मलबा विकास का हो चाहे भ्रष्टाचार का, उसका निस्तारण सभ्यतागत चुनौती है।
मलबा विकास का हो चाहे भ्रष्टाचार का, उसका निस्तारण सभ्यतागत चुनौती है।
हम एक रौ में चलते रहते हैं, मानो नींद में हों। एक ठोकर लगती है और सहसा नींद खुल जाती…
विलुप्त होती भाषाएं- समय-समय पर हुए अनेक सर्वेक्षणों से जाहिर है कि भारतीय भाषाओं की बोलियां, यहां तक कि कई…
अब तो इस सोशल मीडिया के चक्कर में पत्नी भी कह देती है कि बैठे ही हो तो मेरे मैसेज…
विश्व पुस्तक मेला शुरू हो चुका है। एक बार फिर पुस्तक , प्रकाशक, पाठक के आपसी संबंधों को लेकर चर्चा…
रचना में बोलियां क्या भूमिका निभाती हैं? क्या इससे साहित्य के पाठक को भाव ग्रहण करने में कोई कठिनाई आती…
कैसे लोग हैं/ निरा पत्थर ही मान लिया है/ मुझे
भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर का नाटक ‘बिदेसिया’ भी ऐसी ही रचना है। अब तक बिदेसिया की…
महामना मदन मोहन मालवीय जानते थे कि असहमति को स्थान दिए बगैर कोई विश्वविद्यालय मौलिक नहीं हो सकता।
प्रगतिशील लेखक संगठन इतने पस्त हिम्मत, टूटे-बिखरे और दिग्भ्रमित शायद कभी नहीं थे। आगाज के दिनों में प्रगतिशील आंदोलन की…
आजकल भ्रष्टाचार की चर्चा राजनीति के एजेंडे पर छाया रहता है। सभी प्रख्यात भ्रष्टाचारियों की सूची बनाइए और देखिए किसी…