कवि जयदेव की कृति गीत गोविंद हर कलाकार को अपनी ओर आकर्षित करती है। गीतगोविंद में राधा और कृष्ण के मनोभावों का सुंदर साहित्य है। इसमें राधा को मानिनी नायिका और कृष्ण को समर्पित प्रेमी के तौर पर चित्रित किया गया है। इन भावों ने कथक के नर्तक डॉ मधुकर आनंद को कभी गहरे स्पर्श किया होगा। तभी उन्होंने इसे नृत्य में पिरोया होगा। उनकी इस परिकल्पना को उनकी शिष्या नम्रता राय, नर्तक विशाल कृष्ण और साथी नृत्यांगनाओं ने कमानी सभागार में पिछले दिनों पेश किया।
पंडित विनय मोहन शर्मा ने गीत गोविंद का हिंदी अनुवाद किया था। प्रबंध काव्य के हिंदी अनुवाद पर आधारित नृत्य रचना गीत गोविंद आधारित थी। संवाद, गीत और नृत्य के जरिए नायक कृष्ण और नायिका राधा के भावों को दर्शाया गया। नृत्य रचना के आरंभ में गीत मेघ भरित अंबर तरू तमाल की छाया के साथ कलाकारों का मंच पर प्रवेश होता है। समूह नृत्य को नया विस्तार रचना चारू चरित वाणी के चित्रित मन मंदिर हैं जिसके पर किया गया। अगले अंश में विष्णु के दशावतार का चित्रण पेश किया गया। अष्टपदी प्रलय पयाधि जले जय जगदीश हरे पर आधारित इस पेशकश में कथक नर्तक विशाल कृष्ण ने दशावतारों को हस्तकों व भंगिमाओं के जरिए दर्शाया। इसके साथ, अन्य नृत्यांगनाओं ने नृत्य को विस्तार दिया। इस अंश में गत निकास, पलटे, तिहाइयों व चक्रदार तिहाइयों का प्रयोग सुंदर था।
नायिका राधा के विरह भावों को अगले अंश में दर्शाया गया। इसके लिए अष्टपदी ललित लवंग लता परिशीलम और गीत नाचते हैं हरि सरस अधीर का चयन किया गया। एक ओर नृत्यांगना नम्रता राय नायिका राधा के कृष्ण से मिलने के उलिग्न भावों को दर्शा रहीं थीं, वहीं दूसरी ओर नर्तक विशाल नायक कृष्ण गोपियों के साथ मधुवन में रास करते नजर आते हैं। यहीं, अगले दृश्य में सखी से निवेदन करती है कि वह उन्हें कृष्ण के पास ले चलें। इन भावों को दर्शाने के लिए रचना ले चलो उन कुंजों में का प्रयोग किया गया।
इसी क्रम में कृष्ण के विरह भावों को नर्तक विशाल अभिनय के जरिए निरूपित करते हैं। इसके लिए गीत जग बंधन संप्राणों की मानिनी राधा को का चयन प्रभावकारी था। वहीं गीत यमुना तीरे बैठे यदुवंशी, छलकहिं अनुराग अधरहिं, हे माधव हे कमललोचन के जरिए राधा व कृष्ण के अलग-अलग भावों को नर्तक विशाल व नर्तकी नम्रता दर्शाते हैं। यही बतौर अभिसारिका नायिका राधा को दर्शाया जाता है। गीत चली राधा फिर उपवन में के जरिए इन भावों को चित्रित किया गया। मानिनी राधा को अगले अंश में कृष्ण मनाते हुए, नजर आते हैं। इसके लिए गीत प्रिये चारूशीले तजो मान का चयन किया गया।
कलाकारों का यह प्रयास सराहनीय है। पर कोरियोग्राफी के अंतिम अंश में थोड़ा फिल्मी असर दिखने लगा। लेकिन, कुलमिलाकर उनका आपसी संयोजन और तालमेल बढ़िया था। कई बार कथक नृत्य की प्रस्तुतियों में कलाकारों की तैयारी और रियाज में कमी दिखती है। पर गीतगोविंद की पेशकश में कलाकारों ने पूरी मेहनत और लगन से रियाज की थी, यह साफ नजर आ रहा था। पंडित उदय मजूमदार का संगीत मधुर था। पर संवाद के स्वर कहीं-कहीं बहुत कर्णप्रिय प्रतीत नहीं हुए। साथ ही, अन्य कलाकारों की अपेक्षा विशाल कृष्ण का नृत्य काफी प्रभावी था। कथक नृत्यांगना नम्रता ऐसे ही अन्य प्रयास करती रहेंगीं, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।

