सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’

किसी भी विषय के बारे में अपने विचार व्यक्त करने के लिए केवल ज्यादा बोलते रहना काफी नहीं होता है। इसके लिए विषय की गहराई का ज्ञान होना नितांत आवश्यक होता है। विषय के बारे में गहराई से अध्ययन करने का अर्थ है सामान्य से अधिक विस्तार से अध्ययन करना। जैसे अधिकांश लोगों ने सेब को पकने के बाद पेड़ से गिरते हुए देखा था। लेकिन एक व्यक्ति जिसने यह जिज्ञासा की कि यह उड़ने के बजाय पृथ्वी पर ही क्यों गिरता है, तब उसने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के बारे में खोज निकाला।

आज हम विस्तार से गुरुत्वाकर्षण के मौजूदा ज्ञान का अध्ययन कर रहे हैं। जो बाहर से ही सतह छूकर लौट आते हैं, उनके हाथ मोती नहीं लगा करते। वे बस उतना ही करते हैं, जितने से काम चल जाए। पढ़ते भी उतना ही हैं कि बस पास भर हो जाएं। अगली कक्षा में चढ़ जाएं और बस इतने अंक आ जाएं कि कहीं चार पैसे कमाने का जुगाड़ हो जाए। इन्हें ज्ञान से कोई लेना-देना नहीं होता। बस किसी तरह काम भर चल जाए। इसलिए वे गहरी समझ भी नहीं रखते, बस थोड़ा-थोड़ा सबमें से ले लेते हैं।

जिंदगी तो उनकी भी पार लग ही जाती है जो अधकचरे और अधभरे होते हैं। बस इतना है कि वे छलकते खूब है, बजते भी हैं, पर गंभीरता को अपने पास फटकने नहीं देते। क्यों आखिर इतना दिमाग मारें तो चुप्प ही खोल में सिमटे पड़े रहते हैं। बस जब भूख प्यास लगी, बाहर मुंह निकाला, खाया-पीया और फिर अपने कुएं में जाकर बंद हो गए। उनका आसमान कुआं ही है। वे कूपमंडूक ही बने रहना चाहते हैं।

उनके लक्ष्य बहुत छोटे होते हैं, बस वे पूरे हो जाएं, फिर उन्हें कोई चिंता नहीं। उनके जाने सब चूल्हे में जाए, उन्हें कोई परवाह नहीं। वे अपनी दुनिया में अगन-मगन हैं। ‘अधजल गगरी छलकत जाए’, ‘थोथा चना बाजे घना’ जैसी कहावतें खासतौर पर उनके लिए ही बनी होती हैं। ऐसे लोग करते तो कुछ नहीं, पर लाभ और श्रेय पूरा का पूरा लेने को आतुर रहते हैं।

विषय की गहराई तभी संभव है, जब आप उसमें गहरे उतरते हैं। जिन्हें कुछ प्राप्त करने की धुन सवार होती है, वे कठिनाइयों की परवाह कब करते हैं, वे दिनरात नहीं देखते। बस जी-तोड़ मेहनत करते हैं और लक्ष्य को पाकर ही रहते हैं। वे लक्ष्य निश्चित करते हैं और उसे पाने के लिए प्रयत्नशील भी होते हैं।

मुश्किल तो उनकी है जिन्होंने अपने जीवन के लिए कोई स्वप्न नहीं बुने और बुने भी तो शेखचिल्ली से जिन्हें व्यावहारिकता की कसौटी पर नहीं परखा, अपनी शक्ति नहीं तौली, अपने साधन नहीं देखे, उतनी मेहनत नहीं कर पाए जितनी अपेक्षित थी। उन्होंने असफलता का ठीकरा भी दूसरों के सिर फोड़ दिया। वे खुद डूबे तो डूबे, पर अपने साथ अन्य लोगों को भी ले डूबे।

कबीर ने ऐसे ही नहीं लिख दिया होगा कि ‘जिन खोजा तिन पाइया गहरे पानी पैठि, हों बूडी डूबन डरी रही किनारे पैठि।’ जो चाह रखते हैं, उन्हें अपने आप पर गजब का विश्वास होता है। वे कोई दांव खाली नहीं जाने देते। हर कदम सुनियोजित तरीके से उठाते हैं, शत-प्रतिशत देते हैं, बाद के लिए कुछ नहीं छोड़ते। सब आज और अभी कर डालते हैं। कल भला किसने देखा है।

उन्हें कबीर कभी भूलते ही नहीं… ‘काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में परलै होएगी, बहुरि करोगे कब।’ जो ठान लिया सो ठान लिया, फिर चाहे जितने मर्जी आंधी-तूफान आते रहें, वे निरंतर चलते रहते हैं। कोई बाधा उन्हें नहीं रोक पाती। अकेले ही चलते रहते हैं और देर सबेर मंजिल तक पहुंच ही जाते हैं। मंजिल को तो वे पड़ाव भर मानते हैं।

कुछ देर विश्राम करते हैं, शक्ति संजोते और बटोरते हैं और फिर यात्रा शुरू कर देते हैं। आते रहें आंधी-तूफान, कड़कती रहें बिजलियां, बरसते रहे ओले, होती रहे झमाझम बरसात, वे नहीं रुकते, चलते और बढ़ते ही जाते हैं आगे और आगे। साथी मिलें तो ठीक, नहीं तो एकला चलो रे। ‘चरैवेति चरैवेति’ उनके जीवन का मूलमंत्र होता है।

इसलिए हमें गहरे जाकर खोज लाना है उन मोतियों को, जिनसे जीवन की सार्थकता सिद्ध होती है। गहराई में जाने से डरने से की आवश्यकता नहीं है। सारा तत्त्व वहीं छिपा है। किनारे-किनारे डर कर बैठे रहे तो कुछ नहीं हो सकता है। संकल्पशील बनने, बात को समझने की जरूरत है। जो अभी नहीं चेतेंगे, तब तक अवसर निकल जाएगा। फिर पछताने से कुछ नहीं होने वाला। किनारे बैठ कर सिर्फ स्वप्न देखने का कोई मतलब नहीं है। सोचने और सपने देखने का तभी कोई मतलब बनता है जब उसे जमीन पर उतारने का साहस भी किया जाए।