जूही शुक्ला
उन्होंने मुझसे कहा
आप अपनी ईमानदारी बचाए रखिए
मैंने कहा आवरण रहित तो पहले से ही थी
नंगेपन को हज़म नहीं कर पा रहे हैं सब आंख वाले
अब क्या खाल भी उतार दूं?
बचेगा क्या?
ज़ख्म न!
वह मैं दिखाती नहीं
भिखारिन थोड़े ही हूं
जो चोट दिखाकर संवेदनाएं बटोरूं!
आप जिसे बचाए रखने की बात कहते हैं
दरअसल वही मेरे
ढांचे की सुंदरता है
वह वैसे ही क्रंदन करती है
जैसे जन्मता शिशु
तलाश है तो बस
मातृत्व की