किताबों के पन्ने पलटते हुए अंगुलियों पर जमी स्याही की हल्की परछाइयां, नई किताब की स्याही और कागज की मिली-जुली खुशबू या पुरानी किताबों की पीली पड़ चुकी पत्तियों से आती मद्धम-सी गंध..! कभी ये सब हमारे अध्ययन की दुनिया का हिस्सा हुआ करते थे। किताब केवल ज्ञान का स्रोत नहीं थीं, बल्कि एक भावनात्मक अनुभव भी थीं। उस समय पढ़ाई का अर्थ था किताब के पन्नों में डूब जाना, धीरे-धीरे अक्षरों को आत्मसात करना और अपने ही बनाए संसार में खो जाना। समय बदला। आज वही किताबें हमारी जेब में, मोबाइल स्क्रीन पर या टैबलेट के चमकते डिजिटल पन्नों में समा गई हैं। हम ‘स्वाइप’ करके पन्ने पलटते हैं और ‘सर्च’ बटन दबाकर तुरंत अपनी जरूरत की जानकारी पा लेते हैं। यह सुविधाजनक है, तेज है और आधुनिक समय की मांग भी। पर सवाल यह है कि क्या डिजिटल पन्ने किताबों की उस खुशबू और स्पर्श को पूरी तरह बदल पाए हैं?
कागज का मोह
कागज पर छपी किताबें सिर्फ पढ़ने का साधन नहीं, बल्कि जीवन का हिस्सा होती हैं। किसी उपन्यास को पढ़ते समय चाय का कप हाथ में हो और किताब गोद में, यह दृश्य न जाने कितने लोगों के जीवन की यादों में दर्ज है। किताबें हमें धैर्य सिखाती हैं। पन्ने पलटने की धीमी गति हमें शब्दों के साथ जीने का अवसर देती है। किताबें स्मृतियों का खजाना भी होती हैं। पुरानी किताब के पन्नों पर बने निशान, किनारों पर लिखी गई टिप्पणियां या बीच में रखी सूखी पत्तियां, वर्षों बाद भी हमें अतीत की यात्रा करवा देती हैं। यही वह भावनात्मक जुड़ाव है जो डिजिटल पन्नों में अक्सर नदारद होता है। जैसा कि प्रसिद्ध अमेरिकी लेखिका जेन आस्टिन ने कहा था- ‘किताबों से बिना प्रेम किए जीना वैसा ही है, जैसा आंखें होते हुए भी प्रकाश से वंचित रहना।’ इसके अलावा, शोध बताते हैं कि कागज पर पढ़ने से हमारी एकाग्रता और स्मरण शक्ति अधिक गहरी होती है। जब हम स्क्रीन पर पढ़ते हैं तो लगातार आने वाले ‘नोटिफिकेशन’ और चमकती रोशनी हमें विचलित कर देती है, जबकि किताब का पन्ना हमें शांति और सन्नाटा देता है।
डिजिटल पन्नों का आकर्षण
यह भी सच है कि आज की तेज रफ्तार जिंदगी में डिजिटल पन्नों ने पढ़ाई को नया आयाम दिया है। अब किसी दुर्लभ किताब को पाने के लिए महीनों इंतजार नहीं करना पड़ता। बस कुछ सेकंड में ई-बुक डाउनलोड हो जाती है। छात्र-छात्राएं हजारों पन्नों का अध्ययन एक छोटे-से ‘डिवाइस’ या यंत्र में लेकर घूम सकते हैं। डिजिटल पन्ने पर्यावरण के अनुकूल भी हैं, क्योंकि कागज बनाने के लिए पेड़ों की कटाई कम हो सकती है। साथ ही, डिजिटल मंच पर खोज करना बेहद आसान है। किसी विशेष विषय या शब्द को ढूंढ़ना महज कुछ पल का काम है, जबकि यही प्रक्रिया मोटी किताबों में समय ले सकती थी। डिजिटल युग ने अध्ययन को लोकतांत्रिक भी बनाया है। जहां पहले अच्छी किताबें केवल बड़े शहरों या महंगे पुस्तकालयों में मिलती थीं, वहीं अब इंटरनेट पर उपलब्ध मुफ्त ई-किताबें और आनलाइन लेख दुनिया के किसी भी कोने में बैठे पाठक तक पहुंच जाते हैं।
पीढ़ियों का फर्क
आज की युवा पीढ़ी मोबाइल और टैबलेट पर पढ़ने की अधिक आदी हो गई है। उनके लिए किताब का वजन उठाना बोझिल लगता है, जबकि स्क्रीन पर पढ़ना सरल और आकर्षक। दूसरी ओर, पुरानी पीढ़ी अब भी मानती है कि किताब की आत्मा उसकी छपाई और खुशबू में बसी होती है। यही कारण है कि घरों की अलमारियों में रखे उपन्यास, धार्मिक ग्रंथ या कक्षा की पाठ्यपुस्तकें अब भी अपनी जगह बनाए हुए हैं। यह पीढ़ीगत अंतर केवल तकनीक का सवाल नहीं है, बल्कि अनुभव का भी है। किताब के साथ बिताया गया समय एक भावनात्मक रिश्ता बनाता है, जबकि डिजिटल पन्ने हमें सुविधा और त्वरित ज्ञान तो देते हैं, लेकिन वह अपनापन नहीं, जो किताबें देती हैं। प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने एक बार कहा था- ‘जिसके पास किताबें और कल्पनाशक्ति है, वह कभी अकेला नहीं हो सकता।’ यह कथन आज भी उतना ही सच है। चाहे कागज की किताब हो या डिजिटल स्वरूप, अध्ययन हमें अकेलेपन से निकालकर नए संसार में ले जाता है।
संतुलन की राह
सवाल यह नहीं होना चाहिए कि किताबें बेहतर हैं या डिजिटल पन्ने। असली सवाल यह है कि हम दोनों का संतुलित उपयोग कैसे करें। गहरी समझ, साहित्यिक आनंद और आत्मिक शांति के लिए कागज की किताबें हमेशा प्रासंगिक रहेंगी। वहीं त्वरित जानकारी, शोध या आधुनिक संसाधनों के लिए डिजिटल पन्ने हमारी जरूरत पूरी करेंगे। एक विद्यार्थी अगर परीक्षा की तैयारी कर रहा है तो डिजिटल सामग्री से उसे नवीनतम जानकारी मिल सकती है, लेकिन वही विद्यार्थी अगर किसी कवि की रचनाओं में डूबना चाहता है तो कागज की किताब उसे अधिक आत्मसंतोष देगी।
इसलिए हम देख रहे हैं कि अध्ययन की आदतें अब बदल रही हैं और यह स्वाभाविक भी है। मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि किताबें केवल कागज और स्याही का मेल नहीं होतीं, वे भावनाओं, अनुभवों और स्मृतियों की संरक्षक भी होती हैं। डिजिटल पन्ने सुविधाओं की दुनिया हैं, लेकिन किताबों की खुशबू आत्मा की दुनिया है। इसलिए जरूरत है कि हम दोनों का संतुलित उपयोग करें। बच्चों को स्क्रीन पर उपलब्ध ज्ञान से परिचित कराएं, पर साथ ही उन्हें किताबों के पन्ने पलटने का आनंद भी दें, क्योंकि आखिर पढ़ाई का उद्देश्य केवल जानकारी हासिल करना नहीं, बल्कि जीवन के गहरे अनुभवों को आत्मसात करना है। कागज की खुशबू और डिजिटल पन्नों की चमक- दोनों ही हमारी अध्ययन संस्कृति का हिस्सा हैं। बस हमें यह याद रखना होगा कि तेजी से भागती इस दुनिया में भी किताबों की धीमी खुशबू हमारी आत्मा को शांति और गहराई देती रहेगी।
