लखनऊ घराने की परिवार परंपरा की नई पौध हैं, कथक नृत्यांगना शिंजिनी कुलकर्णी। वह कथक सम्राट पंडित बिरजू महाराज की नवीन पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। शिंजिनी कुलकर्णी संभावना से भरपूर हैं। उन्होंने महाराज जी से कथक की बारीकियों को सीखा है। पिछले दिनों त्रिवेणी कला संगम के सभागार में उन्होंने कथक नृत्य पेश किया। प्राचीन कला केंद्र, चंडीगढ़ की ओर से आयोजित ‘लीजेंड्स आॅफ टुमॉरो’ समारोह में शिंजिनी ने कथक नृत्य पेश किया। उनके अलावा, सितार वादक सौमित्र ठाकुर ने सितार वादन पेश किया।
कथक नृत्यांगना शिंजिनी कुलकर्णी उभरती हुई कलाकार हैं। उन्होंने अपनी प्रस्तुति का आगाज शिव स्तुति ‘ओमकार महेश्वराय’ से किया। इसमें शिव के रूप को उन्होंने दर्शाया। उन्होंने विलंबित लय में तीन तान में शुद्ध नृत्य पेश किया। इसकी शुरुआत थाट से की। इसमें नायिका के खड़े होने के अंदाज को दिखाया। उपज में पैर का काम पेश किया। वहीं, उन्होंने परण आमद ‘ता-धा-तत-तत-थुुंगा’ में चक्कर, उत्प्लावन और पलटों का प्रयोग किया। उठान में ‘दिग-दिग-थेई-ता’ के बोल पर पैर और अंगों का संचालन पेश किया। इसके बाद, लड़ी ‘तक-धिंन-धिंन-धिंन-ना’ के बोलों पर दाहिने पंजे का विशेष काम प्रस्तुत किया। विलंबित लय में उनका धैर्य कायम था।
अगले अंश में नृत्यांगना शिंजिनी ने मध्य लय तीन ताल में नृत्य के अंश पेश किए। इसमें तबला वादक पंडित अनिंद्यो चटर्जी की तिहाई को पेश किया, जो साढ़े तीन मात्रा से शुरू हुई। उन्होंने तेज आमद का अंदाज अपनी पेशकश में शामिल किया। फरमाईशी तिहाई में पैर, पंजे और एड़ी का खास प्रयोग प्रदर्शित किया। पंडित बिरजू महाराज रचित गिनती की तिहाई और परण ‘धिताम-तक-थुंग’ पर पैर का पेश किया। द्रुत लय में उन्होंने चक्रदार तिहाई और आलिंगन की गत पेश की। पंडित जयकिशन महाराज रचित चक्रदार तिहाई में शिंजिनी ने चौदह चक्करों का प्रयोग किया। निकास की गत में अपने घराने के प्रसिद्ध नर्तक पंडित लच्छू महाराज के अंदाज को निभाने की कोशिश की।
पंडित बिंदादीन महाराज की ठुमरी पर शिंजिनी ने नायिका के भावों को चित्रित किया। इस ठुमरी के बोल थे-‘कैसे के जाऊं श्याम रोके डगरिया’। शिंजिनी ने नायक कृष्ण और राधा के भावों को दिखाने की कोशिश की। उनके साथ संगत करने वाले कलाकारों में शामिल थे-तबले पर अणुव्रत चटर्जी और जाकिर हुसैन वारसी, गायक जोहेब हसन और सारंगी पर गुलाम मोहम्मद।
दरअसल, कथक नृत्यांगना पंडित बिरजू महाराज के परिवार परंपरा की प्रतिनिधि होने के चलते कला जगत को उनसे बहुत उम्मीदें हैं। अगर, वो गंभीरता से कथक के प्रति समर्पित होंगी तो बेहतर होगा। यह सही है कि वह देश के अलग-अलग शहरों में आयोजित होने वाले समारोह में नृत्य पेश करती हैं। पर, अभी मंच प्रस्तुति के साथ-साथ उन्हें रियाज पर ध्यान देना होगा। क्योंकि, उनका यह सौभाग्य है कि उन्हें कला विरासत में मिली है। इसलिए उनसे अपेक्षाएं बहुत ज्यादा हैं। दर्शकों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए उन्हें और मेहनत करनी चाहिए, ताकि उनकी कला में निखार आए। वैसे भी परफॉर्मिंग आर्ट्स तो करने की विद्या है।

