देश में तेजी से बढ़ रहे तमाम तरह के प्रदूषणों में से प्रकार ध्वनि प्रदूषण (Noise pollution) भी है जो लोगों पर्यावरण को प्रदूषित करने के साथ साथ लोगों के दिमागी सुकून और सुनने की क्षमताओं पर घातक असर डालता है। इस प्रदूषण की गंभीरता को देखते हुए मुंबई पुलिस ने एक सकारात्मक पहल की है जिसमें 14 जून के दिन को मुंबई पुलिस ‘नो हॉन्किंग डे’ ‘no honking day’ के रूप में मना रही है।

No Honking Day क्या है मुहिम

‘नो हॉन्किंग डे’ ‘no honking day के रूप में शुरू की गई इस मुहिम में वाहन चलाते समय हॉर्न का प्रयोग सीमित करने के लिए सड़क पर चलने वालों को प्रोत्साहित करने का काम कर रही है। एक नोटिस में, मुंबई पुलिस ने कहा, “ट्रैफिक कंट्रोल यूनिट, मुंबई, मुंबई शहर में सभी चालकों और सवारों से आग्रह करती है कि सिवाय एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड और आपातकालीन ड्यूटी पर अन्य वाहनों के, 14 जून को अपने वाहनों के हॉर्न न बजाएं। और अन्य दिनों में ऐसा करने का प्रयास करें”।

Mumbai Police No Hawking Day

17 साल पहले लगा था मुंबई में हॉर्न पर बैन

रिपोर्ट्स के मुताबिक, मुंबई में आखिरी बार हॉर्न के इस्तेमाल पर पाबंदी लगभग 17 साल पहले यानी 2006 में लगाई गई थी। इस नियम को लागू करने पर मुंबई पुलिस द्वारा कहा गया था कि बिना बात के हॉर्न बजाने से न सिर्फ पर्यावरण को हानि होती है बल्कि यह मनुष्यों की सेहत के लिए भी खतरनाक होता है। हम मुंबई के वाहन चालकों से नो हॉकिंग पहल के तहत सकारात्मक प्रतिक्रिया देने की अपील करते हैं।

वाहनों के हॉर्न की जांच भी करेगी मुंबई पुलिस

मुंबई ट्रैफिक पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार, ट्रैफिक पुलिस वाहन चालकों को हॉर्न की जांच करवाने की सलाह भी दे रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके व्हीकल में लगा हॉर्न सेंट्रल मोटर व्हीकल रूल्स 1989 के नियम 119 के मानकों को पूरा करता है या नहीं। अगर वाहन की जांच में हॉर्न इस नियम को तोड़ता है या इसे पूरा नहीं करता है तो मोटर व्हीकल एक्ट और पर्यावरण संरक्षण कानून 1986 के तहत उचित कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी।

मुंबई की सड़कों पर दौड़ते हैं 43 लाख से ज्यादा व्हीकल

सड़कों पर गाड़ियों के बढ़ते बोझ के मामले में देश की आर्थिक राजधानी मुंबई भी पीछे नहीं है। यहां चलने वाले व्हीकल की बात करें तो एक रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई की सड़कों पर 43 लाख से ज्यादा व्हीकल चलते हैं जिसमें कार, बाइक, ऑटो, टैंपो, बस और ट्रक भी शामिल हैं।

पर्यावरण के साथ इंसानों के लिए भी खतरनाक है ध्वनि प्रदूषण

मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों और अन्य स्थानों में ध्वनि प्रदूषण एक बढ़ती हुई चिंता है और वाहनों के हॉर्न इसका प्रमुख कारण हैं। ऐसे कई अध्ययन हुए हैं जो दिखाते हैं कि ध्वनि प्रदूषण वरिष्ठ नागरिकों को अल्जाइमर रोग, हियरिंग लॉस और यहां तक की मानसिक स्थिति को भी प्रभावित करता है।

ध्वनि प्रदूषण कम करने के लिए बनाए गए साइलेंट जोन

बढ़ते ध्वनि प्रदूषण के मुद्दे से निपटने के लिए, पुलिस ने अस्पतालों, आवासीय क्षेत्रों, शैक्षणिक संस्थानों आदि के पास साइलेंट जोन सहित कई नियम बनाए हैं, जहां हॉर्न की आवाज 40 डेसिबल से कम होनी चाहिए।