जब डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी राष्टपति पद के उम्मीदवार के तौर पर अबकी बार ट्रंप सरकार कहा था तो भारत में उसका प्रचार-प्रसार कॉलर ऊंचा करके किया गया। कितने बुलंद हैं हम कि हमारे यहां वाले चुनाव प्रचार की शैली अमेरिका में अपनाई जा रही है। यह तरीका था भारतीय मूल के अमेरिकी मतदाताओं को खुश करने का। लेकिन सरकार बनाते ही डोनाल्ड ट्रंप सबसे पहले इसी प्रवासी तबके को नाखुश करते हैं। जनाब डोनाल्ड ट्रंप की सरकार ने कहा कि जो अमेरिकी हैं पहले उनके रोजगार की चिंता की जाएगी। उत्तर सत्य के इस दौर में उत्तर चुनाव सत्य की महिमा अपरंपार है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पूरे देश में रोजगार को मुद्दा बनाते हैं, उस पर भावुक भाषण देते हैं, किसानों के आंदोलन में शिरकत कर विपक्ष के साझा मंच से भाषण देते हैं। कांग्रेस को हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में जीत मिलती है। इनमें अहम राज्य मध्य प्रदेश में कमलनाथ को मुख्यमंत्री की गद्दी सौंपी जाती है। वे कमलनाथ जो जन्मना मध्य प्रदेश के नहीं हैं और जिन्होंने लंबे समय तक सिर्फ संसदीय चुनाव क्षेत्र के तौर पर ही मध्य प्रदेश से नाता रखा।
लोग पूछ ही रहे थे कि क्या कमलनाथ मध्य प्रदेश के लिए सबसे योग्य थे तभी उनकी तरफ से आवाज आती है कि यूपी, बिहार के लोग मध्य प्रदेश के लोगों की नौकरी खा रहे हैं। मध्य प्रदेश में 70 फीसद नौकरियां मध्य प्रदेश के लोगों को देंगे। मध्य प्रदेश के लिए आप ज्यादा से ज्यादा नौकरियां सृजित करिए, आपका स्वागत है। एक राज्य का मुख्यमंत्री राज्य के बारे में ही सोचेगा और बोलेगा। लेकिन आपकी भाषा से जो उत्तर चुनाव सत्य झलका वह चिंताजनक था। यह सत्य था, मध्य प्रदेश के निवासियों के बीच उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के लिए नफरत के बीज बोना। गाय, गंगाजल, गोमूत्र, गोत्र और जनेऊ वाले चुनाव प्रचार में जीत के बाद जो पहले बोल निकले, वो विभाजनकारी ही क्यों?
कमलनाथ ने जो कहा, हमारे देश में बहुत से नेता पहले भी ऐसा कह चुके हैं। कुछ ही समय पहले दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने फैसला किया था कि राष्टÑीय राजधानी के कुछ सरकारी अस्पतालों में उन्हीं लोगों का इलाज होगा जो दिल्ली के मूल निवासी हों। पूर्वी दिल्ली स्थित जीटीबी अस्पताल में कुछ दिनों तक अफरातफरी की स्थिति रही क्योंकि आस-पास के जो लोग पहुंचते उन्हें इलाज से इसलिए वंचित किया जा रहा था क्योंकि वे यूपी-बिहार या अन्य राज्यों के थे। हालांकि अदालती दखल के बाद जल्द ही इस फैसले को पलटना पड़ा। महाराष्टÑ में शिवसेना की राजनीति दक्षिण भारतीयों और उत्तर भारतीयों को स्थानीय नौकरियों से बेदखल करने के नारे से ही शुरू हुई। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता शीला दीक्षित भी अपनी प्रशासनिक नाकामियों का ठीकरा यूपी-बिहार पर फोड़ चुकी थीं। गुजरात के मुख्यमंत्री भी राज्य की 80 फीसद नौकरियां स्थानीय लोगों को देने के ख्वाहिशमंद थे।
कमलनाथ से लेकर शीला दीक्षित तक ऐसा बोलते रहे हैं। इनके बोलने पर हंगामा भी खूब मचता है। लेकिन अब जरा बात इस पर की जाए कि आखिर ये ऐसा बोलते क्यों हैं? वह कौन सा अंतर्विरोध है जिसे लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है। भारत में रेलवे, केंद्र या राज्य सरकार की नौकरियां बहुत सीमित हैं जिनमें और भी सीमित दायरे में लोगों की भर्तियां हो पाती हैं। देश का बड़ा तबका खेती-किसानी और कल-कारखानों से पैदा हुए रोजगार पर निर्भर है। ज्यादातर नौकरियों का संदर्भ औद्योगीकरण से है। यह स्वाभाविक है कि जब औद्योगीकरण होगा तो उसके लिए स्थानीय जमीनें ली जाएंगी। वो जमीन जहां कभी खेत थे, फलों के बागान थे। जमीन वह स्थानीय संसाधन है जो उद्योगों की बुनियाद है। विकास का मुख्य आधार है, इसलिए इसी जमीन पर विस्थापन भी है। सड़क, पुल, हवाईअड्डा, कल-कारखानों के लिए स्थानीय लोग अपनी जमीन से उजड़े और इनके द्वारा पैदा की जानेवाली नौकरी पर आश्रित हुए। जमीन से बेदखल होने के बाद इन विस्थापितों की जीवनशैली बदल गई। अब खेत नहीं जहां फसल उगे, पोखर नहीं जहां मछलीपालन हो, चरागाह नहीं जहां मवेशी को भोजन मिले।
खेत, चरागाह, पोखर वाली जीवनपद्धति तो बदल दी लेकिन उस खेत और चरागाह को रोजगार में नहीं बदल पाए। जो खेती से निकला उसे रोजगार से नहीं जोड़ा। खेत के बदले जो मुआवजा मिला वह रोजी-रोटी नहीं बन पाया। मुआवजे का पैसा खत्म हुआ और रह गए खाली हाथ। खाली हाथ जमीन खोने का जो असंतोष उभरा उसका चरम हम सिंगुर से लेकर नंदीग्राम तक के संघर्ष में देख सकते हैं। भारत की प्रतिष्ठित निजी कंपनी और वाम मोर्चे की सरकार के बीच का करार वाम और अवाम के बीच संघर्ष की वजह बना था। स्थानीय स्तर पर जमीनों के अधिग्रहण पर प्रतिरोध हो रहा था। पश्चिम बंगाल में वाम किले के ढहने का एक प्रमुख कारण यह भी था कि रोजगार के लिए आगे की राह तय नहीं हो पा रही थी।
सिंगुर-नंदीग्राम के राजनीतिक नतीजों को परे रखते हुए इसके आर्थिक और सामाजिक पहलुओं को देखें तो सबसे बड़ी दुविधा यह रही कि वैश्वीकरण के नारे में सिर्फ पूंजी ही वैश्विक हो पाई। काम करने वाले हाथ पूंजी की दिशा में बहने में नाकामयाब रह प्रवासी बनाम स्थानीय करार दिए गए। पूंजी तो कहीं भी जा सकती है, लेकिन कामगारों के उस पूंजी तक पहुंचने के बीच वीजा की दीवार खड़ी है। डोनाल्ड ट्रंप जैसी सरकारें वैश्विक पूंजी के साथ स्थानीय रोजगार के साधन तैयार नहीं कर पाती हैं और अपनी नाकामियों का ठीकरा इन्हीं प्रवासियों पर फोड़ती हैं। अमेरिका में आवाज गूंजती है कि देखो वह भारतीय है, वह मैक्सिको का है जो तुम्हारी नौकरियां खा रहा है। उसका विस्तार दिल्ली, मध्य प्रदेश से लेकर शीला दीक्षित और कमलनाथ तक है कि देखो यूपी-बिहार वाले तुम्हारे संसाधन ले रहे हैं।
औद्योगीकरण को मुनाफा चाहिए। कल-कारखाने वहीं जाएंगे जहां सस्ती जमीन, सस्ता बिजली-पानी और सस्ते मजदूर मिलेंगे। हर जगह खेती-किसानी और रोजगार के अन्य प्राकृतिक संसाधन नहीं रहे और कल-कारखाने सीमित जगहों पर पहुंचे। तेल कारखाने से लेकर कोयला खदान या चीनी के कारखाने खास जगहों पर ही खुलते हैं। लेकिन रोजगार के स्थानीय साधनों से विस्थापन का चरित्र वैश्विक है।
पूंजी और रोजगार के इस अंतर्विरोध पर जब तक नीतिगत स्तर पर बात नहीं होगी तब तक कोई ठाकरे, दीक्षित या नाथ बेरोजगार भारतीयों को इसी तरह बांटते रहेंगे। ये राजनेता तो अच्छे मौसम वैज्ञानिक होते हैं और अपने पदों के रोजगार को देखते हुए आज राजग तो कल यूपीए का हिस्सा बन जाते हैं। लेकिन अपना रोजगार मिलते ही इनके सामने सबसे बड़ा सच यह है कि जनता के लिए रोजगार लाने में नाकाम होते जा रहे हैं। इसलिए राजनीति के रोजगार में आते ही पहले से ही विभिन्न पहचानों में बंटे आम लोगों को स्थानीय और बाहरी में भी बांट देते हैं।
कमलनाथ की भाषा पिछले तीन दशकों का उत्तर चुनाव सत्य है, जो हर चुनाव जीतने वाला बोलता है। चुनावों में उतरे किसी भी राजनीतिक दल के पास नए रोजगार सृजन का रोडमैप नहीं है, क्योंकि ये संसाधनों के बंटवारे के बुनियादी सवाल से टकराना ही नहीं चाहते हैं। वैश्विक पूंजी के भरोसे जो चुनिंदा रोजगार खड़े हुए हैं उसमें देशी लोगों के पास कई तरह के अवरोध खड़े किए जा चुके हैं। लेकिन अमेरिका से लेकर फ्रांस और बिहार से लेकर मध्य प्रदेश तक, जो राजनेता इधर-उधर की बातें कर रहे हैं उन्हें जनता को जल्द ही बताना होगा कि उनका कारवां लुटा क्यों? यह यूपी-बिहार का जुमला ज्यादा दिन काम नहीं आएगा।