कमलेश भारतीय
बूढ़े पीपल के पत्तों की खड़ खड़, पिघलती कोलतार वाली सड़क पर यातायात, दीवारों के पीछे नन्हे विद्यार्थियों के पाठ रटने के स्वर! मिनी बाजार, जिसमें तीन एक छाबड़ियों वाले, एक आइसक्रीम वाला और एक चाय बेचने वाला शामिल है- सबके सब गर्मियों की उनींदेपन में डूबे हुए। दो चितकबरे कुत्ते भी इस बाजार के कोने में बैठे जम्हाइयां ले रहे हैं! कभी-कभार पूंछ भी घुमा लेते हैं।
ठंडक पैदा करने के लिए पंजों से जमीन खुरचने लगते हैं। फिर सब बेकार समझ कर पूर्ववत लेट जाते हैं। इंतजार करने लगते हैं कि कब चपरासी घंटी बजाए, कब बच्चे बाहर अपने खाने के डिब्बे लेकर आएं और उन्हें भी उनके खाने से बचे हुए या दया भाव से फेंके गए रोटी के एक-दो कौर नसीब हो सकें!
छाबड़ियों वाले रोज की तरह एक-दूसरे के पहले पहुंचने की कोशिश में लगभग साथ-साथ ही आ पहुंचे हैं। उन्होंने एक-दूसरे को दुआ-सलाम करते हुए छाबड़ियां उतार ली हैं। पसीना पोंछते-पोंछते सब हाल-चाल जानने में लग गए हैं। आइसक्रीम वाला कभी पहले राम राम नहीं बोलता। इसके कारण स्पष्ट हैं। उसके पास छाबड़ी नहीं, बल्कि रेहड़ी है। उसे बोझा उतरवाने के लिए किसी की मदद नहीं चाहिए। दूसरे, सभी छाबड़ी वाले उसके उधार के नीचे दबे रहते हैं। गरज उन्हें है, राम राम वे बोलें! खुशामद करें।
इसीलिए आइसक्रीम वाला मगन होकर कप, चम्मच धोने में लगा रहता है। तब तक छाबड़ी वाले ‘ही ही’ करते पास आ जाते हैं। उन्हें आइसक्रीम वाला बड़े पैसे वाले आदमी की तरह सिर झुका कर दोनों हाथ जोड़ कर नमस्कार करता है। फिर हालचाल के जवाब में महंगाई का रोना रोने लगते हैं सबके सब! अगले चुनाव में वोट किसी भी उम्मीदवार को न डालने की कसम खाते हैं।
किसी गधे के गले में डाल देंगे अपना वोट या किसी अंधे कुएं में फेंक देंगे! किसी मास्साब की झलक पाते ही आइसक्रीम वाला मजाक उड़ाते कहता- ‘आप बच्चे थे तो भी घंटियां बजती थीं, अब पढ़ा रहे हो तो भी घंटियां गिनते रहते हो! आखिरी समय भी पीछे-पीछे घंटी ही बजेगी! देखना, कहीं उठ न बैठना!’
और अपने को बड़ा साबित करने की उसकी आखिरी कोशिश होती है अपनी खूबसूरत कलाई घड़ी से दूसरों को आधी छुट्टी का टाइम बताना और छाबड़ी वालों को बीड़ी पेश करना! तीनों बीड़ियां सुलगा कर कश खींचने लगते हैं।छाबड़ी वाले मक्खियां उड़ाने में लगे हैं। खोखे वाला भट्ठी धधकाने में लगा हुआ है। गर्मी हो या सर्दी, मास्टर लोग खाने के बाद चाय की प्याली ही मांगते हैं। इस भयंकर गर्मी में भी कोई मास्टर भूले से भी कैंपा कोला, शिकंजी या शर्बत नहीं मांगेगा! कुछ वेतन लेकर कुछ और पर दस्तखत करने वाले और कर भी क्या सकते हैं!
आइसक्रीम वाला चम्मचों को अकारण ही तौलिए से पोंछ रहा होता है कि सहसा उसे कल की घटना याद आ जाती है। उसके माथे पर पसीना आ जाता है और कल के संकट को याद कर खीझ उठता है। बीती हुई बात को दोहरा कर बोझ हल्का कर लेने की गरज से वह ठहाका लगाकर बात शुरू करता है- ‘अरे! देखा कल उस छोकरे को कैसे फोकट में ही भगा दिया?’‘हां। प्यारे! तुमने तो ऐसी चाल चली कि सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी!’
‘और उसे खाली हाथ लौटा दिया! अब वह दोबारा यहां आने का ख्वाब भी नहीं देखेगा!’ कल एक नया छोकरा सिर पर कुल्फियों की पेटी रखे आधी छुट्टी के समय आ पहुंचा था अचानक! भावी संकट को भांपते हुए आइसक्रीम वाले ने हिसाब लगाया और इस नतीजे पर, पहुंचा कि उसकी आइसक्रीम तो बेकार जाएगी इसकी कुल्फी के आगे! बच्चे उसकी आइसक्रीम लेकर उसकी रेहड़ी के आसपास क्यों बंधना पसंद करेंगे? वे तो सस्ती कुल्फी लेकर किसी पेड़ की छाया में मजे से चूसेंगे!
यह सब सोचते हुए आइसक्रीम वाला सिर झुका कर स्टूल पर बैठ गया था। मानो उसका एकछत्र राज्य छिन गया हो। छाबड़ी वालों ने भी सहानुभूति भरी नजरों से आइसक्रीम वाले को देखा था। खोखे वाला लोहे की सींख से भट्ठी की राख झाड़ने में लगा था। आइसक्रीम वाले ने गुस्से में बुड़बुड़ाते न जाने कितनी गालियां उस छोकरे को दे डाली थीं! खोखे वाले ने दोनों हाथ फैलाकर कहा था- ‘आओ बादशाहो! सबने अपनी-अपनी किस्मत खानी है। तुस्सी क्यों अपनी जुबान खराब करदे हो!’
पसीने से तरबतर, सिर पर पेटी उठाए वह छोकरा मिनी बाजार के ठीक बीचोंबीच आ खड़ा हुआ था। बूढ़े पीपल की अधमरी छाया में सुस्ताते दोनों कुत्ते अपनी होशियारी का सबूत देते, पूछें खड़ी कर छोकरे की ओर मुंह कर भौंकने लगे थे। छोकरा बेचारा, पसीने से तरबतर और नई जगह के कारण बुरी तरह घबरा गया था। पेटी अभी तक सिर पर रखी हुई थी। छाबड़ी वालों में से कोई भी उसकी पेटी उतरवाने के लिए नहीं उठा था।
आइसक्रीम वाले को नाराज करने से न उधार पैसा मिलता और न ही मुफ्त बीड़ी पीने को मिलती। खोखे वाला कप धोने में लगा हुआ था। कुत्तों के भौंकते पर सिर उठाया तो देखा, सिर पर पेटी उठाए छोकरे को! कुत्ते बराबर भौंक रहे थे। वह बेचारा उनके भय से कांपता हुआ खड़ा था। खोखे वाले ने पहले कुत्तों को दुत्कारा- ‘बस। बस। पहलवानों!’ फिर छोकरे को कहा- ‘भापे! तुस्सीं सानूं हुक्म कर दिंदे!’
उसने छोकरे की पेटी उतरवा दी थी। पेटी उतर जाने पर हल्का होकर उसने अपनी कमीज के पल्लू से मुंह पोछा था। बालों में हाथ फिराया था। गर्दन पर हाथ फिरा कर उसे सीधा किया था। फिर थोड़ा सहज होकर खोखे वाले की ओर कृतज्ञता भरी नजरों से देखा था। वह चुप, थोड़ा मुस्कुरा कर चाय के लिए पानी का पतीला गर्म करने लगा था।
उमस के बाद जैसे बादल फट पड़ते हैं, वैसे ही आधी छुट्टी की घंटी बजते ही सब तरफ शोर ही शोर मच गया। जैसे नन्हे खिलौनों में चाबी भर दी गई हो! सड़क पर गुजरते साइकिल सवार घंटी पर घंटी बजा रहे थे, ताकि बच्चे रास्ते दे दें! इस शोर के बीच बच्चों ने नई आवाज सुनी- ‘ठंडी ठार कुल्फी! रसमलाई वाली कुल्फी! संगतरे अंगूर वाली कुल्फी! आप भी खाओ, दोस्तों को भी खिलाओ!’
बच्चे उसकी पेटी के पास इकट्ठा होने लगे थे। मगर एकाएक यह समूह थोड़ा सहम गया था। हेडमास्टर साहब उपस्थित न होकर भी उपस्थित हो गए थे। ‘कहा न था- न लेना कुल्फी!’ जन गण मन के बाद हेडमास्टर साहब ने समझाया था कि तुम्हारे मां-बाप शिकायत करते हैं। कुल्फी खाने से गला खराब हो जाता है। स्कूल के आसपास बर्फ या ठंडी चीजें न बिकने दें! यह भी कहा था कि फिर भी खाओगे तो सजा मिलेगी! बेंतें पड़ेंगी। मुर्गा बनाया जाएगा। अगर कुल्फी वाले को पकड़ कर ले आओगे तो शाबाशी मिलेगी!
दिमाग में यही घूमने लगा था। वे सब छोकरे को लगे डांटने, ‘उठाओ अपनी पेटी और दफा हो जाओ यहां से!’छोकरा भला इतनी धमकी से कहां मानने वाला था! ‘किसी के बाप का राज थोड़े है यहां! नहीं जाता! जो जी में आए, कर लो!’तब उन्हें याद आया कि हेडमास्टर साहब ने कहा था कि अगर फिर भी न जाए तो पेटी उलट दो! मेरे पास ले आओ पकड़ कर!
कोई और भरा-पूरा मर्द होता तो बच्चे उससे डर भी जाते, लेकिन वह तो उनकी उम्र का छोकरा था। क्या कर लेगा? ऐसा सोचते ही लगे उस बेचारे को घसीटने। आइसक्रीम वाले ने भी शह देनी शुरू कर दी। मौका देखा कि बच्चे कुल्फी वाले के खिलाफ हैं, उन्हें उकसाते हुए कहने लगा- ‘जरा पूछो इससे, कहां है कुल्फी में रसमलाई? निरी बर्फ है बर्फ! गले क्यों न खराब होंगे तुम्हारे? पेश करो स्साले को हेडमास्टर साहब के पास!’ और जोश में आए बच्चे घसीट ले गए छोकरे को हेडमास्टर के पास! वानर सेना की तरह उसका सब कुछ तहस-नहस कर दिया था।
बाजार पर इस घटना का कोई असर नहीं पड़ा था। वह पूरे जोर-शोर से चल रहा था। खोखे वाला दौड़-दौड़ कर प्लेटें धोता रहा। आलू छोले डाल डाल कर देता रहा। छाबड़ी वाले चनों की तिकोनी पुड़ियां बांधते रहे। पापड़ियां बेचते रहे। आइसक्रीम वाला जोर-जोर से ‘आइसक्रीम ले लो’ की आवाजें लगाता रहा।
आधी छुट्टी खत्म होते ही छाबड़ी वालों ने अपनी-अपनी बिक्री गिनी और सामान समेटना शुरू कर दिया।कुत्ते पेटी के आसपास चक्कर काट रहे थे। पर वहां ठंडे पानी के सिवाय उनके लिए कुछ न था। पानी रंगदार था, उसे ही चाटे जा रहे थे। खोखे वाला बर्तन मांजने लगा था। एक बार उसके मन में आया कि छोकरे की मदद करे। हेडमास्टर से जाकर विनती करे। पर अपना पेट कैसे कटवा लेता! इसलिए बर्तन मांजता रहा। अपने फैसले को दबाता रहा!
तभी छोकरा पिटे हुए मोहरे की तरह गेट के बाहर निकल, खाली हाथ पेटी के पास आकर खड़ा हो गया। जैसे कचहरी में कोई बड़ा मुकदमा हार आया हो! छाबड़ी वालों ने एक-दूसरे की छाबड़ियां उठवा दी थीं और चल दिए थे। आइसक्रीम वाले ने आइसक्रीम का एक कप लबालब भर कर चपरासी के हाथ हेडमास्टर साहब के लिए भिजवा दिया था। छोकरे को सुनाने के बहाने सुनाया था- ‘मेरी आइसक्रीम हेडमास्टर साहब को बहुत पसंद है। इस उम्र में क्या कुल्फियां चूसेंगे!’ इस बात पर वह खुद ही हंस दिया था।चपरासी कप, चम्मच लौटाने आया तो आइसक्रीम वाले ने उसे पीने के लिए बीड़ी दी।
आज आइसक्रीम वाला आश्वस्त होकर कलाई घड़ी देख ही रहा था कि आधी छुट्टी हो गई और सदा की तरह मैदान उसके साथ में था। तभी वही कल वाला छोकरा सिर पर पेटी उठाए आता दिखाई दिया। उसकी चाल में इस कदर मजबूती थी कि अपने आप अनुमान हो जाता था कि आज वह स्वयं को हर युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार करके आया है!