शशिप्रभा तिवारी

भरतनाट्यम नृत्यांगना मैरी इलंगोवन वर्षों पहले भारत आईं थीं। भारतीय संस्कृति और शास्त्रीय नृत्य समझने और सीखने के लिए आईं, फिर यहीं की होकर रह गईं। मैरी ने भरतनाट्यम नृत्य गुरु केजी गोविंदराजन के सानिध्य में सीखा। वह भारतीय नृत्य के जीवन से जुड़े होने से बहुत प्रभावित हैं। इसलिए तंजौर शैली के भरतनाट्यम को अपनाने के साथ ही, उन्होंने अपने गुरु की परंपरा को भी अपने नृत्य के जरिए कायम रखने की पूरी कोशिश की है। वह नृत्य प्रस्तुति के साथ नृत्य सिखाती भी हैं।

गौरतलब है कि इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित समारोह में मैरी इलंगोवन ने नृत्य पेश किया। पुष्पांजलि से नृत्य आरंभ किया। उनकी अगली पेशकश वरणम थी। यह गुरु केजी गोविंदराजन की नृत्य रचना थी। यह राग काम्बोदी और आदि ताल में निबद्ध थी। रचना ‘नील मेघ वंदिकम सुंदर’ पर आधारित नृत्य में नायिका के भावों का सुंदर विवेचन मैरी ने किया। नायिका अपनी सहेली से नायक के पास संदेश पहुंचाने का आग्रह करती है। नायिका कृष्ण की बांसुरी की धुन सुनकर मोहित हो जाती है। अभिनय के साथ मुद्राओं का प्रयोग बहुत भावपूर्ण था। दरअसल, नृत्यांगना मैरी इलंगोवन ने अपने गुरु की नृत्य रचना को बेहद सादगी और सुरुचिपूर्ण तरीके से पेश किया। आज के समय में जब हर कलाकार नई नृत्य रचना करने को आतुर दिखता है, ऐसे में मैरी परंपरा को कायम रखने की कोशिश में जुड़ी हुई हैं, यह बड़ी बात है। उनकी अगली पेशकश अभिनय था। पेशकश पद्म राग तैलंग और आदि तिश्र नाटई में निबद्ध थी। रचना ‘अम्मा काचि अडि’ में देवी के प्रति भावों को मनोहारी अंदाज में पेश किया।

महाराजा स्वाति तिरुनाल के लिखे भजन पर आधारित मैरी की अगली पेशकश थी भजन ‘आज आए श्याम मोहन’ राग पहाड़ी और मिश्र चापू ताल में निबद्ध थी। यह विलान बालकृष्ण मूर्ति की संगीत रचना थी। मैरी ने कृष्ण की रासलीला का सुंदर समावेश नृत्य में किया। विष्णु के चतुर्भुज और सर्पशैया को दर्शाया। उनकी अगली पेशकश तिल्लाना थी। यह गुरु केजी गोविंदराजन की रचना थी। इसकी नृत्य रचना मैरी और जी इलंगोवन ने की थी। यह तिल्लाना भगवान कातिर्केय को निवेदित था। ‘दिम-दिम-दिर-त-ना’ के बोेल पर आधारित तिल्लाना में लय के विभिन्न दर्जे को अंग, पद और हस्त संचालन के जरिए मैरी ने बखूबी पेश किया। ताल के अलग-अलग आवर्तनों में जतीस का प्रयोग मोहक था। वहीं करणों और अडवुओं को बरतने में शुद्धता को विशेष अंदाज में मैरी ने बरता। नृत्यांगना मैरी इलंगोवन के साथ संगत कलाकारों में नटुवंगम व गायन पर जी इलंगोवन शामिल थे। इनके अलावा, बांसुरी पर जी रघुरामन, वायलिन पर वीएसके अन्नादुरई और मृदंगम पर चंद्रशेखर ने संगत की।