साहित्य में कुछ कहानियों और उनके किरदारों ने सांस्कृतिक दूत जैसी भूमिका अदा की है। सरहदों की लकीर को मिटाती मानवता की ये कहानियां और इनके किरदार जितने पुराने होते हैं, उतने ही प्रासंगिक भी। ऐसी ही एक कहानी है ‘काबुलीवाला’। आज पूरी दुनिया में जब अफगानिस्तान तालिबान और उनकी कट्टरपंथी सोच के लिए जाना जा रहा है, एक समय ऐसा था, जब वहां के लोग अपनी दोस्ती और ‘रहमत’ के लिए जाने जाते थे।
रवींद्रनाथ ठाकुर ने 1892 में यह कहानी लिखी थी। तब अफगानिस्तान बंदूकधारी और स्त्री विरोधी सत्ता नहीं बल्कि अपनी खास संस्कृति और मेवों के लिए जाना जाता था। मेवों के एक ऐसे ही अफगानिस्तानी व्यापारी रहमत को रवींद्रनाथ ठाकुरने अपनी कहानी का किरदार बनाया था। कलकत्ते की गलियों में फेरी लगा कर मेवा बेचने वाले रहमत को एक घर की खिड़की से पांच साल की लड़की ने आवाज दी, ‘काबुलीवाले, ओ काबुलीवाले’ इस आवाज से बंधा रहमत मिनी के घर पहुंचा तो, मिनी को पहले डर लगा कि काबुलीवाले ने अपने झोले में बच्चे चुरा कर रखे हैं। मिनी के पिता ने बच्ची के मन से यह डर निकाला, और दोनों अच्छे दोस्त हो गए।
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मिनी के पिता खुले ख्यालों के इंसान थे। वे काबुलीवाले से बात कर उसके देश के बारे में समझने की कोशिश करते थे। एक दिन अपने पैसे उधार मांगने के बाद हुई कहासुनी में रहमत एक व्यक्ति को छुरा मार देता है, और उसे आठ साल की जेल हो जाती है। धीरे-धीरे मिनी और उसके पिता रहमत को भूल जाते हैं। आठ साल बाद अचानक एक डिब्बे में कुछ अंगूर और पिस्ते लेकर, रहमत मिनी के दरवाजे पर खड़ा हो जाता है। वह मिनी से मिलना चाहता है।
मिनी के प्रति उसके प्यार को देख कर पिता ने मिनी को अंदर से बुलाया। उस दिन मिनी की शादी थी और वह दुलहन के वेश में सकुचातीहुई काबुलीवाले के पास आ खड़ी हुई। उसे दुलहन के रूप में देख कर काबुलीवाले को अपनी बेटी की याद आई, जो मिनी जितनी बड़ी ही थी। मिनी के पिता ने रहमत के दर्द को समझ उसे कुछ पैसे दिए कि वह अपने देश, अपनी बेटी के पास चला जाए।
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यह कहानी बच्चों और बड़ों के बीच एक सेतु है। इसमें एक बाल किरदार है और दो पिता। एक पिता आजीविका के लिए अपनी बेटी और अपने देश से दूर है, तो दूसरा पिता अपनी बेटी को दुनिया को समझने का मौका दे रहा है। बेटी अलग संस्कृति, अलग रंग-रूप जैसे किसी व्यक्ति को बच्चा चुराने वाला अपराधी न समझ ले, पिता इसका खास ख्याल रखता है।
इस कहानी में प्रवासियों के दर्द को भी उकेरा गया है। मिनी के पिता समझते हैं कि रहमत से अपराध आवेश में हुआ। शायद वह अपने देश में होता तो ऐसी स्थिति में उसे इतनी लंबी सजा नहीं होती। इतनी लंबी सजा, जिसमें पांच साल की बेटी शादी के लायक हो जाए और पिता को पता भी नहीं कि उसकी बेटी दुलहन बनी या नहीं!