इशित भट्ट। यही नाम है उस बच्चे का जो इन दिनों ‘नरम अभिभवाकत्व’ को लेकर चुनौती बना हुआ है। ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में आए इस बच्चे ने बड़ों की दुनिया को मानसिक आघात सा दे दिया है। इन दिनों हम अति प्रतिक्रिया के दौर में हैं। जब इंसान के व्यवहार की ही कोई परिभाषा नहीं होती है, फिर हम बच्चे के विषय में क्या आकलन कर सकते हैं कि वह किस तरह बोलेगा, उठेगा, सवाल करेगा, या जवाब देगा।
आज पूरे देश के अभिभावक इशित भट्ट के अभिभावक को ज्ञान दे रहे हैं कि उन्हें अपने बच्चे को आज्ञाकारी बनाना चाहिए था। आम दर्शकों को इशित अहंकारी और अति-आत्मविश्वास का शिकार लगा। मुश्किल यह है कि हम इस तरह की विवेचना करते वक्त दृश्य माध्यम के कारोबार को समझने की कोशिश ही नहीं करते हैं, बल्कि उसका हिस्सा बन जाते हैं। इशित के कौन बनेगा करोड़पति के प्रसारण के छोटे-छोटे वीडियो बन चुके हैं, जिसे अभिभावक रील के रूप में पोस्ट कर रहे हैं। जिस तरह अभिभावक इशित को ऑनलाइन संस्कार सिखा रहे हैं, उसे देख कर लग रहा कि बात बच्चों पर नहीं अभिभावक पर होनी चाहिए।
‘कौन बनेगा करोड़पति’ जैसा भव्य सेट, सामने अमिताभ बच्चन को देख कर बच्चा अति आत्मविश्वास का शिकार हो सकता है। सवाल यह है कि अभिभावक कैसे होने चाहिए? बच्चों को तमीज-तहजीब सिखाना अभिभावक का काम है, लेकिन किसी बच्चे का सार्वजनिक अपमान करना अभिभावक का काम नहीं हो सकता है। हो सकता है, कार्यक्रम के निर्माता व निर्देशक बच्चे का ऐसा ही रूप दिखाना चाहते होंगे ताकि यह प्रसारण चर्चा का विषय बन जाए।
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कथित ‘रियलिटी शो’ में जिस तरह हर जज बात-बात पर रोने के लिए मजबूर होते हैं, उसकी वजह क्या है? हम सब जानते हैं कि प्रतिभागियों की गरीबी और मजबूरी का सार्वजनिक प्रदर्शन निर्माता कंपनी अपने फायदे के लिए करती है। आपने जीवन में संघर्ष किया है, दुख झेला है और उसे सार्वजनिक नहीं करना चाहते हैं, तो शर्तिया तौर पर आप किसी ‘रियलिटी टीवी’ का हिस्सा नहीं बन पाएंगे।
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कार्यक्रम में अमिताभ बच्चन उसी तरह सिर पर हाथ रख ले रहे थे, जिस तरह आम घरों में नाना-दादा बच्चों की परेशान करने वाली बातों को सुन कर रख लेते हैं। कार्यक्रम के निर्देशक समझ चुके थे, यह ‘केबीसी जूनियर’ वरिष्ठों के कई अंकों से ज्यादा पैसा वसूल होगा। ऐसा पहले भी हुआ है।
किसी भी बच्चे का व्यवहार उसके पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक आबोहवा से निर्देशित होता है। जरा आस-पास आंख उठा कर देखिए, आम लोगों के बीच किस तरह के नेता और अभिनेता पसंद किए जा रहे हैं। कहीं पर भी संवाद में कुछ सामान्य नहीं रह गया है। घर-बाहर से लेकर कार्यस्थलों और राजनीति तक में सामान्य के लिए कोई जगह नहीं है। आपके अस्तित्व का आधार ही आपका असामान्य होना है। यह भी असामान्य है कि अभिभावक बच्चे को खारिज करें।