चंद्रकुमार

कुछ दिनों पहले एक खबर ने पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा। इटली के रोम शहर के मध्य स्थित लगभग दो हजार साल पुराने रोमन सभ्यता के भव्य एंफीथियेटर, जिन्हें कोलोसियम के नाम से जाना जाता है, की दीवारों पर किसी नुकीली चीज से अपना नाम लिखने वाले एक व्यक्ति की तलाश में वहां की पुलिस ने दिन-रात एक कर दिया और आधुनिक वीडियो तकनीकों के इस्तेमाल से उसे इंग्लैंड में ढूंढ़ निकाला।

यह अंडाकार एंफीथियेटर अनेक प्राकृतिक आपदाएं झेलते हुए अब खंडहर के रूप में ही बचा है, लेकिन यूनेस्को द्वारा इसे विश्व-धरोहर का दर्जा मिला हुआ है। इटली की सरकार इसकी हिफाजत करती है और पूरे विश्व के पर्यटकों के लिए यह आकर्षण का केंद्र है जो उस जमाने में रोमन साम्राज्य के विलासी खेलों के लिए लगभग पचास हजार लोगों के बैठने की क्षमता वाला एक विशाल एंफीथियेटर था।

अधिकांश भारतीयों को हैरानी हो सकती है कि कोई पर्यटक कोलोसियम की पुरानी दीवार पर कुछ उकेर कर चला गया तो कौन-सा आसमान टूट पड़ा कि पुलिस ने उसे ढूंढ़ कर मुकदमा कर दिया! दरअसल, आजकल अधिकांश देश अपनी सभ्यता, संस्कृति और पुरातात्त्विक महत्त्व वाली इमारतों, स्मारकों, संरचनाओं के संरक्षण को लेकर बेहद गंभीर हैं।

किसी सिरफिरे द्वारा कोलोसियम की दीवार पर अपना और अपनी प्रेयसी का नाम उकेरना न केवल उसका विरूपण है, बल्कि उसके ऐतिहासिक महत्त्व की अवहेलना भी है। पहचान हो जाने के बाद अब जल्द ही उसे गिरफ्तार कर सजा-जुर्माना होगा और साथ ही ऐसी लापरवाही कम से कम पुरातात्त्विक महत्त्व की इमारतों-संरचनाओं के साथ दुबारा न हो, इसके लिए वहां पुख्ता योजना भी बनेगी।

अपनी ऐतिहासिक और पुरातात्त्विक महत्त्व की विरासत को सहेजने के मामले में हम कहां हैं, इसका जवाब हमें अपने आसपास के सार्वजनिक स्मारक सहज ही दे देते हैं। सड़ांध मारते कोने, पान-गुटखा की पिचकारी से रंगीन दीवारें, हर तरफ बिना संकोच के लिखी गई इबारतें और बाहरी दीवारों पर बेतरतीब चिपकाए इश्तिहार- यह हमारे स्मारकों की दुर्दशा बताने के लिए काफी है।

हर वह सामान जो वहां से निकाला जा सकता है, किसी कबाड़ में पहुंच सकता है। अगर यह कोई खुला सार्वजनिक स्मारक है तो जुआरियों-शराबियों-नशेड़ियों की शरणस्थली भी बन सकता है। यही हाल कमोबेश हमारे बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और सार्वजनिक पार्कों का है। दरअसल, नागरिक कर्तव्यों के मामले में हम न केवल असंवेदनशील हैं, बल्कि इसे हिकारत की नजर से देखते हैं! सार्वजनिक स्थानों पर हम इतने लापरवाह होते हैं कि एकबारगी विश्वास ही नहीं होता कि हमारी सभ्यता हजारों वर्ष पुरानी है।

अमेरिका सहित बहुत से देशों में अपने आसपास के पर्यावरण और स्मारकों की जैसी रखवाली देखी जा सकती है, उसे देख कर मन में बहुत पीड़ा होती रही कि विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक हमारे देश में लोग अपनी विरासत और ऐतिहासिक महत्त्व की इमारतों/ स्मारकों के प्रति इतना गैर-जिम्मेदार क्यों हैं! विश्वभर से सैलानी संग्रहालयों, स्मारकों और ऐतिहासिक जगहों पर पर्यटन करने जाते हैं।

भारत में प्रचुरता से मौजूद ऐसे स्थलों की देखभाल में पेशेवराना रुख क्यों नहीं अपनाया जा रहा, जबकि बिना खस लागत के पर्यटन विदेशी मुद्रा और रोजगार देने वाला अहम क्षेत्र है। दुनिया के कई देशों की अर्थव्यवस्था महज पर्यटन से चल रही है। हमारे यहां इसकी तरफ आंख मूंद कर बैठना कहां की समझदारी माना जाए? इसके वित्तीय पक्ष को नजरअंदाज भी कर दें तो कम से कम अपने अतीत के वैभव के प्रति यह उदासीनता सभ्य समाज की निशानी कतई नहीं मानी जा सकती!

जो महल, किले और हवेलियां व्यावसायिक कार्यों में उपयोग होने लगीं, वहां स्थिति बेहतर बनी हुई है। लेकिन जहां उनके व्यावसायिक उपयोग की संभावनाएं नहीं दिखतीं, वहां इनकी सार-संभाल भी नहीं होती। राजस्थान के कई शहरों में हवेलियां धीरे-धीरे जर्जर होकर गिर रही हैं, उनके चेहरे के गुलाबी नक्काशीदार कलात्मक पत्थरों को उखाड़ कर हेरिटेजनुमा होटल-रिसोर्ट्स में लगाया जा रहा है।

मौसमों की मार और हमारे तिरस्कार से आखिरकार वैभवशाली हवेलियां धूल फांकते हुए जमींदोज होती जा रही हैं। करीब एक दशक पहले स्थानीय युवाओं के प्रयासों से राजस्थान के बीकानेर शहर की हवेलियों को विश्व स्मारक निधि, न्यूयार्क द्वारा विश्वपटल पर चिह्नित किया गया कि सार-संभाल के अभाव में ये हवेलियां लुप्त होने की कगार पर हैं, लेकिन हमारे शासकों-प्रशासकों को इसका भान तक नहीं हुआ। शहर से हवेलियां और उनकी कलात्मक चीजें इधर-उधर बिकते हुए गायब होती जा रही हैं।

भविष्य को सुनहरा बनाने के साथ ही यह भी जरूरी है कि हम अपने अतीत को सहेज कर रखें। लेकिन बेतरतीब विकास और आधुनिकता के रंग में रंगने को आतुर हम न केवल अतीत को नष्ट कर रहे हैं, बल्कि अपना भविष्य भी अंधकार की तरफ धकेल रहे हैं। विरासत की अनदेखी आखिरकार हमारे वैभवशाली अतीत पर बहुत भारी पड़ेगी। लेकिन हम इस तरफ देखें तब परेशानी नजर आए!