मुकेश पोपली
यह तो मुहल्ले वालों के साथ सरासर अन्याय है।’ वर्मा जी कुछ ज्यादा ही जोश में थे।‘हां, हमें चल कर इस काम को रोकना ही होगा। आखिर सबकी सेहत का सवाल है।’ चोपड़ा साहब ने भी वर्मा जी की हां में हां मिलाते हुए कहा।लगभग सभी लोग प्रकाश चक्की पर जाने को तैयार हो गए। ‘माथुर साहब, आप नहीं चलेंगे?’ एक सज्जन ने माथुर साहब को बैठा देखकर उनसे पूछ ही लिया।
‘नहीं, मैं नहीं चल रहा। वैसे आप लोगों को एक सलाह देना चाहूंगा कि आप लोग भी वहां मत जाओ।’‘अरे वाह! क्यों न जाएं? मुहल्ले वालों की जान आफत में आने वाली है और आप कह रहे हैं कि उनसे पूछा भी न जाए।’ वर्मा जी बेहद गुस्से में आ गए और माथुर साहब को उल्टा-सीधा सुनाने लगे।‘लगता है, आपको हम मुहल्लेवाले अच्छे नहीं लगते। आपकी तो दवाइयों की दुकान है, आपको तो यही अच्छा लगेगा कि ज्यादा से ज्यादा लोग बीमार हो जाएं, ताकि आपको व्यापार में और अधिक फायदा हो।’
‘अरे नहीं वर्मा जी, आप सब को जानकारी होनी चाहिए कि मोबाइल टावर की कंपनी के नुमाइंदे सबसे पहले मेरे पास ही आए थे।’ माथुर साहब ने उनकी शंका निवारण के लिए अपनी बात कहने की भूमिका बांधी तो सबकी आश्चर्यमिश्रित आंखें उन पर आ टिकीं।माथुर साहब ने आगे कहना शुरु किया, ‘मोबाइल टावर कंपनी के तीन इंजीनियरों की टीम ने मेरे मकान की छत का मुआयना किया।
उनकी आवश्यकता के अनुसार वह ऊपर की मंजिल चाहते थे, लेकिन आप सबको मालूम ही है कि हमारी छत पर पहले से ही सौर ऊर्जा की पट्टियां लगी हुई हैं। इसलिए मेरा घर तो उनके मापदंड के अनुसार मोबाइल टावर के लिए उपयुक्त नहीं पाया गया। फिर कंपनी वालों ने आसपास के मकानों के बारे में मुझसे पूछताछ की तब मैं उन्हें प्रकाश चक्की पर ले गया। वहां पर उनकी बात बन गई।’
‘आप उन्हें वहां क्यों ले गए? आपने टावर से पैदा होने वाली समस्याओं के बारे में नहीं सोचा?आपने हम सबके स्वास्थ्य के बारे में नहीं सोचा? आपको उन्हें साफ मना कर देना चाहिए था। आप तो इतने पढे-लिखे भी हैं और फिर आपका बेटा तो वैसे भी मेडिकल कालेज में पढ़ता है।’ यह चोपड़ा साहब की आवाज थी।
‘मना किया था। मैंने भी बिलकुल आप वाली बात ही उन्हें कही थी। उन्होंने मेरी बात को बड़े ध्यान से सुना था। उनका यह कहना था कि हम आपकी बात से इत्तिफाक रखते हैं, लेकिन मोबाइल टावर की अपेक्षा हमारे मोबाइल ज्यादा विकिरण फैलाते हैं। एअर कंडीशनर भी गरम हवा छोड़ते हैं। डीजल की गाड़ियां भी बेहद प्रदूषण फैलाती हैं। हम जब उन्हें नहीं छोड़ रहे तो मोबाइल वैसे भी आज की सबसे बड़ी आवश्यकता बन गई है।’
‘वो तो ठीक है, मोबाइल और दूसरे संसाधनों के भरमार-सी हो गई है। आपको उन्हें साफ-साफ मना कर देना चाहिए था।’ एक बार फिर चोपड़ा साहब ने अपनी आवाज को बुलंद किया।
‘लेकिन, उनका यह भी कहना था कि इसी शहर में हमारा यह सातवां टावर होगा। अभी तक लगाए गए सभी टावर तमाम नियमों को पूरा कर रहे हैं। फिर उनके यह कहने पर कि इस संचार युग में इन चीजों के साथ ही हमें जीने की आदत डालनी पड़ेगी और हमारा टावर सभी कायदे-कानूनों की जांच पूरी करने के बाद ही लगाया जाता है, मैं उन्हें प्रकाश जी के घर ले गया।’ माथुर साहब कहकर चुप हो गए।
‘उन्होंने आपको अपनी बातों में लपेट लिया और आप फंस गए।’ वर्मा जी ने माथुर साहब का मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘वैसे भी एक माथुर साहब नहीं जाएंगे तो कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ेगा। अभी तो टावर का सिर्फ सामान आया है, लगा तो नहीं हैं। हम सब मिलकर विरोध करेंगे तो यह टावर लगाने का काम रुक सकता है। चलो दोस्तो।’ वर्मा जी ने एक बार फिर लोगों को जोश दिलाया तो सब ‘चलो, चलो’ कहते हुए वहां से चलने लगे।
‘वैसे तो मैं भी आपके साथ चल सकता हूं। मेरा आप लोगों से कोई विरोध नहीं है, लेकिन मेरी एक बात और सुन लीजिए, फिर भी आप कहेंगे तो मैं सबसे आगे बढ़कर प्रकाश जी को मना करुंगा।’‘वो भी बता दीजिए, जरा हम भी सुनें कि आखिर ऐसी क्या बात है?’ चोपड़ा साहब ने कहा।‘तो सुनिए, यह तो आप सब जानते ही हैं कि कोरोना की वजह से पूरी दुनिया में कितने लोगों ने अपनी जान गंवा दी।
प्रकाश जी के बड़े बेटे रितेश और उनकी बहू मौसमी ने कोरोना की दूसरी लहर में ऐसे बहुत से लोगों की मदद की, जो बेहद गरीब थे और जिनकी कमाई का कोई साधन नहीं था। उन्होंने अपनी चक्की पर पड़े अनाज को पीस कर, उनकी रोटियां बनाकर और कभी सब्जी तो कभी अचार के साथ गरीबों के बीच बांटी।’‘यह तो आप सही कह रहे हैं माथुर साहब। हमने भी उन्हें कड़ी मेहनत करते देखा है।’ कुछ लोगों ने हामी भरी।
‘उनके कहने पर मैंने भी कोरोना पीड़ितों के लिए आक्सीजन की व्यवस्था कराई और अनेक दवाइयां भी जरूरतमंदों को उपलब्ध कराई। वो दोनों पति-पत्नी दिन में बीमारों की सेवा करते और रात को अपनी चक्की में अनाज पीसते, ताकि अगले दिन उन गरीबों को खाना मिल सके। दिन-रात इन बीमारों की सेवा करने के लिए उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी से छुट्टी भी ली और अपने प्रोविडेंट फंड के बदले उधार भी लिया।’ इतना कहने के बाद माथुर साहब एक मिनट के लिए चुप हो गए।
जब देखा कि सभी लोग उनकी बात ध्यान से सुन रहे हैं, तब उन्होंने गहरी सांस ली और फिर अपनी बात आगे बढ़ाई- ‘बदकिस्मती यह रही कि पहले रितेश और बाद में उसकी पत्नी मौसमी भी कोरोना की चपेट में आ गए और यह दुनिया छोड़ गए। यह भी हम सब जानते हैं कि रितेश के दो छोटे-छोटे बच्चे भी हैं। प्रकाश जी का दूसरा बेटा भी शादीशुदा है, लेकिन उसे भी उसकी कंपनी ने घाटा होने के कारण निकाल दिया है।
अब सब की जिम्मेदारी प्रकाश जी पर आ पड़ी है और आमद के लिए सिर्फ वो चक्की। हम सब वहीं से अनाज पिसवाते हैं और यह भी अच्छी तरह जानते हैं कि प्रकाश जी धंधे में बिल्कुल बेईमानी नहीं करते। ऐसे में मुझे लगा कि यदि इस मोबाइल टावर के बदले प्रकाश जी की आमदनी बढ़ती है, तो भला मुझे क्यों दिक्कत करनी चाहिए। अब मैंने अपनी पूरी बात आपके सामने रख दी है, बाकी आप लोग तय कर लीजिए। आप जब कहेंगे, मैं प्रकाश जी के यहां चलने को तैयार हूं।’ माथुर साहब ने अपनी बात समाप्त की।
कुछ देर के लिए वहां शांति-सी छा गई और फिर धीरे-धीरे खुसर-पुसर शुरू होने लगी। वर्मा जी और चोपड़ा जी ने आपस में बात की।‘हम सब प्रकाश जी के यहां जाएंगे तो जरूर और माथुर साहब आपको भी चलना होगा।’ कुछ देर बाद वर्मा जी ने माथुर साहब से हाथ जोड़कर कहा।‘हां माथुर साहब, लेकिन इससे पहले एक काम और किया जाएगा।’
चोपड़ा जी अपनी कुर्सी छोड़ कर खड़े हो गए और कहने लगे, ‘हम सब एक अच्छी-सी धनराशि इकट्ठा करेंगे और प्रकाश चक्की के लिए अनाज की पचास बोरियां बाजार से खरीदकर देंगे, ताकि उनकी नियमित कमाई जारी रहे।’चोपड़ा जी ने यह बात कही तो सबने देखा कि माथुर साहब की आंखें गीली हो रही थीं, लेकिन उनके चेहरे पर मुस्कान भी झलकने लगी थी। वर्मा जी ने माथुर साहब की पीठ हल्के से थपथपा दी थी। अब सब का गुस्सा शांत हो चुका था।