यह मध्य प्रदेश के सुदूर देहात की एक युवती की कहानी है। तब गांव में पाठशाला दसवीं तक ही थी। आगे की पढ़ाई के लिए लड़कियों को कई किलोमीटर दूर स्कूल जाना पड़ता था। इसीलिए मां ने रिया को भोपाल भोज देना मुनासिब समझा। बेटी वहां सुरक्षित पढ़ तो सकेगी। मां को बस यही तसल्ली थी। रिया के पिता असमय चल बसे थे। जवानी पहाड़ की तरह सामने खड़ी थी। जीवन की डगर पर गिरते-संभलते मां ने इकलौती बेटी को पाला। अपने सपनों के पंख उसे दे दिए। नन्ही रिया दाना चुगती गौरैया के पीछे दौड़ती, तो लगता कि एक दिन वह भी आसमान को छू लेगी। और यही हुआ। उसके पंख को कोई कतर न दे, यह फिक्र हमेशा रहती।

किस्मत ने रिया के जीवन की पटकथा शायद पहले ही लिख दी थी। वह सर्वोच्च अंकों से ग्यारहवीं और बारहवीं पास कर गई। सभी ने कहा, बेटी पढ़ेगी और बहुत आगे जाएगी। पढ़ने दो उसे। तब मां ने सबकी सलाह मानी। बेटी की पढ़ाई जारी रखने का फैसला कर लिया। पति की पेंशन से पैसे जोड़ती रही मां ने रिया को साइंस कॉलेज में दाखिला दिलवा दिया। उसका दिल यही कहता…….बेटी तू खूब पढ़। अपने सपनों की उड़ान भर……..।

यह बीएससी पाठ्यक्रम का अंतिम वर्ष था। मौसी के घर छत पर बने कमरे में रिया घंटों पढ़ती रहती। जब थक जाती तो वह चाय पीते हुए आसमान से गुजरते विमानों को तब तक देखती रहती, जब तक कि वे नजरों से ओझल नहीं हो जाते। अकसर सोचती, काश वह भी इसी तरह विमान उड़ाते हुए धरती के एक छोर से दूसरे छोर तक चली जाए। …….. पढ़ाई-लिखाई के खर्चे से दबी मां को यह बताते हुए रिया को संकोच होता। मगर उसे क्या पता था कि मां उसके लिए भी यही सपने देखती है।

रिया……ओ रिया। नीचे आकर नाश्ता कर ले। और ये अखबार ले जा। किताबी कीड़ा बनी रहेगी या आसपास की दुनिया भी देखेगी। शाम को बाजार भी चलना है। …… रिया रसोई में पहुंची तो मौसी ने उसे लाड़ करते हुए कहा, देख तेरी ये जींस-कमीज सब घिस गई है। दो-तीन जोड़ी नए कपड़े ले ले। अच्छे कपड़े पहन कर कॉलेज जाया कर। समझी मेरी बच्ची। नाश्ता कर के रिया अपने कमरे में चली आई। वह बिस्तर पर बैठ कर अखबार के पन्ने पलटने लगी। तभी उसकी नजर एक विज्ञापन पर टिक गई। दिल्ली की एक उड्डयन अकादमी का विज्ञापन था। इसमें स्टूडेंट पायलट, पर्सनल पायलट और कमर्शियल पायलट लाइसेंस के लिए अलग-अलग प्रशिक्षण के साथ फीस-किताबें और उड़ान घंटे का विस्तृत ब्योरा था। हॉस्टल फीस मिला कर मोटे तौर पर खर्च लाखों में था।

सपनों की उड़ान भरने वाली रिया जमीन पर आ गई। इतने रुपए का इंतजाम तो किसी भी हालत में मां नहीं कर सकती। यह सोच कर वह उदास हो गई। …….. मां से क्या कहूं। यह विज्ञापन वाट्सऐप पर उसे भोज देती हूं। रिया ने विज्ञापन की तस्वीर मोबाइल कैमरे से खींच कर मां को वाट्सऐप कर दिया। ……… बीप-बीप की आवाज के साथ मां चौंक गई। रिया जब फोन नहीं करती, तो मैसेज कर देती है। देखूं लाडो क्या कह रही है? मां ने वाट्सऐप खोला था तो वहां अंगेरजी में विज्ञापन था।

……… इंटर पास मां उसे पढ़ने बैठ गई है। कुछ समझ में आया, तो कुछ नहीं। मगर बेटी की इच्छा वह समझ गई। उसे बेटी को जवाब दिया- तुझे जो करना है कर। पैसे की परवाह न कर। बाबूजी मरने से पहले तेरे नाम से काफी जमीन खरीद कर छोड़ गए थे। यह किसी को पता नहीं। उसे बेच दूंगी। क्या करूंगी रख कर। अपन से खेती होने से रही। तू कोर्स के लिए अप्लाई कर दे रिया। दोपहर की स्टडी और शाम को कोचिंग के बाद जब रिया अपने कमरे में लौटी तो मां को भोजे मैसेज का खयाल उसे आया। जवाब की उम्मीद न थी। फिर भी उसने वाट्सऐप खोला तो मां का जवाब पढ़ कर उसे विश्वास ही नहीं हुआ। उसने तुरंत कॉल किया। उधर से जवाब था-बेटा मुझे बता नहीं सकती थी। अरे तेरे लिए मैं सपने देखती हूं। खुद आसमान में उड़ती हूं। ……. कि तू कब बड़ी होगी और कब मेरे सपने को पूरा करेगी। हवाई जहाज उड़ाने का कोर्स कर ले तू। पैसे की चिंता मत कर।

मां और बेटी देर तक सपने बुनती रहीं। अगले दिन कॉलेज से लौटने के बाद उसने उड्डयन अकादमी की वेबसाइट पर जाकर ऑनलाइन आवेदन कर दिया। …….. आज परीक्षाओं की डेटशीट भी आ गई थी। रिया तैयारी में जुट गई। एक तरफ अच्छे नंबर से बीएससी पूरा करने की चुनौती तो दूसरी तरफ मां के सपनों को पूरा करने की जिद। देखते ही देखते सारी परीक्षाएं खत्म हो गर्इं। अगले ही महीने विमानन अकादेमी दिल्ली से शारीरिक और लिखित परीक्षा के लिए बुलावा आ गया।

इस बीच मां ने खेती की जमीन अपने ही एक रिश्तेदार को बेच कर बेटी की आगे की पढ़ाई के लिए इंतजाम कर लिया। रिया के सामने साफ लक्ष्य था। नीला आसमान उसे पुकार रहा था। धरती पर उसके पांव नहीं पड़ रहे थे। लगता था कि बस अब उड़ चलेगी। क्या रिया लंबी उड़ान भर पाएगी……?

कुछ ही दिनों बाद रिया दिल्ली में थी। मेडिकल टेस्ट के बाद उड़ान संबंधी तकनीक की कक्षाएं शुरू हो गर्इं। दक्षिण दिल्ली के खुले इलाके में उसका हॉस्टल था। यहां भी आसमान से गुजरते विमान दिख जाते। पास ही हवाई अड्डा होने के कारण बोइंग विमानों को नजदीक से देख कर अचं•िात रह जाती। इतने भारी-भरकम विमानों को कैसे उड़ाऊंगी? रिया सोचती। कभी-कभी तो बहुत डर लगता। फिर मन को दिलासा देती कि ट्रेनी पायलट बनूंगी तो सब समझ में आ जाएगा। अभी से क्यों डरूं? अगर डरूंगी तो कुछ न होगा।

मां का अकसर फोन आ जाता। वो हमेशा यह जानने को उत्सुक रहती कि इतना बड़ा विमान हवा में उड़ता कैसे है? रिया जवाब देती कि मां यही तो सीख रही हूं। समझ रही हूं। यह एक तकनीक है। तुम नहीं समझ पाओगी। ……… और एक दिन ऐसा आएगा जब तुम आंगन वाली रसोई में खाना पका रही होगी, तब मैं ऊपर आसमान से विमान उड़ाते हुए निकल जाऊंगी। तुम आंखें फाड़ती हुई देखती रह जाओगी। बेटी की बात सुन कर मां खिलखिलाती। उसे वे दिन याद आ जाते, जब छोटी सी रिया दाना चुगती चिड़िया के पीछे दौड़ पड़ती। चिड़िया उड़ जाती तो वह कहती-फर्र-फुर्र……. उड़ गई चिड़िया……फर्र-फुर्र। मां की आंखें नम हो गर्इं।

कई महीने बीत गए। अब व्यावहारिक प्रशिक्षण की बारी थी। प्रशिक्षुओं को प्रैक्टिकल रूम में ले जाया जाता, जहां सबको विमान उड़ाने का आभासी प्रशिक्षण दिया जाता। यह पायलट केबिन जैसा था। शीशे के सामने रनवे दिख रहा था। इस प्रशिक्षण के बाद सचमुच की उड़ान पर जाना था। जितनी ज्यादा उड़ान, उतना ज्यादा अनुभव। रिया को कमर्शियल पायलट का लाइसेंस लेना था। इसलिए उड़ान के घंटे ज्यादा ही थे। इसके लिए भारी-भरकम फीस वसूली जा रही थी। मगर मां ने हार नहीं मानी। उसने अपनी सारी पूंजी लगा दी। रिया ने भी उसके सपनों की उड़ान भरने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

…….. और एक दिन उड़ान प्रशिक्षण भी पूरा हो गया। कॉमर्शियल पायलट का लाइसेंस मिलते ही रिया ने तीन-चार एअरलाइन कंपनियों में आवेदन कर दिया। जल्द ही एक बड़ी एअरलाइंस से ट्रेनी पायलट के लिए कॉल लेटर आ गया। कुछ टेस्ट और इंटरव्यू के बाद इसे नौकरी मिल गई। संयोग से पहली उड़ान उसे भोपाल की मिली। पायलट केबिन में जाने से पहले रिया ने मां को फोन किया। मां भावुक हो गई। लगा जैसे उसके पंख उग आए हैं।
कुछ ही देर में रिया पायलट केबिन में थी। विमान को सीनियर पायलट उड़ाने वाले थे। रिया भी बगल की सीट पर बैठ गई। उनके निर्देश के मुताबिक जैसे उसने काम शुरू किया, विमान हरकत में आ गया। वह रनवे पर दौड़ने लगा। देखते ही देखते विमान जमीन से ऊपर उठने लगा। यह अहसास होते ही वह रोमांच से भर उठी। घंटे भर बाद विमान परिचारिका ने उद्घोषणा की कि हम कुछ ही देर में भोपाल पहुंचने वाले हैं। पायलट केबिन से जमीन की हरियाली साफ दिख रही थी। रिया सोचने लगी कि मां खुले मैदान में खड़ी होकर विमान के गुजरने का इंतजार कर रही होगी।

…….. उधर, दूर से आता हुआ जहाज दिखा। मां समझ गई कि इसे रिया ही उड़ा कर ले जा रही है। उसका मन पलकित हो उठा। आंखें भर आर्इं। फुर्र चिड़िया फुर्र कह कर दौड़ने वाली बेटी अब खुद उड़ रही है उसके सपनों के आसमान में। ………. हवाईअड्डे पर उतरते ही रिया ने मां को फोन किया- मां हवाई जहाज को देखा तुमने? देख तेरा सपना पूरा हो गया मां? मैं ठीक तुम्हारे ऊपर आसमान में थी। ….हां बेटा देखा। हम तुमको तो न देख पाए, पर हवाई जहाज को देख कर खुश हो गई। मां ने जवाब दिया। यह सुन कर रिया की पलकें गीली हो गई।

……. साल भर बाद रिया को सह पायलट का लेटर मिल गया। पायलट केबिन में उसकी भूमिका बढ़ गई थी। पटना-जयपुर-कोलकाता सहित कई नई उड़ानों में भी वह शामिल रहती। पगार भी बढ़ गई थी उसकी। अब उसमें भरपूर आत्मविश्वास था। भोपाल की उड़ान मिलने पर वह मां से मिलने जरूर जाती। गांव के लोग उसे पायलट की सफेद ड्रेस में देख कर गर्व करते कि हमारे बीच की बेटी हवाई जहाज उड़ाती है। रिश्तेदारी में भी यही हाल था। इस बीच शादी के लिए रिश्ते आने लगे। सभी एक से बढ़ कर एक। आइएएस, डाक्टर, इंजीनियर और बड़े कारोबारी परिवारों के यहां से भी।

मां किसी को भी हामी नहीं भर रही थी। रिश्ते लाने वालों से वह कह देती कि वह बेटी से पूछ कर बताएगी। रिया का अभी शादी करने का मन नहीं था, लेकिन जब मां के चेहरे को देखती तो लगता कि शायद वह चाहती है कि इनमें से किसी को रिश्ते को पसंद कर लूं। …….. इसी दौरान एक बहुत बड़े कारोबारी परिवार का रिश्ता आ गया। उनकी भोपाल से लेकर दिल्ली और कोलकाता तक जमीन-जायदाद थी। महंगी गाड़ियों का तो काफिला था उनके पास। उनका छोटा बेटा आस्ट्रेलिया से मैनेजमेंट का कोर्स करने के बाद परिवार का कारोबार संभाल रहा था। उनके बंगले से जुड़े मैदान में दो हेलिकॉप्टर हमेशा कारपोरेट बैठकों में ले जाने के लिए तैयार रहते। इस परिवार को लग रहा था कि रिया जैसी पढ़ी-लिखी प्रोफेशनल बहू कहां मिलेगी।

पूरे परिवार की पृष्ठभूमि जानने के बाद रिया ने इस रिश्ते को हां कह दी, तो उधर मां की चिंता शुरू हो गई। उसने करीबी रिश्तेदार से उन लोगों को कहलवा दिया कि बेटी की उच्च शिक्षा पर खर्च करने के कारण वह दान-दहेज देने की हालत में नहीं। और न ही उनकी हैसियत के मुताबिक भव्य स्वागत कर पाएगी। फिर भी वह कोई कसर नहीं छोड़ेगी। लड़के वालों के यहां से जवाब आ गया कि उन्हें कुछ भी नहीं चाहिए। बारातियों के स्वागत में खर्च करने की भी जरूरत नहीं। सिर्फ रिश्तेदार आएंगे। आपको जो बन पड़े उनको खिला कर स्वागत कर दीजिएगा। हम शादी के बाद दिल्ली में भव्य समारोह कर सारी कमी पूरी कर देंगे।

…… रिया ने पहली नजर में मानस को जैसे ही पसंद किया, दोनों पक्षों ने विवाह की तारीख तय कर दी। यह चट मंगनी पट ब्याह जैसा हुआ। न दिखावा और न कोई शोर-शराबा। सब शांतिपूर्वक संपन्न हो गया। हनीमून मनाने के लिए रिया मानस के साथ स्विटजरलैंड गई। वहां से लौटने के बाद वह दिल्ली चली आई। अब वह फिर से पायलट की ड्यूटी पर थी। उड़ान से लौटने के बाद वह देर तक मानस से फोन पर बात करती। उनके बीच रोमांस चरम पर था। मगर दूरियां मानस को निराश कर देती।

वह अकसर कहता, रिया ये नौकरी छोड़ दो। अगर प्लेन उड़ाने का इतना ही शौक है तो अपने यहां हेलिकॉप्टर हैं। उसे उड़ा कर शौक पूरे कर लेना। मुझे तुम्हारी सैलरी नहीं, प्यार चाहिए। इस पर रिया उसे समझाती, यह मेरा शौक नहीं मानस, यह जुनून है। यह एक मां का अरमान है। उसके सपनों को साकार करने की जिद है। यह मेरा स्वा•िामान है। मैं पैसे मांग कर जीवन नहीं जीना चाहती। तुमसे भी नहीं। मानस, मैं इस नौकरी से मां की भी मदद करती हूं। मेरी पढ़ाई पर उन्होंने सब कुछ लुटा दिया है। क्या उनका साथ छोड़ दूं? मैं ऐसा कब कह रहा हूं। मानस ने सफाई दी। …….. इस बातचीत के बाद दोनों में मतभोद शुरू हो गए। क्या दोनों एक डगर के राही बने रहेंगे? या उनके रास्ते अलग हो जाएंगे? कौन जानता है?

जिंदगी की गाड़ी हवा में उड़ रही थी? रिया अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर भी जाने लगी थी। इससे न केवल उसकी व्यस्तता बढ़ गई बल्कि मानस से दूरियां भी। इसी बीच ससुराल वालों ने मां के पास संदेश •िाजवाया कि रिया को नौकरी छोड़ कर अब घर-परिवार संभाल लेना चाहिए। हवाई जहाज उड़ाने का इतना ही शौक है तो अपने घर में दो-दो हेलिकॉप्टर हैं। जब चाहे वह उड़ा ले। ……. मां भला उन्हें क्या जवाब देती। वह रिया को समझा भर सकती थी। आखिर बेटी में जुनून उसी ने भरा था। मां ने उसे फोन कर समझाया भी, मगर रिया उसकी बात मानने के लिए बिल्कुल भी तैयार न थी।

आखिरकार मां एक दिन दिल्ली आ गई। यहां उसने पाया कि बेटी के पास तो खुद के लिए ही समय नहीं। वह सूरज उगने से पहले उड़ान के लिए निकल जाती। कभी देर रात लौटती, तो कभीअगली सुबह। छुट्टी वाले दिन मां ने रिया की पसंद का खाना बनाया। उसे खिलाते हुए प्यार से पूछा- बेटी इस नौकरी में बेचारे मानस को क्या समय दे पाएगी? एक दो हफ्ते से देख रही हूं तेरे पास मेरे लिए भी समय नहीं। इस पर रिया ने सफाई दी, मां हर महीने मानस के लिए मैं चार दिन का समय निकाल लेती हूं। उसका अपना कारोबार है तो मेरा भी अपना काम है। यह सब छोड़ कर मानस के पीछे-पीछे चलती रहूं? क्या मेरा मन स्वीकार करेगा? क्या इसी दिन के लिए इतनी पढ़ाई की थी? मां मुझे अभी आसमान में उड़ने दो। उसका स्वर तीखा हो गया था। मां समझ गई कि रिया उसकी तरह पति का घर बसाने के लिए अपनी भावनाओं और सपनों का गला घोंट कर घर की चहारदिवारी में रहने वाली लड़की नहीं है।

इन दिनों मां लगातार उधेड़बुन में है। रिया के ड्यूटी पर चले जाने के बाद वह अकसर पार्क में जाकर टहलती है। वहां मन नहीं लगता तो चली जाती है किसी रिश्तेदार के घर। उस दिन शायद वह अपने किसी करीबी के घर मॉडल टाउन आई होगी। वापसी में वह मेट्रो के आखिरी कोच में मुझे अनायास मिल गई। मैं दफ्तर जा रहा हूं। …….. ठीक बगल में रिया की मां बैठी है। इसका पता मुझे तब चला जब मोबाइल पर आई कॉल ने इसे उलझा दिया। वह कह रही है- हां समधन जी। रिया की मां बोल रही हूं। वह बहुत विनम्रता से पेश आ रही है। मगर दूसरी ओर से आ रही तीखी आवाज से साफ है कि समधन गुस्से में हैं।

रिया की मां कह रही है- बेटे के लिए आपकी चिंता समझ सकती हूं। मगर आप बिन बाप की बेटी के संघर्ष और उसकी भावनाओं को भी समझिए। एक बेटी की मां होकर सोचिए। मैंने अपना सब कुछ खोकर उसे पढ़ाया है। जीवन में आगे बढ़ने का इतना हौसला दिया है कि वह आज आसमान को छूती है। ऐसे में बेटी को कैसे कह दूं कि वह नौकरी छोड़ दे। आखिर वह नए दौर की लड़की है। वह अपना काम और घर का संभालना बखूबी जानती है। उसे दो-तीन साल का समय तो दीजिए।

समधन हैं कि कुछ सुनने को तैयार नहीं। रिया की मां दबाव में है। वह हार नहीं मान रही। उसकी विनम्रता में कोई कमी नहीं आई है। उधर, मानस की मां के स्वर में तल्खी आ गई है। वे कह रही है- सुनिए आप अपनी बेटी को समझाइए। हर महीने चार दिन की मुलाकात से शादीशुदा जिंदगी नहीं चलती। आखिर मेरे बेटे को भी दांपत्य सुख चाहिए। इस पर रिया की मां ने कहा, सही कह रही हैं आप। मगर क्या यह सुख मेरी बेटी को नहीं चाहिए? और इस सुख के लिए वह समय निकाल सकती है, तो मानस बेटा भी चार दिन समय निकाल ले। इससे दोनों हर महीने आठ दिन साथ रह लेंगे। बाकी दिन वे अपना-अपना काम करते रहें। यह मेरा सुझाव है। देखते ही देखते समय निकल जाएगा। रिया खुद ही एक दिन नौकरी छोड़ देगी। इस जवाब से नाराज होकर समधन ने नाराज होते हुए कहा, आप भी कमाल करती हैं बहनजी। यह शादी है या पति-पत्नी का कोई टाइमटेबल। इस संवाद यात्रा में कई स्टेशन निकल चुके हैं। उधर समधन जिद पर अड़ी हैं, तो इधर एक मां आसमान में उड़ान भरती अपनी बेटी के पंख की सलामती के लिए जद्दोजहद कर रही है। ……… मैं आंखें मूंदे दोनों महिलाओं की बातें सुन रहा हूं। क्या होगा अब? दोनों अपने रुख पर कायम हैं। अगला स्टेशन कश्मीरी गेट है। इस उद््घोषणा के साथ मेरा ध्यान भंग हो गया है।

दोनों के बीच संवाद टूटा नहीं है। तल्खी इधर भी बढ़ गई है। सौम्यता और विनम्रता की प्रतिमूर्ति रिया की मां के चेहरे पर तनाव झलकने लगा है। शायद उधर से कड़वाहट और घोल दी गई है। फिर भी वह खामोशी से समधन की बात सुन रही है। उसकी आंखों से आंसू बह जाने को बेताब हैं। ये बह जाएं इससे पहले वह आंचल से पोंछ ले रही है। कितनी असहाय हो चली है एक समर्थ बेटी की मां। क्या रिश्ते धौंस या दबाव से बनेंगे? या बीच का भी कोई रास्ता होता है?

मां का धीरज टूट चला है। उसका चेहरा कठोर हो गया है। उसने इस बार पलट कर जवाब दिया है- अच्छा यह बताइए, अगर मेरी बेटी नौकरी छोड़ दे, तो क्या आपका बेटा कारोबार छोड़ कर घर बैठ सकता है? नहीं न। फिर बार-बार आप रिया को नौकरी छोड़ने के लिए दबाव क्यों डाल रही हैं? उधर से आवाज आई- क्योंकि वह औरत है। औरत को मर्द के लिए त्याग करना ही होता है। और रिया को भी यह त्याग करना होगा। …….. इस पर रिया की मां उखड़ गई है। उसने पहली बार गुस्से में जवाब दिया- तो सारा त्याग औरत करेऔर पुरुष ऐश करता रहे। है न? ……. तो सुन लीजिए। मेरी बेटी नौकरी नहीं छोड़ेगी। मैं इसके सपनों को स्याह होते नहीं देख सकती। सुन लिया आपने। डरती हूं यह सोच कर कि आपकी जिद के कारण कहीं वह मानस को ही न छोड़ दे। वह जिद्दी है। वह आपके बेटे को छोड़ सकती है। सोच लीजिए। जब वह अपने करियर के लिए मां को गांव में छोड़ सकती है तो पति को भी छोड़ सकती है।

उद्घोषणा हो रही है……. अगला स्टेशन राजीव चौक है। मैं सीट को छोड़ कर कोच के दरवाजे के पास खड़ा हो गया हूं। रिया की मां के चेहरे पर आत्मविश्वास झलकने लगा है। उसने अपना निर्णय सुना दिया है। उसने अपनी बेटी के पंख को कतरे जाने से बचा लिया है। रिया अब आसमान में और भी नई ऊंचाइयों को छुएगी। कौन रोक सकता है उसे?