिशा में बदल रही है। दुनिया की हर सभ्यता ने युद्ध को नैतिकतावादी दृष्टि से शुद्ध रखने के लिए कुछ नियम बनाए। युद्ध में नैतिकतावादी दिल को बहलाने के लिए मर्यादा की रेखा खींची गई कि अस्पतालों और स्कूलों पर हमले नहीं होंगे। जहां मरीज और बच्चे हों वहां बम नहीं बरसाए जाएंगे।
राकेट के हमले से ध्वस्त गाजा के अस्पताल के मलबे में सिर्फ अस्पताल का मलबा नहीं है। यह बीसवीं सदी में खड़े किए गए सभी स्कूलों, शोध संस्थानों का मलबा है। जी-एक, दो, तीन, चार से लेकर अगले सौ तक जैसे किसी कथित शक्तिशाली समूह का मलबा है। यह संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं का मलबा है जिसे वैश्विक शक्तियों ने अपनी-अपनी शक्ति के हिसाब से सजावटी सामान बना रखा है। गाजा पट्टी में वह बिना दवा और संसाधनों के खड़ा है। इसमें उस अंतरराष्ट्रीय संधि के किताब की राख है जिसके मौलिक अक्षरों को हर देश अपनी-अपनी तरह से मिटाता रहा है।
पूरी गाजा पट्टी को एक खुला ताबूत बना दिया गया है। एक इंच जमीन ऐसी नहीं छोड़ी गई है जिसे सुरक्षित कहा जा सके। मानवीय मूल्यों पर ही राकेट बरसा दिए गए। वैश्विक शक्तियों की युद्ध-युद्ध की दहाड़ के बीच वहां के नागरिक अनाथ हैं। वहां के हर नागरिक के सिर पर मौत का खतरा है क्योंकि वे एक खास भूगोल में रह रहे हैं जिसके इतिहास को वर्तमान राजनीति अपने हिसाब से इस्तेमाल करना चाहती है।
आज भारत आतंकवाद के विरोध में और गाजा के लोगों के जीने के हक को लेकर खड़ा है। भारत के पास महाभारत का संदेश है। महाभारत में एक भीषण युद्ध रचा गया, जिसके बाद द्वापर युग का अंत हो गया। हर शुभ संदेश को नकार कर युद्ध का अशुभ रचा गया। जिस सूत्रधार ने युद्ध करने का उपदेश दिया, उसका पाठ मानवता को उस दिशा में ले जाना था जहां युद्ध के लिए हर तरह की नकार हो। महाभारत का अंत शांति का संदेश है। मर्यादा के मान रखने का संदेश है। जो महाभारत समझेगा वह अहिंसा की राह चुनेगा।
आज दुनिया भर में कई देशों के मुख्य चौराहों पर महात्मा गांधी की मूर्ति है। भारत ने अपने हाथ में जो अहिंसा का औजार थाम रखा है उसी के बूते वह गर्व के साथ कह सकता है कि हम गाजा के नागरिकों के साथ हैं। एक बार अगर आपने अपनी नीति में अहिंसा की सुविधा रख ली तो फिर किसी तरह की नीतिगत दुविधा नहीं होती है।
गाजा में अधिकारों के अंधेपन में जिन्होंने मानवीय मूल्यों की हत्या की है, कल उन्हें भी शर्मसार होकर अहिंसा की बात ही कहनी होगी। पूरी गाजा पट्टी को कब्रगाह बनाने वालों को महाभारत के अठारहवें दिन के बाद का दृश्य बहुत जल्द दिखेगा। सुंदर, शुभ और कोमलता की हत्या के खिलाफ खड़े होकर भारत ने अपने अहिंसा के औजार को और धारदार किया है। अहिंसा अजेय है।