मोनिका राज
आमतौर पर देखा जाता है कि हमारे रोजमर्रा के जीवन में मुंह से निकलने वाली बात सच भी हो सकती है और असत्य भी। मानव जीवन में सत्य और असत्य की अपनी भूमिका है। बोले गए सच से हम किसी के दिल में जगह बना सकते हैं, वहीं असत्य बोल कर हम दूसरों के लिए तकलीफ का कारण बन जाते हैं। आज जब दुनिया में झूठ और फरेब हावी दिखने लगे हैं, तो ऐसे में सच की अपनी अहमियत है। सत्य की अवधारणा पूरी तरह से व्यक्तिपरक विषय है और यह व्यक्ति दर व्यक्ति अलग-अलग होती है।
सच एक अनुपम मानवीय गुण है
सच एक अनुपम मानवीय गुण है। अगर हमारी जीवन-रूपी इमारत सत्य की नींव पर खड़ी होगी, तभी हमारी सफलता का कोई महत्त्व है। इसके बारे में बुद्ध ने कहा है कि सत्य को छोड़कर जो असत्य बोलता है, वह आदमी बड़े से बड़ा पाप कर सकता है। जिसे जान-बूझकर झूठ बोलने में लज्जा नहीं आती, उसका साधुपना औंधे घड़े के समान है। साधुता की एक बूंद भी उसके हृदय-घट के अंदर नहीं है। जितनी हानि शत्रु और बैरी करता है, मिथ्या मार्ग का अनुगमन करने वाला चित्त उससे कहीं अधिक हानि पहुंचाता है। झूठ बोलने के लिए दूसरों को प्रेरित नहीं करना चाहिए और न झूठ बोलने वाले को प्रोत्साहन देना चाहिए।
एक निष्पक्ष और न्यायपूर्ण समाज की नींव है सच
समाज, सत्य और सत्य बोलने वाले व्यक्ति को बहुत अधिक महत्त्व देता है, भले ही कुछ झूठ बोलने वाले लोग उससे दूरी बरतें। दरअसल, सच एक निष्पक्ष और न्यायपूर्ण समाज की नींव के रूप में कार्य करता है। अदालत में गवाहों को सच बोलने की शपथ लेनी होती है और सच बोलकर ही न्याय दिया जा सकता है। अधिकांश आधुनिक धर्मों की इस मामले पर एक राय है और वे सत्यता के सिद्धांतों को उच्च महत्त्व देते हैं। मोटे तौर पर सत्यता के दो पहलू हैं- दूसरों के और अपने प्रति सच्चा होना। दोनों पूरी तरह एक ही चीज नहीं है। हालांकि वे आपस में घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं।
जो विचार मन में हो वही वाणी में भी होने चाहिए
यह एक जगजाहिर तथ्य है कि सच को कितने भी पर्दे में क्यों न छिपाकर रख दिया जाए, एक न एक दिन वह प्रकट हो जाता है। जो विचार मन में हो वही वाणी में भी होने चाहिए और उसी के अनुरूप ही मनुष्य का व्यवहार भी होना चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं कि मन, वचन और कर्म से अलग रहने वाले पूरी तरह से सत्य का आचरण नहीं कर सकते। सत्य हमेशा कड़वा होता है। इसीलिए कई बार सच बोलने वाले लोग कुछ लोगों को अच्छे नहीं भी लगते। सच यह है कि आज बहुत सारे लोग अपने स्वार्थ में इस प्रकार स्वकेंद्रित हो गए हैं कि उन्हें मानव जीवन की कीमत का भान ही नहीं हो रहा है। स्वार्थ से वशीभूत मानव कुछ भी करने को तैयार है।
सच मायने रखता है और यह व्यक्ति और समाज दोनों के लिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि व्यक्ति के सच्चे होने का मतलब है कि कोई व्यक्ति अपनी गलतियों से सीखकर आगे बढ़ सकता है और परिपक्व हो सकता है। समाज के लिए जहां सत्य सामाजिक बंधन बनाने में मदद करता है, वहीं झूठ और पाखंड प्रतिकूल प्रभाव डालता है और उन बंधनों को तोड़ देता है। सत्य के महत्त्व को रेखांकित करते हुए गांधीजी ने कहा है कि सत्य केवल शब्दों की सत्यता ही नहीं, बल्कि विचारों की सत्यता भी है और हमारी अवधारणा का सापेक्षिक सत्य ही नहीं है, बल्कि निरपेक्ष सत्य भी है, जो ईश्वर ही है।
गांधीजी सत्य को निरपेक्ष सत्य के रूप में ग्रहण करते हैं और इसे ईश्वर का पर्यायवाची मानते हैं। हमारे अस्तित्व का एकमात्र औचित्य यह होना चाहिए कि हमारी सभी गतिविधियां सच पर केंद्रित हों। सत्य ही हमारे जीवन का प्राण-तत्त्व होना चाहिए, क्योंकि सत्य के बिना व्यक्ति अपने जीवन के वास्तविक लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता। यह जरूर हो सकता है कि उसे सफलता मिल जाए, लेकिन आंतरिक शांति कभी प्राप्त नहीं होगी।
एक लोकप्रिय कहावत भी है कि आखिरी में सच के रास्ते पर चलने वाले की ही जीत होती है। हालांकि यह भी है कि सच का रास्ता इतना आसान नहीं है। सत्य को एक साधन के रूप में प्रयोग करने वालों को इसके लिए अत्यधिक मूल्य चुकाना पड़ा है।
अतीत में इसके तमाम उदाहरण भरे पड़े हैं। इसी प्रकार आज भी पाखंड का विरोध करने व सत्य को उद्घाटित करने वाले लोगों को सत्य की कीमत चुकानी पड़ती है और कई बार यह कीमत उनकी जान भी होती है। एक सभ्य समाज को यह सोचने की जरूरत है कि सच की कीमत अगर यह है तो उसकी बुनियाद में आखिर क्या पल रहा है! शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जो यह चाहेगा कि अगर कोई व्यक्ति उसे किसी भी चीज के बारे में बता रहा है या कोई बात कह रहा है तो कुछ झूठ बताए। बल्कि झूठ का सहारा लेने वाला व्यक्ति भी यह नहीं चाहता कि कोई उससे झूठ बोले!