वर्तमान को सिर्फ विज्ञान का युग कहना ठीक नहीं होगा, क्योंकि विज्ञान में नई खोजों के लिए लंबे धैर्य और अथक मानवीय प्रयासों की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत आज के युग में नई-नई चीजें बड़ी तीव्रता से हमारी दिनचर्या का अंग बनती जा रही हैं, जिसे विज्ञान की खोज कम और चमत्कार या ‘जादू’ अधिक माना जा सकता है। इन चमत्कारों में श्रव्य और दृश्य सूचनाओं का आदान-प्रदान इतनी तीव्रता से हो रहा है कि मानवीय मस्तिष्क चारों ओर फैलता जा रहा है है। डिजिटल युग के इस दौर में अनगिनत सूचनाओं के प्रवाह ने हमारे मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को प्रभावित किया है।
मनुष्य चाह कर भी उसे किसी एक जगह पर केंद्रित करने में असमर्थ महसूस कर रहा है। हर वक्त व्यस्तता का एक ऐसा संजाल खड़ा हो गया है, जिसमें कई-कई घंटे या पूरा दिन खपाने के बाद भी व्यक्ति यह आकलन कर पाने में असमर्थ हो रहा है कि इतने समय की कथित व्यस्तता के बाद उसने अपने जीवन के लिए क्या हासिल किया। दिमाग में एक झंझावात हमेशा उफान मारता रहता है, जो मानवीय असंतोष का मुख्य कारण बनता जा रहा है।
अपने भीतर उभर रही प्रकृति पर गौर नहीं कर पाते लोग
कई बार यह समस्या चिंताजनक रूप में उपस्थित दिखती है जब किसी मामूली बात पर दो लोग आपस में हिंसा कर बैठते हैं। ऐसी छोटी बातों पर हुए टकराव और लड़ाई में किसी के मारे जाने की घटनाएं हाल के दिनों में अक्सर सामने आने लगी हैं। यह एक तरह से मनुष्य के भीतर मानवीय मूल्यों, संवेदनशीलता की कमी और सोचने-समझने की प्रक्रिया बाधित होने का नतीजा लगता है। विडंबना यह है कि लोग अपने भीतर उभर रही इस प्रकृति पर गौर नहीं कर पाते और उसका शिकार होकर दूसरों तक अनजाने ही इस विकृति का प्रसार करते हैं। जबकि इसका खमियाजा खुद उन्हें भी भुगतना पड़ता है।
नारे-जलूस और सभाओं से आम आदमी की उठ गई है आस्था, देख रहा राजनीतिक स्वार्थ और आचरण की मक्कारी
इस भागदौड़ भरी और अब डिजिटल होती दुनिया में क्या किसी के पास इतना समय बचा है कि वह प्रकृति या ईश्वर द्वारा प्रदत्त उन चीजों के लिए आभार व्यक्त कर सके, जो उसके पास है। भौतिक सुखों की लालसा के कारण मुश्किलों और दैनिक समस्याओं से दो-दो हाथ करते, हमने कभी आभार अभिव्यक्ति का अभ्यास किया है या ऐसा करते हैं? सच यह है कि किसी प्राप्ति के आकलन और उसके लिए किसी को आभार व्यक्त करना, हमारे जीवन-अभ्यास में नहीं रहा है। इसलिए कभी अभाव की स्थिति में भी हमें अपनी जरूरत की कोई वस्तु मिल जाती है, तो इसके लिए परिस्थितियों, व्यक्ति या किसी अन्य के प्रति कृतज्ञ होना हम जरूरी नहीं समझते। ऐसे में आभार जैसे कुछ सामाजिक और आध्यात्मिक पहलू गौण होते जा रहे हैं। हालांकि मनुष्य के लिए रचित सभी धार्मिक ग्रंथ आभार प्रकट करने के चमत्कारिक प्रभावों का वर्णन करते हैं।
अनुभव के आधार पर होती है आभार व्यक्त करने की शक्ति
वैसे भी हृदय से आभार अभिव्यक्ति मानसिक शांति और सकारात्मक दृष्टिकोण का कारण बनती है। मसलन, बाइबल आभार व्यक्त करने की मजबूत शक्ति को दर्शाती है। हो सकता है कि हमें अपनी दिनचर्या में आभार व्यक्त करना एक और काम की तरह लगे, पर हमें अनुभव होगा कि आभार व्यक्त करने की शक्ति इसे अभ्यास करने में लगने वाले कुछ मिनटों से कहीं अधिक है। फिर इसके बाद हमारे भीतर जो मानसिक शांति के लिए जगह अपने आप बन जाती है, उसका महत्त्व भी अनुमान से कहीं अधिक है।
कल, आज और आने वाले कल की तीन पीढ़ियों की समझ में जमीन-आसमान का आ गया अंतर
इस समूचे मनोविज्ञान पर अगर विचार किया जाए तब यह साफ होता है कि हमें आभार व्यक्त करने की आदत डालनी होगी। हमारी मदद करने वाले व्यक्ति से लेकर परिस्थिति और प्रकृति या ईश्वर को धन्यवाद देने का यह एक अहम कारण है, क्योंकि हम उपहारों की नहीं, बल्कि देने वाले की प्रशंसा करते हैं। आभार प्रकट करना, हमें यह अहसास कराता है कि हमारे पास जो कुछ भी है, वह हमारे कारण नहीं, बल्कि प्रकृति की देन है। परमेश्वर को धन्यवाद देना अर्थात परमेश्वर के सान्निध्य को प्राप्त करना है। जितना अधिक हम उसका धन्यवाद करते हैं, उतना ही अधिक हम उसकी उपस्थिति अपने अंदर और अपने आसपास करते हैं। उसकी व्यक्तिगत देखभाल को महसूस करने में हमारी मदद करती है।
आभार को बौद्ध धर्म में एक जीवनशैली के रूप में देखा जाता है
इस तरह हम अपने भीतर किसी कोने में छिपे अहं के भाव को निकाल बाहर करते हैं और अहंकार जैसी दुष्प्रवृत्ति से खुद को बचाते भी हैं। बौद्ध धर्म में आभार को एक जीवनशैली के रूप में देखा जाता है, जो व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। साथ ही समाज के प्रति व्यक्ति को अधिक करुणामय बनाता है। सच यह है कि आभार का अभ्यास हर परिस्थिति में जीवन जीने का संदेश लेकर आता है। यह मानसिक सशक्तता प्रदान करके हमें जीवन में उपलब्ध संसाधनों के महत्त्व को समझने और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर सदैव प्रसन्न रहने का अवसर उपलब्ध करवाता है।
अतीत का बोझ क्यों ढो रहे हैं हम? जीवन को हल्का बनाने के 3 आसान उपाय
सामाजिक रिश्तों का आधार प्रेम और संवेदनशीलता है, जो आभार अभिव्यक्ति के रूप में सामने आता है। यह हमारे रिश्तेदारों और मित्रों के साथ हमारे संबंधों में गर्मजोशी और मधुरता लाता है। ‘धन्यवाद’ और ‘क्षमा’ वह धन हैं, जिनसे हम सामाजिक प्राणी होने का कर्ज अदा करते हैं। अपनी दिनचर्या में आभार जैसे दिव्य गुण को सम्मिलित करने के लिए आपको सिर्फ दूसरों से सहायता स्वीकार करने के गुण को अंकुरित करना होगा। प्रत्युत्तर में आभार व्यक्त करना अपने आप ही हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन कर, हमारे जीवन को उमंग और उल्लास से भर देगा।