सी आर राव के नाम से मशहूर कल्यामपुड़ी राधाकृष्ण राव सांख्यिकी क्षेत्र के ऐसे सितारे हैं, जिनका पूरा जीवन सांख्यिकी के विकास में गुजरा। उन्होंने अनुमान का सिद्धांत दिया, जिसने उद्यमी और व्यापारी कार्यप्रणाली को आसान बनाया। पूरी तरह भारतीयता में रचे-बसे और विलक्षण शिक्षाविद् के तौर पर पहचाने जाने वाले राव को शोध एवं सिद्धांतों के लिए पूरा विश्व उन्हें सलाम करता है।
दस भाई-बहनों में आठवें स्थान पर थे
सीआर राव का जन्म 10 सितंबर 1920 को कर्नाटक के बेल्लारी जिले के हडगली में हुआ था। वे दस भाई-बहनों में आठवें स्थान पर थे। उनका परिवार आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम आ गया था, जहां से उन्होंने श्रीमती एवीएन कालेज से गणित में स्नातकोत्तर की उपाधि ली।
हमेशा हर परीक्षा में अव्वल आने वाले राव नौकरी की तलाश में कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) चले गए थे। वहां उन्होंने पढ़ाई नहीं छोड़ी और कलकत्ता विश्वविद्यालय में सांख्यिकी में स्वर्ण-पदक के साथ स्नातकोत्तर किया। यहीं से उन्हें भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आइएसआइ) में जाने का मौका मिला, जिससे उनका जीवन पूरी तरह बदल गया। आइएसआइ में उन्होंने बतौर तकनीकी प्रशिक्षु काम शुरू किया।
यहां से 1946 में एक शोध के सिलसिले में वे कैंब्रिज यूनिवर्सिटी गए और पीएचडी की डिग्री हासिल की। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के किंग्स कालेज से उन्होंने 1965 में डीएससी में डिग्री भी ली। अपनी पहली परियोजना के तौर पर राव ने इंडियन स्टेटिस्टीकल इंस्टीट्यूट एंड द एंथ्रोपोलोजिकल म्यूजियम में काम किया।
सांख्यिकी को मानवीय विज्ञान के तौर पर प्रस्तुत करने के लिए उन्होंने विश्व भर में ख्याति हासिल की। उनके ‘थ्योरी आफ एस्टिमेशन’ (अनुमान का सिद्धांत) के लिए उन्हें दुनिया के शीर्ष दस वैज्ञानिकों में जगह दी जाती है। आइएसआइ के स्तंभ कहे जाने वाले राव ने देश के विकास में अहम योगदान दिया है।
वे भारत में राष्ट्रीय सांख्यिकीय प्रणालियों, सांख्यिकीय शिक्षा और अनुसंधान के विकास के लिए कई सरकारी समितियों के सदस्य रहे। उन्होंने सांख्यिकी समिति के अध्यक्ष (1962-69), जनसंख्या नियंत्रण के लिए जनसांख्यिकी और संचार के अध्यक्ष (1968-69), गणित समिति के अध्यक्ष, परमाणु ऊर्जा आयोग, एईसी (1969-78), विज्ञान और प्रौद्योगिकी समिति (1969-71) के सदस्य के रूप में कार्य किया।
राव ने 1978 में आइएसआइ से विदा लिया और यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग से जुड़ गए, लेकिन उनका मन वहां नहीं लगा और वापस भारत आ गए। यहां फिर आइएसआइ से जुड़े और अंतत: निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए। उनकी ऊर्जा उन्हें खाली बैठने नहीं दे सकती थी। सेवानिवृत्ति के बाद पेनसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी चले गए और प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाने लगे।
भारत के इस महान सांख्यिकीविद ने सटीक अनुमान लगाने के लिए फार्मूला इजाद किया, जिसे क्रेमर-राव फार्मूला कहा जाता है। किसी ज्ञात अनुमान से सर्वश्रेष्ठ अनुमान कैसे लगाएं, यह महत्त्वपूर्ण सिद्धांत उन्होंने प्रस्तुत किया, जिसे राव-ब्लैकवेल सिद्धांत के नाम से जाना गया। लगभग 14 किताबें लिखने के साथ 400 से अधिक जर्नल में उन्होंने शोध-लेख लिखे। उन्हें 19 देशों के विश्वविद्यालयों से 38 मानद डाक्टरेट की उपाधि मिली। राव भारत के साथ-साथ ब्रिटेन, अमेरिका एवं इटली जैसे देशों की लगभग आठ राष्ट्रीय अकादमियों के सदस्य रहे।
सांख्यिकीय क्षेत्र में उनके योगदान के लिए विश्व स्तर पर उन्हें दर्जनों पुरस्कार और सम्मान मिले हैं। भारत सरकार ने 2001 में उन्हें पद्म विभूषण और 1969 में पद्म भूषण दिया। 2010 में उन्हें विज्ञान क्षेत्र का सबसे बड़ा पुरस्कार भारत विज्ञान पुरस्कार दिया गया। 2013 में विश्व स्तर पर सांख्यिकीय खोज और इस क्षेत्र में अहम योगदान के लिए म्योड्रैग लोवरिक एवं शाआमो सआलोसकी के साथ नोबेल पुरस्कार के लिए भी नामांकित किया गया।
12 जून 2002 को तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने उन्हें विज्ञान के क्षेत्र में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया। अपना अधिकतर पेशेवर जीवन भारत में गुजारने वाले राव सेवानिवृत्ति के बाद अमेरिका चले गए और वहीं 102 साल की उम्र में बीते माह 22 अगस्त 2023 को उनका निधन हो गया। उन्होंने छात्रों और शोधकर्ताओं की कई पीढ़ियों को प्रेरित किया है।