शास्त्रीय नृत्य की परंपरा में गुरु नृत्य का शास्त्रीय ज्ञान के साथ तकनीकी ज्ञान देते हैं। इस गुण के वाहक नए कलाकार अथवा शिष्य बनते हैं, जो अपनी क्षमता और प्रतिभा के अनुकूल इसे धारण करते हैं। इसकी झलक नृत्यति नृत्य समारोह में दिखी। इस समारोह का आयोजन नवनीतम कल्चरल ट्रस्ट ने किया था। इसमें विभिन्न नृत्य शैलियों की युवा नृत्यांगनाओं ने शिरकत की। त्रिवेणी सभागार में हुए समारोह का आगाज मोहिनीअट्टम नृत्य से हुआ। मोहिनीअट्टम नृत्यांगना अश्विती शंकर ने चोलकट्टु से पारंपरिक शुरुआत की। यह राग करहरप्रिया और आदि ताल में निबद्ध था। अश्विती ने मोहिनीअट्टम की तकनीकी बारीकियों के साथ देव स्तुति और गणपति वंदना पेश की। श्लोक गणेश स्वरूप गणनाथ पर आधारित प्रस्तुति में गणेश के विभिन्न रूपों को हस्तकों और भंगिमाओं से दर्शाया। उनकी अगली प्रस्तुति राग मालिका और ताल मालिका में निबद्ध रावण विलापम थी।
श्री गणेश की इस रचना के बोल थे-वैदेही विश्वसुंदरी इंदुमुखी। इसमें नृत्यांगना रावण के भावों को विवेचित किया। उन्होंने अपनी प्रस्तुति में दर्शाया कि रावण को ज्ञात होता है कि सीता मेरी पुत्री है। मुझसे पाप हुआ है, वह संताप से ग्रस्त होता है। संचारी भावों के जरिए अश्विती ने दर्शाया। वहीं अगली प्रस्तुति अष्टपदी पर आधारित अभिनय थी। कवि जयदेव की रचना रासे हरि विहित विलासम पर आधारित नृत्य में नृत्यांगना अश्विती ने राधा, कृष्ण और सखी के भावों को नृत्य अभिनय में पेश किया। अश्विती की यह प्रस्तुति रचना के मूल भाव से कहीं दूर जाती दिखी। अष्टपदी के गायन में भी शृंगार भावों की अपेक्षित मधुरता का अभाव था।
गुरु मालती श्याम की शिष्या यामिका महेश ने कथक नृत्य पेश किया। यामिका के नृत्य में अच्छी तैयारी दिखी। उनके पैर के काम, चलना, गतियों और हस्तकों को बरतने में सफाई दिखी। वह मंच पर सजग दिखीं। यामिका महेश शिव स्तुति से नृत्य आरंभ किया। उन्होंने पंडित बिरजू महाराज की रचना निरतत शंकर पार्वती संग पर शिव और पार्वती के रूप का विवेचन किया। नृत्य के क्रम में घूंघट, फूल और बिंदी की गतों का प्रयोग किया। उन्होंने टुकड़े, परण और तिहाइयों को स्पष्टता से नृत्य में पिरोया। बारह मात्रा की चौताल में शुद्ध नृत पेश किया।
गुरु चित्रा विश्वेश्वरन की शिष्या अरूपा लहरी का नृत्य प्रभावकारी और भावपूर्ण था। अरूपा के नृत्य में तैयारी के साथ अच्छी परिपक्वता देखने को मिली। भरतनाट्यम नृत्यांगना अरूपा ने मल्लारी पेश किया। आदि शंकराचार्य की रचना मीनाक्षी प्रणतोस्मि राग गंभीर नाटई और आदि ताल में निबद्ध थी। उन्होंने देवी के भैरवी, काली, विश्वेश्वरी, सिंहेश्वरी, कामाक्षी रूपों को दर्शाया। छोटी प्रस्तुति में निरंतर भावों को बदलना काफी चुनौती भरा होता है। इसे अरूपा ने बहुत सुंदरता से निभाया। उन्होंने अपने नृत्य का समापन संत पुरंदरदास की रचना जगदोद्धारण अडिसिल यशोदा में माता यशोदा के वात्सल्य भावों को निरूपित किया। संचारी भावों का यह निरूपण सहस और मनोरम था। नृत्यांगना अरूपा में अपार संभावनाएं हैं।

