दफ्तर की गाड़ी घर के गेट के पास खड़ी हो गई है। गिल्लू ने दरवाजा खोलते हुए कहा, आ गए साब जी। खाना लगाऊं। नीलाभ ने कहा, नहीं। रात ज्यादा हो गई है। अब क्या खाऊंगा। मैं फ्रेश होता हूं, तब तक हल्दी वाला दूध गरम कर दो। दिन भर की थकान दूर हो जाएंगी। अभी मैं जागूंगा। यह कर कर नीलाभ वॉशरूम में चला गया। गिल्लू किचन में तवे पर बादाम भूनने लगा। दूसरी तरफ चुटकी भर हल्दी डाल कर दूध को चूल्हे पर चढ़ा दिया। दूध के साथ सूखे मेवे खा लेंगे साब जी तो उनकी कमजोरी दूर हो जाएगी। उसने सोचा।

रात के एक बज रहे हैं। गिल्लू एक कटोरी में मेवे और ग्लास भर दूध रख कर सोने जा चुका है। नीलाभ टेबल के पास कुर्सी खींच कर वह बैठ गया और मेवे कुतरने लगा। उसने कमरे की खिड़की खोल दी है। दिन भर आसमान पर टंगे रहे बादल अब बरसने लगे हैं। चांद काले-सफेद बादलों के पीछे जा छुपा है। नीलाभ ने शीशे के बाहर झांका तो बारिश की बूंदों ने उसके गालों को चूम लिया। कई दिनों से तपती सड़कों-गलियों के आसपास की मिट्टी से सोंधी महक उठने लगी है। सूरज के प्रेम में तपती धरती आज रात उसके प्रेम में सराबोर हो रही है।

… यह सूरज का प्यार ही है जो सावन आते ही बादलों के जरिए उसे अपने प्रेम की सौगात भेजता है। वह खुद आग में धधकता है मगर हर सुबह अपनी रश्मियों से धरती के श्यामल आंचल को सहलाता है। उस पर अपना सिर रख कर सोता है। समंदर का जल सोख कर वह बादलों की पोटली बना कर रख लेता है। और जब-तब इससे अपनी प्यारी वसुंधरा को छेड़ता है। रूठने पर उसे मनाता है। उसे जीवन रस से भर देता है। फिर धरती के गर्र्भ से अंकुर फूटता है। जिससे हम मनुष्यों की क्षुधा मिटती है। यह धरती और सूरज के अनन्य प्रेम का ही प्रतिफल है कि दुनिया प्रतिदिन और हर पल चलती जाती है। … मैं भी क्या सोचने लगा हूं, नीलाभ ने खुद से कहा।

बारिश तेज होने के साथ मिट्टी की सोंधी महक छा गई है। उसे अनामिका की याद आने लगी है। वह भीनी खुशबू बन कर महकने लगी है। उसका गुलाबी चेहरा सामने है। वह अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से उसके दिल में झांक रही है। वह अकसर इसी तरह चली आती है, जब वह कुछ लिखने बैठता है। एक बारिश नीलाभ के मन में भी होने लगी है। बूंद-बंद कविता बहने लगी है- तुम नहीं हो/फिर भी यहीं हो/मेरी शून्यता में कई शून्य लेकर। … अनामिका हमेशा कहती है कि एक दिन हम सब शून्य में बदल जाएंगे। मगर हम क्या देकर जाएंगे। धरती और सूरज को देखिए। कितना निराला प्यार है उनके बीच। इतनी दूरी होने पर भी उनके मिलन की सोंधी महक आप महसूस कर सकते हैं। संसार के हर युगल में सुगंध और सुमन की तरह प्रेम हो। वे मर कर भी कुछ दे जाए। जैसे? एक दिन नीलाभ ने पूछा तो अनामिका ने कहा था- देहदान।

वह कह रही थी, मैंने कई मरीजों को मरते हुए देखा है। उनके अंतिम संस्कार के बाद कुछ भी तो नहीं बचता। सिवाय राख के। सिवाय शून्य के। अगर मृत आदमी-औरत के कुछ खास अंगों को दान करने की इजाजत उनके परिवार के लोग दे दें, तो जरूरतमंद लोगों की मदद की जा सकती है। इसलिए मैंने देहदान की शपथ ली है। फार्म भी भर दिया है। अगर आप भी ऐसा करेंगे तो मानवता पर बड़ा उपकार होगा। मुझे दिलीखुशी होगी। मेरे दिल में आपके लिए और सम्मान बढ़ जाएगा।

गरम दूध पीने के बाद दिन-भर के थके नीलाभ को नींद आने लगी है। वह बिस्तर पर लेट गया है। तभी अनामिका चली आई है उसकी कल्पना में हमेशा की तरह। वह उसके माथे को सहला रही है। उफ्फ, उसकी ये शोखियां और ऊपर से ये सरगोशियां। वह उसके कानों में रस घोल रही है … कितना थक जाते हैं आप। चिंता मत करिए। मैं जल्द आ जाऊंगी। यहां भी एक घर बना लूंगी। आप वहीं रहिएगा। लिखिएगा-पढ़िएगा। नौकरी ने आपकी जान ले ली है। मैं आपको काम करने ही नहीं दूंगी। हम दोनों एक दूसरे से खूब प्यार करेंगे। कुछ रचनात्मक काम करेंगे। मरने के बाद हम अपनी-अपनी देह दान कर जाएंगे। अच्छा ये बाद की बात है। … नीलाभ को उसने अपनी छाती से लगा लिया है। अनामिका ने उसकी सारी थकान उतार दी है। उसकी पलकों का चुंबन लेते हुए उसने कहा, सुनिए आपको नींद आए, इससे पहले एक कहानी सुनाती हूं। सुनिएगा? ऊंघते नीलाभ ने कहा- हां।

अच्छा तो सुनिए। अनामिका कहानी सुना रही है-
बहुत पुरानी बात है। ब्राजील में एक अरबपति ने घोषणा की कि वह अपनी दस लाख डॉलर की बेंटले कार मिट्टी में दफना देगा। इसकी वजह उसने बताई कि यह उसकी मौत के बाद उपयोगी साबित होगी। यह सुन कर लोगों ने कहा कि यह आदमी अपनी लाखों की कार बर्बाद कर रहा है। फिर वह खास दिन भी आया जिसे देखने के लिए लोग जमा हुए। कार को दफनाने के लिए एक बड़ा सा गड्ढा खोदा गया। महंगी कार वहां लाई गई। लोग अरबपति की जम कर निंदा कर रहे थे। कई लोग तो उसकी मूर्खता पर हंस रहे थे। वे कह रहे थे कि तुम अपनी कार बर्बाद कर रहे हो। यह तुम्हारे मरने पर कोई काम नहीं आएगी। इसे किसी और को क्यों नहीं दे देते।

… सबकी बातें सुनने के बाद अरबपति ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, मैं इतना मूर्ख नहीं कि अपनी कार दफना दूं। मैं तो आप लोगों को संदेश देना चाहता था। कार तो दस लाख डॉलर की है। मगर लोग तो मरने के बाद अपने शरीर का बहुमूल्य अंग जैसे दिल, आंखें, किडनी, लिवर और स्किन दफन होने देते हैं। जबकि ये लाखों-करोड़ों मरीज के काम आ सकते हैं। क्यों नहीं आप इसे दान कर देते हैं। जाने कितने जरूरतमंद मरीज अंग प्रत्यारोपण का इंतजार कर रहे हैं। कृपया उनकी मदद कीजिए। मैंने अपनी महंगी कार दफनाने का नाटक इसलिए रचा ताकि आप देहदान के महत्व को समझ सकें…।

कहानी पूरी कर अनामिका शून्य में खो गई है। नीलाभ सपने में गुम हो चुका है। … वह चल पड़ा है देहदान समिति के दफ्तर। वहां वह अपनी देह का दान करने के लिए फार्म भर रहा है। समिति के अध्यक्ष से उसने कहा कि अगर मैं मर जाऊं तो मेरे सभी उपयोग लायक अंगों को निकाल कर जरूरतमंद को दे दिया जाए और कंकाल मेडिकल कालेज के विद्यार्थियों के लिए रख दिया जाए। लीजिए मैंने फार्म के सभी कॉलम भर दिए हैं।

… समिति के दफ्तर के बाहर कोई आटो या टैक्सी दिखाई नहीं पड़ रही। गोपाल का फोन लग नहीं रहा। नीलाभ पैदल ही चल पड़ा है वहां से। वह चलता जा रहा है सड़क के किनारे-किनारे। तभी तेज रफ्तार में कार चला रहे चालक ने एक स्कूटर सवार को बचाने के लिए उसे तेज ठोकर मार दी है। नीलाभ दूर जा गिरा है। उसका सिर फट गया है। सड़क पर उसकी देह पड़ी है। उसे चोट का अहसास नहीं हो रहा। घटनास्थल पर अच्छी-खासी भीड़ जमा हो गई है। लोग कह रहे हैं… बेचारा मर गया। इस बीच किसी ने पुलिस को कॉल कर दी है।

भीड़ में गुम नीलाभ अपनी ही लाश देख रहा है। कुछ ही देर में एंबलेंस आ गई है। बेजान देह उठा कर उस पर रखी जा रही है। नीलाभ चिल्लाया, अरे भाई मैं जिंदा हूं। कहां ले जा रहे हो मुझे। अभी मुझे दफ्तर जाना है। मगर कोई उसकी आवाज नहीं सुन रहा। … एंबुलेंस चल पड़ी है। एक कर्मचारी ने उसकी जेब को खंगाला तो पहचान पत्र देख कर कहा, अरे ये तो टीवी पत्रकार नीलाभ हैं। दूसरी जेब से देहदान समिति के फार्म की कॉपी मिली है। इसे पढ़ कर चिकित्सा कर्मी कह रहे हैं, अरे इन्होंने तो देह दान किया है।
एंबुलेंस अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की तरफ मुड़ गई है। …लाश विशेष सर्जरी रूम में ले जाई जा रही है। नीलाभ ने देखा कि वहां कई डॉक्टर खड़े हैं। एक डॉक्टर उसका कॉर्निया निकालने की तैयारी कर रहा है। कुछ पलों में उसके सामने ही उसकी आंखों से यह निकाल लिया गया। इसके बाद दूसरे डॉक्टर उसकी देह से अन्य महत्त्वपूर्ण अंग निकालने की तैयारी करने लगे हैं।

यह प्रक्रिया देर तक चलती रही। नीलाभ मूकदर्शक की तरह देख रहा है। कभी-कभी वह चीख पड़ता, एनेस्थेसिया तो लगाइए डॉक्टर। नहीं तो दर्द होगा मुझे। आप तो सीधे पेट और सीना चीर रहे हैं। मगर डॉक्टर उसकी बात नहीं सुन रहे। उसकी देह से दिल, गुर्दे और लिवर निकाले जा रहे हैं। नीलाभ रुंआसा हो गया। कोई क्यों नहीं सुन रहा। उसे अपने शरीर की दुर्गति देखी नहीं जा रही। डॉक्टर कह रहे हैं कि इसके स्किन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। किसी जरूरतमंद के काम आ जाएगा। नीलाभ सर्जरी यूनिट से बाहर आकर बैठ गया है। कितने घंटे बीत गए मालूम नहीं। वह अपने साथियों को याद कर रहा है। वहां इंतजार हो रहा होगा मेरा।

चीरे गए हिस्से को सिल कर उसका शव पोस्टमॉर्टम रूम में रखवा दिया गया है। यहां कई लाशें रखी गई हैं। चौकीदार दरवाजा बंद कर चला गया है। यहां ठंडा सन्नाटा पसरा है। नीलाभ कांप उठा है। यह देह मेरे किसी काम की नहीं रही। वह तुरंत वहां से निकल गया। नीलाभ ने पाया कि उसकी दौड़ने-भागने की गति उसके सोच से कई गुना अधिक बढ़ गई है। उसने दफ्तर को याद किया तो, उसने खुद को पलक झपकते ही अपने केबिन के बाहर पाया। उसके सामने से उसके सहयोगी जा रहे हैं। मगर से देख कर कोई नमस्ते तक नहीं कर रहा। उसने प्रोड्यूसर अजय को आवाज लगाई तो वह भी उसे अनसुनी कर निकल गया। तभी न्यूजरूम में लगे कई स्क्रीन के नीचे अपने मरने की खबर चलते हुए देखी- सड़क हादसे में पत्रकार नीलाभ की मौत।

साथी उदास हैं, मगर उसकी ओर कोई क्यों नहीं देखरहा। मैं तो सबको देख रहा हूं। तो क्या मैं सचमुच मर गया हूं। तभी तो मेरी देह पोस्टमॉर्टम रूम में पड़ी है। उसके केबिन के बाहर बैठा उसका सहायक रो रहा है। उसे सांत्वना देने के लिए जैसे ही उसके कंधे पर हाथ रखा, वह हवा में नीचे हो गया। सचमुच मैं शून्य हो गया हूं। नीलाभ ने सोचा। वह हैरान है। क्या करूं। कहां जाऊं। न कोई देखता है, न सुनता है। उसे अनामिका का खयाल आया। वह जरूर उसे सुनेगी। उसे बताना होगा कि मैं मर गया हूं। नहीं तो वह इंतजार ही करती रहेगी। कॉल करती रहेगी। … यह सोचते ही वह कुछ पलों में सैकड़ों किलोमीटर दूर उसके घर के सामने पहुंच गया। यहां सुबह हो रही है। एक छोर से उगते हुए सूरज ने समंदर के जल को लाल कर दिया है। कितना शानदार फ्लैट है अनामिका का।

… वह नहाने जा रही है। नीलाभ ने पीछे से उसे अपनी बांहों में भर लिया है। उसके बदन की भीनी खुशबू में समाते हुए हुए उसने कहा, अनामिका देखो, मैं आ गया तुम्हारे पास। मगर सुनो। मेरा एक्सीडेंट हो गया है। मेरी देह पोस्टमॉर्टम रूम में पड़ी है। फिर भी तुमसे मिलने आया हूं। जानती हो न, मेरी आत्मा हमेशा तुम्हारे पास रहती है। तुम मुझे हर पल महसूस करती हो। तो क्या सुन रही हो मुझे अनामिका। मगर उसने कोई जवाब नहीं दिया। वह उसके कंधे पर झूलता रहा। उसके दाएं और बाएं दोनों ओर की गालों को चूमा। मगर उसने कोई ध्यान नहीं दिया। अनामिका सफेद टॉवेल उठा कर बाथरूम की ओर चल पड़ी है। वहां बाथ टब में पानी गुनगुना हो चुका है। उसने छूकर देखा, हां अब अच्छा है। उसकी बड़ी-बड़ी कजरारी आंखें चमक उठी हैं। उसके घुंघराले बालों को सहलाते हुए नीलाभ ने फिर कहा, तुम सुन क्यों नहीं रही।
… सचमुच वह बिल्कुल नहीं सुन रही।

अनामिका ने अपनी नीली शर्ट और स्कर्ट उतार दी है। ऐसा लग रहा है, जैसे तराशी हुई कोई संगमरमर की प्रतिमा सामने खड़ी हो। शॉवर में उसे यूं नहाते हुए वह पहली बार देख रहा है। नीलाभ उसकी देह के आकर्षण में डूब गया है। क्या मौत के बाद भी कोई आकर्षण बचा रहता है? क्या अंत समय में भी भोग की लालसा बची रहती है? … अनामिका उसे देख नहीं रही, पर उसके गुलाबी होठों पर उसके नाम की ही रट है- नीलाभ… नीलाभ…काश तुम यहां होते। तुम्हें अभी बांहों में भर लेती। नीलाभ ने उसे गले लगा लिया है। उसके मन में समंदर की आसमानी लहरें उठने लगी हैं। पानी में भीगती अनामिका की देह दहक उठी है। अब वह बाथ टब की ओर जा रही है। सहसा वह गुनगुना उठी है- जादू है नशा है, मदहोशियां/ तुझको भूला के अब जाऊं कहां…देखती हैं जिस तरह से, तेरी नजरें मुझे, मैं खुद को छुपाऊं कहां…। कोई और वक्त होता तो ये मदहोशी का आलम होता। नीलाभ ने अनामिका के भीगे बालों में अंगुलियां फंसाते हुए कहा, मैं यहीं हूं। एकदम तुम्हारे पास। मेरी नजरें तुम्हें देख रही हैं। तुम मुझे देख क्यों नहीं रही।

बार- बार पुकारने पर भी उसने नहीं सुना तो नीलाभ निराश हो गया। जब अनामिका नहीं देखरही तो यहां क्या रहना? अब लौटना चाहिए। मगर इससे पहले अपने शहर का हाल देख लूं। कुछ ही पलों में उसने खुद को दिल्ली की सड़कों पर पाया। महीनों बाद राजधानी में लगाई गर्इं बंदिशों में ढील दे दी गई है। बड़ी संख्या में हरी-नीली और नारंगी बसें चल रही हैं। आॅटो और मोटरसाइकिल सवारों की भीड़ पहले कहीं ज्यादा है। कारों की संख्या भी बढ़ गई है। मगर कारों से उसे डर लगने लगा है। वह उसी जगह पहुंच गया जहां उसे एक कार ने टक्कर मारी थी। सड़क पर बिखरा उसका खून सूख चुका है। कुछ देर उसे देखता रहा। वह खुद को छूता है। लगता है वह हवा बन गया है। दूसरों को हंसाने वाला नीलाभ फूट-फूट कर रो पड़ा है।

वह सामने ही मेट्रो स्टेशन के गेट पास सीढ़ियों पर बैठ गया है। इस समय उसे गोपाल की याद आ रही है जो उसे सुरक्षित दफ्तर ले जाता था। फिर देर रात घर पहुंचा देता था। लास्ट कोच की भी याद आ रही है। जिसमें वह सुरक्षित यात्रा करता था। यह सोचते ही उसने हमेशा की तरह खुद को लास्ट कोच में पाया। दिल्ली मेट्रो में फिर से भीड़ बढ़ गई है। कुछ लोग खड़े होकर यात्रा कर रहे हैं। मना करने पर भी दिल्ली वाले मानते कहां हैं। ऐसे लोगों को अगले स्टेशन पर उतारा जा रहा है। मगर नीलाभ को किसी ने कुछ नहीं कहा। वह अनविजिबल है। कोई उसे देख नहीं सकता। उसने सोचा, मगर मुझे उतर जाना चाहिए। वह कोच से उतर गया है। उसने देखा, प्लेटफार्म पर खिली धूप में उसे अपनी छाया तक नहीं दिखी रही। …तो अब मेरी छाया भी नहीं बची। सिर्फ आत्मा हूं। मैं सचमुच मर गया हूं। नीलाभ फिर रोने लगा है।

… जोर-जोर से रोने की आवाज सुन कर गिल्लू की नींद खुल गई है। किसी अनहोनी से आशंकित वह नीलाभ के कमरे की ओर भागा। देखा साब जी नींद में सुबक रहे हैं। आंखों से झर-झर आंसू बह रहे हैं। गिल्लू ने उसके चेहरे पर पानी के छींटे मारे। इससे नीलाभ की नींद खुल गई है। उसने सबसे पहले अपनी देह को टटोला। सिर में चोट नहीं लगी है। डाक्टरों ने उसका पेट नहीं चीरा है। जब यह तसल्ली हो गई तो उसने गिल्लू से कहा, तू मेरी आवाज सुन रहा है न? तू मुझे देख रहा है न। उसने कहा, हां साब जी। मगर आप ऐसा क्यों कह रहे हैं। आप रो क्यों रहे थे। नीलाभ ने कहा, मैं तो सपने में मर गया था गिल्लू। इधर-उधर भटक रहा था। अच्छा हुआ तूने जगा दिया। नहीं तो कुछ देर बाद नींद में ही मर जाता।

… तभी साइड टेबल पर रखे मोबाइल की घंटी बज उठी है। यह अनामिका की कॉल है- आप कल रात सपने में आए थे मेरे पास। मैंने देखा आप मेरे फ्लैट की डोरबेल बजा रहे हैं। और मैंने सुना ही नहीं। मैं क्लीनिक से देर से आई थी और नहाने चली गई। बाद में सो गई। मैंने बहुत बुरा सपना देखा। बहुत बुरा… अनामिका मैम से बातें करते देख गिल्लू चाय बनाने किचन में चला गया है। इधर नीलाभ ने कहा, हां यार मैंने भी बुरा सपना देखा। फिर उसे विस्तार से बताने लगा। …और क्या हुआ… और क्या देखा? बच्चों की तरह अनामिका पूछे जा रही है। इस पर नीलाभ ने मुस्कुराते हुए कहा, बुरा सपना ये कि तुम बाथ टब में नहा रही हो और मुझे देख तक नहीं रही और मैं सब देख रहा हूं। इस पर अमानिका ने कहा, ओ शिट। आपने उस हाल में देख लिया। गंदे कहीं के…अब सपने में मत आइएगा। यह कहते हुए उसने फोन काट दिया है, जाइए आपसे अभी बात नहीं करूंगी। आप बड़े वो हैं।
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