उनका असली नाम हरिहर जेठालाल जरीवाला था, जिन्हें प्यार और सम्मान से लोग हरिभाई कहते थे। उनका जन्म मुंबई में एक मध्यवर्गीय गुजराती परिवार में हुआ था। वे बचपन से ही फिल्मों में बतौर अभिनेता काम करने का सपना देखा करते थे। इसी सपने को पूरा करने के लिए वे अपने जीवन के शुरुआती दौर में ही रंगमंच से जुड़ गए और बाद में फिल्मालय के एक्टिंग स्कूल में दाखिला लिया। इसी दौरान 1960 में फिल्म ‘हम हिंदुस्तानी’ में उन्हें एक छोटी-सी भूमिका निभाने का मौका मिला।
वर्ष 1962 में राजश्री प्रोडक्शन की ‘आरती’ के लिए उन्होंने स्क्रीन टेस्ट दिया, जिसमें वे पास नहीं हो सके। इसके बाद उन्हें कई ‘बी-ग्रेड’ फिल्में मिलीं। इन महत्त्वहीन फिल्मों के बावजूद अपने अभिनय के जरिए उन्होंने सबका ध्यान आकर्षित किया। सर्वप्रथम मुख्य अभिनेता के रूप में उन्हें 1965 में प्रदर्शित फिल्म ‘निशान’ में काम करने का मौका मिला। 1960 से 1968 तक संजीव कुमार फिल्म उद्योग में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। उन्हें जो भी भूमिका मिली वह उसे स्वीकार करते चले गए। उस दौरान उन्होंने ‘स्मगलर’, ‘पति-पत्नी’, ‘हुस्न और इश्क’, ‘बादल’, ‘नौनिहाल’ और ‘गुनहगार’ जैसी कई फिल्मों में अभिनय किया, लेकिन कोई भी फिल्म बाक्स आफिस पर सफल नहीं हुई।
वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म ‘शिकार’ में वे पुलिस अधिकारी की भूमिका में दिखाई दिए। इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिए उन्हें सहायक अभिनेता का ‘फिल्म फेयर अवार्ड’ भी मिला। वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म ‘संघर्ष’ में उन्होंने दिलीप कुमार के साथ काम किया। इसके बाद ‘आशीर्वाद’, ‘राजा और रंक’, ‘सत्यकाम’ और ‘अनोखी रात’ जैसी फिल्मों में मिली कामयाबी के जरिए संजीव कुमार ने दर्शकों के बीच अपने अभिनय की धाक जमाई। 1970 में प्रदर्शित फिल्म ‘खिलौना’ की जबर्दस्त कामयाबी के बाद संजीव कुमार ने बतौर अभिनेता अपनी अलग पहचान बना ली।
वर्ष 1970 में ही प्रदर्शित फिल्म ‘दस्तक’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। 1972 में प्रदर्शित फिल्म ‘कोशिश’ में वे गूंगे की भूमिका में नजर आए। इस फिल्म में उनके लाजवाब अभिनय के लिए उन्हें दूसरी बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया। फिल्म ‘कोशिश’ में संजीव कुमार अपने लड़के की शादी एक गूंगी लड़की से करना चाहते हैं और उनका लड़का इस शादी के लिए राजी नहीं होता है। तब वे अपनी मृत पत्नी की दीवार पर लटकी फोटो को उतार लेते हैं। उनकी आंखों में विषाद की गहरी छाया और चेहरे पर क्रोध होता है।
भारतीय सिनेमा जगत में संजीव कुमार को एक ऐसे बहुआयामी कलाकार के तौर पर जाना जाता है, जिन्होंने नायक, सहनायक, खलनायक और चरित्र कलाकार की भूमिकाओं से दर्शकों को अपना दीवाना बनाया। संजीव कुमार के अभिनय में एक विशेषता थी कि वे किसी भी तरह की भूमिका के लिए सदा उपयुक्त रहते थे। बाद में संजीव कुमार ने गुलजार के निर्देशन मे ‘आंधी’, ‘मौसम’, ‘नमकीन’ और ‘अंगूर’ जैसी कई फिल्मों में अपने अभिनय का जौहर दिखाया। 1982 में प्रदर्शित फिल्म ‘अंगूर’ में संजीव कुमार ने दोहरी भूमिका निभाई।
संजीव कुमार को दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1975 में प्रदर्शित फिल्म ‘आंधी’ के लिए सबसे पहले उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। इसके बाद 1976 में भी फिल्म ‘अर्जुन पंडित’ में बेमिसाल अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से नवाजा गया।