पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम पुलवामा हमले के बाद देर से तो बोले मगर दुरुस्त नहीं बोले। यह इंटरनेट युग है। क्रिकेट के मैदान से निकलकर फौज की भाषा बोल रहे प्रधानमंत्री की दैहिक से लेकर शाब्दिक भाषा किसी देश के अगुआ की नहीं लग रही थी। आपके पड़ोसी देश में 40 जवान शहीद हुए हैं, पूरा देश शोक में डूबा है लेकिन आपने संदेश की शुरुआत में श्रद्धांजलि और संवेदना के दो शब्द भी नहीं बोले। आप कोई टीवी प्रस्तोता नहीं, क्रिकेट खिलाड़ी नहीं, फौजी अफसर नहीं, बल्कि पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम हैं। आपके मरे हुए शब्दों से अहसास हुआ कि एक जिंदा कौम को कैसे धीरे-धीरे मौत की ओर धकेला जाता है।

इमरान खान ने पूछा कि पाकिस्तान को इससे क्या फायदा है? यही बात तो तरक्कीपसंद और अमन की आशा वाले लोग सालों से समझा रहे हैं कि आतंकवाद की खेती का पाकिस्तान को कोई फायदा नहीं है। पुलवामा हमले के बाद दुनिया की नजरों में बहुत ज्यादा गिर गया है पाकिस्तान। पाक के पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने ही इमरान खान की सरकार से सवाल पूछा है कि क्या आज आपको दुनिया में एक भी अंतरराष्ट्रीय दोस्त दिखाई देता है? उन्होंने पाक मीडिया के सामने बयान दिया कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया है।

इसके साथ ही उन्होंने इमरान सरकार को जमीनी सच्चाई से रू-ब-रू कराते हुए कहा कि कुछ मुसलिम देशों के सहयोग को अंतरराष्ट्रीय सहयोग नहीं माना जा सकता है। जरदारी ने ईरान में हुए घटनाक्रम पर जोर दिया जहां आतंकी हमले में 27 सैनिक मारे गए हैं। इस आतंकवादी हमले के बाद ईरान की सरकार ने भी पाकिस्तान को चेतावनी दी है। जरदारी पाक हुकूमत को इशारों में समझा चुके हैं कि आपके पास नकाबपोश आतंकवादी हैं और ईरान के पास बड़ी संख्या में प्रशिक्षित सेना।

अफगानिस्तान भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपने पड़ोसी और आतंकवादियों की महफूज पनाहगाह पाकिस्तान के खिलाफ गुहार लगा चुका है। अफगानिस्तान सरकार ने आरोप लगाया है कि उसे शामिल किए बिना पाक हुकूमत तालिबान के लोगों से बातचीत कर रही है। उसका कहना है कि जब संयुक्त राष्ट्र तालिबान पर प्रतिबंध लगा चुका है तो इस तरह की बातचीत करना अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन है। आतंकवादियों के जख्म से कराह रहा अफगानिस्तान, पाकिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ जल्द कड़े कदम उठाने की अपील कर रहा है।

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान से संवाद की हिमायत करते हुए कहा था कि हम दोस्त बदल सकते हैं अपना पड़ोसी नहीं। भारत से लेकर ईरान और अफगानिस्तान तक इस पड़ोसी से परेशान हैं। कभी सभ्यता और संस्कृति के एक मुकाम पर पहुंच चुका अफगानिस्तान आज आतंकवाद के कारण मौत के खंडहर में बदल चुका है। ईरान के रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स के कमांडर ब्रिगेडियर जनरल मोहम्मद पाकपौर ने साफ-साफ कहा कि पाकिस्तानी सरहद से लगते ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में 13 फरवरी को फिदायीन हमला करने वाले का नाम हफीज मोहम्मद अली था और वह पाकिस्तानी था। साजिश के तहत यह हमला 11 फरवरी को होना था, जिस दिन ईरान की इस्लामी क्रांति की 40वीं वर्षगांठ मनाई गई थी। सुरक्षा बलों की मुस्तैदी के कारण उस दिन आतंकवादियों के मंसूबे पूरे नहीं हुए। ईरानी सरकार का कहना है कि जैश-अल-अदल (इंसाफ की फौज) नाम के जेहादी संगठन ने हमले की जिम्मेदारी ली है, जो पाकिस्तान में है।

आतंकवाद को लेकर पड़ोसी आगाह कर रहे हैं और जनाब इमरान खान पुलवामा हमले के बाद कह रहे हैं कि यह ‘नया पाकिस्तान’ है। खान साहब को शायद इस बात का अहसास नहीं कि ‘नया’ शब्द बोलना और लिखना जितना आसान है उसे रचना उतना ही मुश्किल। और यह कैसा ‘नया पाकिस्तान’ है जिसकी जमीन से जैश-ए-मोहम्मद का आतंकवादी सीना ठोककर भारत  में हुए हर बड़े आतंकवादी हमले की जिम्मेदारी लेता है। अगर आपके शासन में जैश-ए-मोहम्मद फल-फूल रहा है तो क्या यह ‘नया पाकिस्तान’ है।

इमरान खान को बेनजीर भुट्टो की याद है? सलमान तासीर की याद है? सेना के स्कूल में मारे गए बच्चों की याद है? ये तो कुछ ही नाम हैं। 2001 से 2011 के दौरान पाकिस्तान में ही आतंकवाद के कारण 35 हजार से ज्यादा लोग मारे गए हैं। पाकिस्तान में मध्य वर्ग से ऊपर उठे हुए लोग अपनी मजबूत आर्थिक हैसियत का सबसे पहला इस्तेमाल अपने बच्चों को विदेश में पढ़ाने के लिए करते हैं। भारत के खिलाफ जहर उगल रहा पाक मीडिया और वहां की फिल्में बता रही हैं कि पाकिस्तान किस बर्बर युग में जी रहा है।

इस नए पाकिस्तान में मसूद अजहर के लिए तो मखमली कालीन बिछी है और मलाला यूसुफजई के लिए जानलेवा हमला। स्वात घाटी में स्कूली डायरी में लिखे सपने पढ़ने का इमरान साहब को वक्त नहीं मिला होगा। पूरी दुनिया उसके सपनों को पढ़ रही थी लेकिन तालिबानी आतंकवादियों को स्कूल जाती और सपने देखती बच्ची मंजूर नहीं थी। तालीमशुदा होने के ‘जुर्म’ में आतंकवादियों ने उसके सिर को गोलियों का निशाना बनाया। यह उस बच्ची की जिजीविषा थी कि दहशतगर्दों के हौसले पस्त कर पूरी दुनिया में शांति की मिसाल बन गई।

मलाला आज विदेश में रहती है। वह तो अपनी घाटी में अपने मां-बाप के साथ ही सपने देखना चाहती थी। लेकिन आतंकवादियों ने उसके सपनों की जमीन छीन ली। वह जिंदा सबूत है इस बात का, कि आतंकवाद से आपको कोई फायदा नहीं। मलाला जिंदा है, लेकिन अनगिनत ऐसे बच्चे हैं जो आज भी स्कूल की राह नहीं देख पा रहे, या स्कूल की राह पर ही कत्ल कर दिए जा रहे हैं।

पाकिस्तानी हुकूमत को बुरहान वानी जैसे आतंकवादियों की फिक्र छोड़ स्कूल जाते बच्चों की फिक्र करनी चाहिए। खान साहब के पूर्ववर्ती नवाज शरीफ को बुरहान वानी को संयुक्त राष्ट्र में ‘इंतिफादा’ (फिलीस्तीन के संदर्भ में शहीद) घोषित करने की फिक्र ज्यादा थी। नवाज शरीफ अगर बुरहान वानी का नाम छोड़ मलाला यूसुफजई को याद करते तो पता चलता कि संयुक्त राष्ट्र में बुरहान वानी को नहीं पाकिस्तान की उस नन्ही तालिम की फौजी को जगह मिली है। इमरान साहब भी गूगल करेंगे तो उन्हें मलाला दिवस के बारे में पता चलेगा। संयुक्त राष्ट्र  ने इस बहादुर लड़की के जन्मदिन 12 जुलाई को मलाला दिवस घोषित किया है। पाकिस्तानी आतंकवादियों से जिंदा बची वो बच्ची आज युवा हो चुकी है और पूरी दुनिया में आतंकवाद के खिलाफ बुलंद आवाज बनी हुई है।

आज अमन की आशा वाले पाकिस्तानी युवा इंटरनेट पर कह रहे, ‘मैं एक पाकिस्तानी हूं और पुलवामा पर हुए आतंकी हमले की निंदा करता/करती हूं।’ इन युवाओं को पता है कि पूरी दुनिया में पाकिस्तान के लिए कहीं भी ‘नया’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। फौज के इशारों पर चल रही कठपुतली सरकार की कमजोरी का खमियाजा पूरी दुनिया में बसे पाकिस्तानी भुगत रहे हैं। जब मलाला शांति का संदेश लेकर आई तो उसे पूरी दुनिया का प्यार मिला। आज भी मलाला का सपना पाकिस्तान लौट कर वहां के लिए काम करना है। इमरान खान के कथित नए पाकिस्तान ने मलाला की जगह मसूद अजहर को चुना है तो पूरी दुनिया पाकिस्तान के लिए नफरत ही चुनेगी, उसे यह समझ लेना चाहिए।