अपने स्वरूप में नौटंकी शास्त्रीय विधानों की रक्षा करते हुए अत्याधुनिक रंग तकनीकों के प्रयोग और भावपूर्ण गायन के साथ जिस भव्यता, गरिमा और समयानुकूल विषयों के साथ आ खड़ी हुई है, वह भविष्य की नौटंकी को स्वरूप तो देती ही है, पश्चिम केंद्रित भारतीय, विशेषकर हिंदी रंगमंच के अपनी परंपरा में लौट आने की मुनादी भी करती है।
इससे मुख्यधारा का भारतीय रंगमंच निस्संदेह समृद्ध हुआ है और होते रहने की संभावना प्रकट होती है। कहना न होगा कि यह पहल दूरगामी महत्त्व की तो है ही, अपनी परंपरा के प्रासंगिक तत्वों का पुनराविष्कार भी है, तो उनका पुनर्वास भी।